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मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी आधे से भी कम डाक्टर, मशीनें भी काफी पुरानी

राज्य का पहला राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी। राज्य बनने के साथ ही अस्तित्व में आया। इसके अधीन डा. सुशीला तिवारी अस्पताल टर्सरी सेंटर भी है जहां कुमाऊं के पांच अन्य जिलों से मरीज रेफर होकर पहुंचते हैं। अधिकतर धक्के खाने को मजबूर।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 20 Sep 2021 06:05 AM (IST)Updated: Mon, 20 Sep 2021 09:12 AM (IST)
मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी आधे से भी कम डाक्टर, मशीनें भी काफी पुरानी
मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी आधे से भी कम डाक्टर, मशीनें भी काफी पुरानी

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : राज्य का पहला राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी। राज्य बनने के साथ ही अस्तित्व में आया। इसके अधीन डा. सुशीला तिवारी अस्पताल टर्सरी सेंटर भी है, जहां कुमाऊं के पांच अन्य जिलों से मरीज रेफर होकर पहुंचते हैं। अधिकतर धक्के खाने को मजबूर। इस कॉलेज के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के मानक हवा में उड़ा दिए गए हैं। यही कारण है कि स्पेशलिस्ट डाक्टर बनने के लिए सीटों की संख्या 100 हो जानी चाहिए थी, जो लगातार घटते हुए अब 60 से भी कम हो जाएंगी। दुर्भाग्य है कि जनप्रतिनिधियों के एजेंडे में यह मुद्दा कभी रहा ही नहीं।

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400 मरीजों पर बस चार डाक्टर

जिस मेडिसिन विभाग में 10 से अधिक डाक्टर होने चाहिए थे, वहां चार रह गए हैं। हालांकि इस मेडिसिन विभाग की ओपीडी में प्रतिदिन 400 मरीज पहुंच जाते हैं। अल्मोड़ा में मरीजों की संख्या नहीं के बराबर है, लेकिन वहां 11 डाक्टर तैनात कर दिए गए हैं।

ऐसे में कैसे मिलेंगे स्पेशलिस्ट

जनप्रतिनिधियों का कहना है कि हमें स्पेशलिस्ट डाक्टर नहीं मिलते। लेकिन हकीकत यह है कि मेडिकल कालेज में मानक पूरे होते तो 100 से अधिक सीटें एमडी व एमएस की होतीं। दुर्भाग्य देखिए, एक बार करीब 80 सीटों में पीजी होने लगा था, लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या अब 65 रह गई है। इस समय 40 फीसद डाक्टरों की कमी है। एनएमसी के मानक के लिहाज से 12 सीटें और कम हो सकती हैं।

एमआरआइ मशीन पुरानी, अल्ट्रासाउंड करने को डाक्टर नहीं

एमआरआइ मशीन को 16 साल से अधिक समय हो गया है। इससे मशीन बार-बार खराब होती है। नई मशीन कब लगेगी, कुछ नहीं पता। इस विभाग में केवल एक विभागाध्यक्ष हैं, वह भी संविदा पर। एक भी रेडियोलॉजिस्ट नहीं। कई महीने बीत गए। चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय तक इसकी जानकारी है। फिर भी कोई सुनवाई नहीं। ऐसे में अल्ट्रासाउंड के लिए मरीजों को बाहर जाना पड़ता है।

उपनल कर्मी : जरूरत भी-मुसीबत भी

कॉलेज से लेकर अस्पताल में 700 से अधिक उपनलकर्मी हैं। ये अस्पताल की जरूरत भी हैं और मुसीबत भी। जरूरत इसलिए कि यही कर्मचारी ओटी टेक्नीशियन, वार्ड ब्वाय, स्टाफ नर्स, पर्यावरण मित्र तक हैं। मुसीबत इसलिए कि ये बार-बार हड़ताल पर चले जाते हैं। पिछले 18 दिन से कार्य बहिष्कार पर हैं।

लंबित परियोजनाएं

  • ट्रामा सेंटर का निर्माण, लेकिन संचालन नहीं
  • अधूरा ऑडिटोरियम
  • न्यूरोसर्जन, प्लास्टिक सर्जन, यूरोलॉजिस्ट के लिए अलग से ऑपरेशन थिएटर व ट्रेंड स्टाफ

फैकल्टी की कमी दूर की जाएगी

प्राचार्य प्रो. अरुण जोशी ने कहा कि तीन साल के कांट्रेक्ट में रखने के लिए डाक्टरों की नियुक्ति होते रहती है। शासन स्तर पर भी फैकल्टी की कमी दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। नई एमआरआइ मशीन लगाने की तैयारी चल रही है। शहरी विकास मंत्री बंशीधर भगत कहते हैं कि मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के लिए जो भी बेहतर हो सकता है, किया जाएगा। डाक्टरों की कमी व अन्य सुविधाओं के लिए चिकित्सा शिक्षा मंत्री व सीएम से बात की जाएगी।

एमएनसी मानकों के अनुसार हो फैकल्‍टी

पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डा. एचसी भट्ट का कहना है कि मेडिकल कॉलेजों को केवल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं खोला जाना चाहिए। एनएमसी के मानकों के अनुसार कम से कम फैकल्टी तो पूरी होनी ही चाहिए। विधायक नवीन दुम्का ने बताया कि सात सितंबर को चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने बैठक ली थी। उसमें सीएम भी थे। मैंने भी अस्पताल की स्थिति की चर्चा की और इसके लिए विशेष पैकेज देने का अनुरोध किया है।

खास-खास

1500 प्रतिदिन ओपीडी

400 मरीज रहते हैं भर्ती

40 फीसद डाक्टरों की कमी

01 डाक्टर भी नहीं अल्ट्रासाउंड को

16 साल पुरानी एमआरआइ मशीन


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