25 साल में 200 से 2000 पहुंची राज्य के सबसे पुराने महिला काॅलेज की छात्रसंख्या
हल्द्वानी स्थित राज्य का सबसे पुराना महिला डिग्री कालेज इंदिरा प्रियदर्शिनी राजकीय स्नातकोत्तर महिला वाणिज्य महाविद्यालय आगामी 28 फरवरी को अपना 25 वां स्थापना दिवस मनाएगा। इन 25 सालों में कालेज ने कई उपलब्धियां अपने नाम दर्ज की हैं।
हल्द्वानी, जेएनएन : हल्द्वानी स्थित राज्य का सबसे पुराना महिला डिग्री कालेज इंदिरा प्रियदर्शिनी राजकीय स्नातकोत्तर महिला वाणिज्य महाविद्यालय आगामी 28 फरवरी को अपना 25 वां स्थापना दिवस मनाएगा। इन 25 सालों में कालेज ने कई उपलब्धियां अपने नाम की। खास बात ये है कि अपने स्थापना के पहले साल इस कालेज में महज 150 से 200 की संख्या में छात्राओं ने दाखिला लिया। अधिकांश छात्राएं हल्द्वानी और आसपास के क्षेत्र की थी। समय के साथ-साथ बदलाव हुए, नए पाठ्यक्रम शुरू हुए। जिसके चलते आज के समय में यहां प्रदेश भर के अलग-अलग जिलों की दो हजार से अधिक छात्राएं पढ़ती हैं।
राज्य का पहला महिला काॅलेज होने का गौरव
28 फरवरी 1996 में हल्द्वानी में महिला डिग्री काॅलेज शुरू हुआ था। इस समय तक राज्य उत्तराखंड राज्य नहीं बना था। राज्य बनने के बाद इसे राज्य का पहला महिला डिग्री कालेज होने का गौरव प्राप्त हुआ था।
कला संकाय के साथ शुरू हुई पढ़ाई
महिला कालेज जब शुरू हुआ तब इसमें कला संकाय के सात विषय की पढ़ाई होती थी। जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, इकानामिक्स, पालीटिकल साइंस, साइकोलाजी, गृह विज्ञान शामिल थे। 2001 में विज्ञान के कुछ विषय शुरू हुए।
काॅमर्स और साइंस फैकेल्टी अस्तित्व में आई, ऑनर्स शुरू
महिला काॅलेज में 2001 से 2005 के बीच वाणिज्य और साइंस फैकेल्टी भी शुरू हुई। इसके बाद से इस कालेज की तरफ छात्राओं का रुझान बढ़ा। आज भी यहां साइंस और कामर्स में अच्छी खासी संख्या में दाखिले होते हैं। 2015-16 सत्र में स्नातक में यहां इतिहास, भूगोल, संगीत, बीकाम आनर्स के अलावा स्नातकोत्तर में रसायन, भौतिक, पादप विज्ञान, एमकाम, एमए अंग्रेजी, हिंदी की पढ़ाई भी शुरू कराई गई।
एमबी काॅलेज की प्राध्यापक बनी पहली प्राचार्य
तत्कालीन समय में एमबीपीजी कालेज में बतौर अकाउंटेंट कार्यरत केडी परगाई ने बताया कि 1996 में जब कालेज शुरू हुआ तो उस समय व्यवस्था के तौर पर एमबी कालेज की बीएड विभाग की विभागध्यक्ष डा. मीरा सुयाल को महिला कालेज का प्राचार्य बनाया गया। बाद में डीपीसी होने के बाद उन्हें स्थाई प्राचार्य बना दिया गया था।