55 साल की कमला दीदी को साड़ी में गाड़ी रिपेयर करते और पंचर बनाते देख चौंक जाते हैं लोग
55 साल की उम्र में नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लाक की कमला दीदी (Kamla Didi) गाड़ियों की मरम्मत और पंचर बनाकर परिवार को संभालती है। घर से लेकर बाहर तक के कामकाज को उसने जैसे संभाला है लोग उसकी तारीफ के कसीदे पढ़ते हैं।
किशोर जोशी, नैनीताल : दुनिया के बहुत से पेशे ऐसे हैं जिन पर पुरुषों का एकाधिकार मान लिया गया है। ऐसे में जब उसमें स्त्रियों की दखल होती है तो लोग सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते हैं। पर इन वर्जनाओं को नैनीताल जिले की कमला दीदी ने तोड़ा है।
कमला दीदी (Kamla Didi) के साथ कुछ ऐसा ही है। 55 साल की उम्र में साड़ी में लिपटी कमला दीदी को लोग कार की बोनट खोलकर रिपोरिंग करते और पंचर बनाते देखकर चौंक जाते हैं। आश्चर्य होता है कि एक महिला ये सब कर कैसे लेती है।
मेहनत और हुनर से चर्चा में है रामगढ़ की कमला दीदी
नैनीताल से 40 किलोमीटर दूर रामगढ़ ब्लॉक के ओड़ाखान, ग्राम पंचायत दाड़िम की कमला नेगी अपनी मेहनत और हुनर से लोगों के बीच चर्चा में हैं। वह गाड़ियों की रिपेयरिंग और पंचर बनाने का काम करती हैं। उस रोड से गुजरने वाले पर्यटक से लेकर स्थानीय लोग तक उन्हें देखकर स्तब्ध हो जाते हैं।
पति हयात सिंह दिल्ली में बनाते थे पंचर
सीमायल रैक्वाल गांव के पूर्व प्रधान राम सिंह व गृहिणी रेवती की आठ संतानों में तीसरे नंबर की कमला की शादी ओड़ाखान के किसान परिवार के हयात सिंह के साथ हुई। हयात सिंह ने दिल्ली में पंचर बनाते थे।
शादी के बाद घर आ गए। रोजी रोटी चलाने के लिए गांव में ही सड़क किनारे पंचर लगाने का काम शुरू किया। उनके काम में कमला ने भी हाथ बंटाना शुरू किया। कुछ ही दिनों में उसने साइकिल खोलना, पंचर लगाना सीख लिया।
कमला दीदी ने 2004 में खोली अपनी दुकान
आठवीं पास कमला ने घर परिवार की आर्थिक गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए 2004 में नथुवाखान जाने वाली सड़क किनारे पंचर की दुकान खोली। उस समय गांव और आसपास के लोगों ने उसका मजाक उड़ाया। लेकिन उसने तानों की परवाह किए बगैर पति के साथ गाड़ियों की सर्विसिंग का काम भी सीख लिया। धीरे धीरे दुकान चल पड़ी और आज पूरे इलाके में कमला टायर वाली दीदी के रूप में पहचानी जाती है।
कमला दीदी का बेटा सेना में हो गया है भर्ती
कमला दीदी ने बताया कि पंचर बनाने से लेकर हवा भरने व अन्य सर्विसिंग के काम से रोजाना चार से पांच सौ तक की कमाई हो जाती है। इपनी इसी मेहनत से कमला दीदी ने बेटी कविता और बेटे कंचन को पढ़ाया। कंचन 12वीं पास कर एसएसबी में भर्ती हो गया। बावजूद इसके कमला दीदी ने अपना काम नहीं छोड़ा।
पर्यटक दे जाते हैं ईनाम
कमला दीदी कहती है हवा भरने में 20 रुपये शुल्क लिया जाता है, लेकिन पर्यटक काम को देखकर सौ रुपये तक देकर चले जाते हैं। कहते हैं कि आप मिसाल हो। कमला दीदी अब बुलडोजर तक के टायर तक खोल लेती है। उसका कहना है कि मजबूरी सब सिखा देती है। पहाड़ की बेटी हूं घर से लेकर दुनिया तक संभाल सकती हूं।
टैंक नहीं बनने से रुका गाड़ी धुलाई का काम
कमला दीदी ने बताया कि दुकान के पास ही गाड़ी धुलाई का काम भी शुरू करना चाहती हूं। इसके लिए प्रधान से बरसाती टैंक बनाने का आग्रह किया था। आज तक वह काम शुरू नहीं हो सका। बोली पहाड़ की खेतीबाड़ी बंदर व सुअरों ने चौपट कर दी। यदि कोई अपनी मेहनत से काम शुरू करता है, तो सरकारी नियम रोड़ा बन जाते हैं।
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