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आईटीआई प्रशिक्षित युवक को नौकरी न मिली तो पहाड़ के उत्पाद से शुरू किया बिजनेस

कोरोना काल में नौकरियां कम हुई हैं। कंपनियों में छंटनी हो रही है। ऐसे में कई युवाओं ने स्थानीय उत्पादों के भरोसे स्वरोजगार की राह तैयार की है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 02:27 PM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 02:27 PM (IST)
आईटीआई प्रशिक्षित युवक को नौकरी न मिली तो पहाड़ के उत्पाद से शुरू किया बिजनेस
आईटीआई प्रशिक्षित युवक को नौकरी न मिली तो पहाड़ के उत्पाद से शुरू किया बिजनेस

हल्द्वानी, जेएनएन : कोरोना काल में नौकरियां कम हुई हैं। कंपनियों में छंटनी हो रही है। ऐसे में कई युवाओं ने स्थानीय उत्पादों के भरोसे स्वरोजगार की राह तैयार की है। अब इस कड़ी में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर घाटी के रहने वाले दीपक बोरा का नाम जुड़ा है। चनौदा गांव के रहने वाले दीपक ने जंगली फल तिमला (हिंदी नाम अंजीर और वैज्ञानिक नाम फाईकस आरीकुलेटा) और मशरूम का अचार तैयार कर लोगों को इसके स्वाद का मुरीद बना दिया है। उत्तराखंड ही नहीं बल्कि दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों के लोग भी इसकी डिमांड कर रहे हैं। वैरायटी देने के लिए लहसुन और आम का अचार तैयार कर रहे हैं। पिछले छह साल से दीपक सिलबट्टे में पीसे पहाड़ी नूण (नमक) की आॅनलाइन बिक्री कर रहे हैं। लहसुन, जीरा, तुलसी, भंगजीरा, भांग के फ्लेवर का जायकेदार नमक काफी पसंद किया जाता है।

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तीन परिवारों को मिला रोजगार

इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई के बाद दीपक ने आइटीआइ की। कहीं नौकरी न मिलने से उन्होंने खुद का रोजगार करने की ठानी। 2015 में पहाड़ी नूण को बिजनेस शुरू किया। दीपक ने पैकेट के साथ-साथ मटके में नमक की पैकिंग की। मटके के अंदर पहाड़ी नमक होता और बाहर उत्तराखंडी लोक चित्रकला विधा ऐपण उकेरी। उत्तराखंड की इस सौगात को लोगों ने खूब पसंद किया। चार माह पहले दीपक ने तिमल, लहसुन, कटहल और मशरूम का आचार तैयार करने की योजना बनाई। इसके लिए रुपये की जरूरत थी। कई चक्कर लगाने के बाद भी बैंकों ने निराश किया तो दीपक ने अपने दोस्त की मदद से मशरूम का बीज मंगाया। घर पर मशरूम का उत्पादन शुरू किया। लॉकडाउन में घर पर आचार बनाने का काम शुरू किया। दो महिलाओं को एक युवक को रोजगार मिल रहा है।

दूसरों को कर रहे प्रेरित

दीपक दूसरों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनकी प्रेरणा से आसपास के गांवों के दस युवा मशरूम का उत्पादन शुरू कर चुके हैं। दीपक युवाओं को प्रशिक्षण देते हैं। दीपक कहते हैं महानगरों में आठ से दस हजार की नौकरी करने से बेहतर हैं कि पहाड़ की जीवनदायनी आबोहवा में रहते हुए खुद का रोजगार शुरू किया जाए। इससे पहाड़ आबाद भी रहेंगे। सरकारी विभागों को वास्तविक जरूरतमंदों को स्वरोजागर के लिए आर्थिक मदद देनी चाहिए।

तिमला का नहीं होता उत्पादन

उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक डाॅ. राजेंद्र डोभाल बताते हैं कि तिमला बहुमूल्य जंगली फल है। उत्तराखंड में यह बहुतायत से होता है। यह पौष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर है। तिमला का अंग्रेजी नाम Elephant Fig है। मोरेसी कुल का यह पौधा समुद्रतल से 800 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। वास्तविक रूप में तिमले का फल, फल नहीं बल्कि एक इंवरटेड फूल है जिसमें ब्लॉज्म दिख नहीं पाता है। तिमले का उत्पादन व खेती नहीं की जाती। यह एग्रो फोरेस्ट्री के अंतर्गत अथवा स्वतः ही खेतों की मेड़ पर उग जाता है। इसकी पत्तियां बड़े आकर की होने के कारण पशुचारे के लिये बहुतायत मात्रा में प्रयुक्त किया जाता है।

पारिस्थितिकीय में अहम है तिमला

डाॅ. डोभाल के मुताबिक तिमला न केवल पौष्टिक एवं औषधीय महत्व रखता है बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकीय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कई सारे पक्षी तिमले के फल का आहार लेती हैं तथा इसी के तहत बीज को एक जगह से दूसरी जगह फैलाने में सहायक होती हैं। विश्व में फाईकस जीनस के अंतर्गत लगभग 800 प्रजातियां पायी जाती हैं। यह भारत, चीन, नेपाल, म्यांमार, भूटान, दक्षिणी अमेरिका, वियतनाम, इजिप्ट, ब्राजील, अल्जीरिया, टर्की तथा ईरान में पाया जाता है। जीवाश्म विज्ञान के एक अध्ययन के अनुसार यह माना जाता है कि फाईकस करीका अनाजों की खोज से लगभग 11000 वर्ष पूर्व माना जाता है।


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