निकाय चुनाव में हार-जीत के बाद अब विस व लोस चुनाव के बन रहे समीकरण
इस बार निकाय चुनाव में कुमाऊं की व्यावसायिक के साथ-साथ राजनीतिक राजधानी कही जाने वाली हल्द्वानी सीट पर भाजपा ने दोबारा विजय पताका फहराई है।
हल्द्वानी, जेएनएन : कहते है कि असफलता से सबक लेने वाला एक दिन सफल जरूर होता है। राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। इस बार निकाय चुनाव में कुमाऊं की व्यावसायिक के साथ-साथ राजनीतिक राजधानी कही जाने वाली हल्द्वानी सीट पर भाजपा ने दोबारा विजय पताका फहराई है। पार्टी के लिए तो यह जश्न का विषय है ही। वहीं कांग्रेस यहां हार के बावजूद भी कई मायनों में भविष्य के लिए एक सार्थक उम्मीद जगा रही है। सीमा विस्तार के बाद तीन विधानसभा क्षेत्रों वाले निगम में कांग्रेस के लिए हल्द्वानी विधानसभा का आंकड़ा सुमित हृदयेश को भविष्य के चेहरे के रूप में प्रस्तुत कर गया है।
नगर निगम हल्द्वानी के चुनाव में आमने-सामने रहे भाजपा-कांग्रेस में टिकट वितरण से लेकर मतगणना तक दिलचस्प मुकाबला दिखा। भाजपा में भी 25 से 60 वार्ड में तब्दील हो चुके निगम के टिकट को लेकर अंत तक उठापटक दिखी तो कांग्रेस का भी यही हाल रहा। आखिरकार नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के पुत्र सुमित हृदयेश की विधिवत राजनीतिक लॉचिंग हो ही गई। मां को विधानसभा चुनाव लड़ाने में पर्दे के पीछे रणनीतिक कौशल दिखा चुके सुमित अब खुद पर्दे के सामने थे। नेता प्रतिपक्ष एवं सुमित दोनों के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा से जुड़ गया। ऐसे में निगम के जो नतीजे आए वह दोनों को निराश जरूर कर गए, लेकिन यहीं से एक नई राह भी प्रशस्त हो गई।
सुमित हृदयेश ने जिस तरह पिछले वर्षों में अपनी पब्लिक इमेज में जबरदस्त सकारात्मक बदलाव किया है, चुनाव में मिले 53939 मत इसकी पुष्टि भी कर गए। 10834 मत के अंतर से हार के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन हल्द्वानी के ग्रामीण इलाकों (अधिकांश हल्द्वानी व लालकुआं विस के गांव) में भले ही कमजोर रहा हो, मुख्य शहर (हल्द्वानी विस क्षेत्र) से उन्हें वोटरों ने निराश नहीं किया। यही नहीं 2013 के चुनाव में 21.4 मत प्रतिशत को वह 40 तक ले जाने में सफल रहे। नए शामिल क्षेत्रों के बूते जहां भाजपा ने 60 में से 38 वार्डों पर बढ़त बनाई वहीं कांग्रेस 22 वार्डों में पहले नंबर पर रही।
इस लिहाज से हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं का मूड देखें तो यहां करीब 1.40 लाख मतदाता हैं। कांग्रेस के लिए यही वोट का बड़ा बैंक भी है। ऐसे में गुटबाजी एवं पार्टी के भीतर के अंतरविरोध को छोड़ दें तो सुमित की आगे की राजनीतिक पारी के लिए यह शुभ संकेत जरूर है।
पिछले तीन चुनाव में पार्टियां का जनाधार (प्रतिशत में)
दल 2008 2013 2018
भाजपा 35.8 34.2 48.1
कांग्रेस 37.7 21.4 40.0
सपा 5.5 32.0 6.8
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