आइपीएस बंग्याल ने तैयार किया है रं ल्वू समाज की भाषा का पहला शब्दकोश nainital news
पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में पिथौरागढ़ जिले के सीमांत धारचूला क्षेत्र के रं समाज द्वारा बोली संरक्षण को लेकर किए गए प्रयासों की सराहना कर उनका हौसला अफजाई किया है।
नैनीताल, किशोर जोशी : पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में पिथौरागढ़ जिले के सीमांत धारचूला क्षेत्र के रं समाज द्वारा बोली संरक्षण को लेकर किए गए प्रयासों की सराहना कर उनका हौसला अफजाई किया है। कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर बसे गांवों में रहने वाले इस समाज के लोगों की भाषा, बोली, रहन-सहन, लोक संस्कृति, पहनावा, खानपान के बारे में जानना हमेशा से शोधार्थियों व जिज्ञासुओं की उत्सुकता रही है। नई पीढ़ी को अपनी परंपरागत रं समाज की भाषा बोलने को लेकर प्रेरित करने की लंबे समय से मुहिम भी चल रही है। रिटायर्ड आइपीएस मोहन सिंह बंग्याल ने इसी मंशा के साथ ही 2007 में रं समाज की बोली भाषा को संरक्षित करने के उद्देश्य से देवनागिरी लिपि में पहले शब्दकोश की रचना की और उसे प्रकाशित भी कराया। इसका अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ।
धारचूला क्षेत्र की दारमा, व्यास व चौंदास घाटी में रं समाज की आबादी रहती है। करीब एक दर्जन सेवारत आइएएस, आइएफएस व अन्य केंद्रीय सेवाओं के सेवारत अफसरों, 30 से अधिक पीसीएस अफसर, डेढ़ सौ के करीब डॉक्टर, सौ से अधिक इंजीनियर देने वाले इस इलाके की बोली-भाषा साहित्यकारों के लिए कौतूहल रही है।
रं समाज एक नजर में
2001 की जनगणना के अनुसार आबादी : 9487
साक्षरता : 64.4 प्रतिशत
स्थानीय बोली : बंबा, व्यंखू, तिंकरी, कुटी, दारमा
प्रमुख जड़ी-बूटियां : सालम पंजा, सालम मिश्री, सातुवा, किन्स, जब्बू, जटामासी, डोलू, बालछड़ी, गन्द्रयाणी, अतीश, यारसा गंबू, कूट, कुटकी
भारतीय रं बस्तियां : कूटी, नाबी, रोंगकोंग, गुंजी, नुपलच्यू, गब्यांग, बूंदी, लामारी, मालपा, जिप्ती, गाला, सिमखोला, बोंगबोंग, सिर्खा, रूंग, तीज्या, सिंदांग, सोसा, जयकोट, जयकोट, पत्ती, छिल्मा, छिलासों, हिमखोला, रोंतो, बैकू, रिमझिम, पांगू, ठानीधार, न्यू सोबला, दर, बोगलिंग, सेला, चल, नागलिंग, बालिंग, सोन, दुग्तू, दांतू, बोन, फिलम, गो, ढाकर, तीदांग, मार्छा, सीपू, खेत, कनज्योति,, छिरकिला, धारचूला, खोतिला, गलाती, निगालपानी, गोठी, कालिका, नयाबस्ती, छारछूम, बलुवाकोट, जौलजीवी
नेपाली रं बस्तियां : छंगरू, तिंकर, दुमलिंग, रपला, स्यंकं, दयोथला, तंताती, रायसों, छपटा, दार्चूला
सीमाएं : पूर्व में नेपाल, पश्चिम में जोहार क्षेत्र, उत्तर में तिब्बत, दक्षिण में डीडीहाट
भाषा को बल मिलेगा, थमेगा पलायन : दीवान
85 वर्षीय दीवान सिंह कहते हैं कि रं लोग विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले क्षेत्र में रहते हैं। दुर्गम स्थानों पर रहने के बाद भी यहां के लोगों ने पलायन नहीं किया है। भाषा के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े हैं और किसी का भी क्षेत्र से सम्पर्क नहीं कटा है। पीएम की बात से भाषा को तो बल मिलेगा ही साथ ही क्षेत्र से पलायन थमेगा।
चीन-नेपाल सीमा पर अवैतनिक प्रहरी है रंग समाज : कृष्णा
रं कल्याण संस्था के अध्यक्ष कृष्णा गब्र्याल का कहना है कि उनका समाज चीन और नेपाल की सीमा पर अवैतनिक प्रहरी के समान है। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध में भी समाज के लोगों ने गांवों से पलायन नहीं किया। इतना ही नहीं, उस समय सेना के लिए गोला बारूद यहां के लोगों ने अपनी पीठ पर ढोया और जवानों को भोजन उपलब्ध कराया। आज अपनी बोली, भाषा का संरक्षण कर रहे हैं।
साफ हो गया कि पीएम का सीमांत से गहरा लगाव : ह्यांकी
पूर्व प्रधानाचार्या भागीरथी ह्यांकी कहती हैं मन की बात से यह स्पष्ट हो गया कि इस सीमांत क्षेत्र से पीएम का कितना गहरा लगाव रहा है।
पीएम की बात से भाषा संरक्षण की जगी उम्मीद : राम सिंह
रं कल्याण संस्था के महासचिव राम सिंह ह्यांकी बोले, दुनिया में हजारों भाषाएं और बोली विलुप्त हो चुकी हैं। हमारी रं भाषा आज भी जीवित ही नहीं, बल्कि इसे संरक्षित भी किया जा रहा है।
सीएम बोले-हमारे लिए गर्व की बात
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह सिंह रावत ने ट्वीट कर कहा कि यह हम सभी के लिए गर्व की बात है और लोकभाषाओं के संरक्षण के लिए प्रेरणादायी भी है। उन्होंने कहा कि लोकभाषाओं के संरक्षण में आम लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
विदेश जाकर भी नहीं छोड़ी अपनी बोली-भाषा
पिथौरागढ़ जिले की सीमांत धारचूला तहसील की तीन घाटियों में रहने वाले रं समाज के लोग दुनियाभर में फैले हैं। गिनती में सीमित होने के बावजूद रं समाज के लोग विभिन्न क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। खास बात यह है कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी जैसे देशों में रहने के बाद भी रं समाज के लोग अपनी बोली-भाषा से दूर नहीं हुए हैं। गर्ब्यांग गांव के रहने वाले संजय गर्ब्यांग उर्फ संजू अमेरिका में काम करते हैं। अमेरिका में रह रहे संजय के बच्चे रं भाषा में बात करते हैं। इसी गांव के देवेंद्र गर्ब्यांग ऑस्ट्रेलिया में स्कूल चलाते हैं। गर्ब्यांग गांव निवासी कृष्णा बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में स्कूल चलाने वाले देवेंद्र के बच्चे आपस में रं भाषा में बात करते हैं।
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