बंटवारे में सब लुटा देने वाला गोराया परिवार फिर खड़ा हुआ, आज पांच बच्चे उड़ा रहे जहाज
Goraya family of Tarai सियालकोट जिले का मिर्जा गोराया गांव (अब पाकिस्तान) सिख बहुल था। कुछ मुस्लिम परिवार भी थे। सभी एक दूसरे के साथ खुशी-खुशी रहते थे। इस बीच 1947 में विभाजन की खबर यहां पहुंची तो अचानक ही सबकुछ बदल गया।
जीवन सिंह सैनी, बाजपुर : independence day 2022 : आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। 75 सालों की उपलब्धियां गिना रहे हैं। गर्व और आत्मसम्मान के हर पल से युवा पीढ़ी को रूबरू करा रहे हैं। इस सब के बीच एक स्याह पहलू है देश के बंटवारे का।
रेडक्लिफ लाइन ने देखते ही देखते भारत के दो हिस्से कर दिए। घर छूटा। रिश्ते टूटे। हजारों परिवार उजड़े। जमा पूंजी लुट गई। बंटवारे का दंश झेल और बर्बादी के जख्मों के बाद भी कुछ ऐसे शरणार्थी रहे जिन्होंने खुद को नए भारत में स्थापित किया। ऐसे ही पुरुषार्थी हैं कृपाल सिंह (Kripal Singh Goraya )।
बंटवारे में सबकुछ पाकिस्तान छूट गया
बंटवारे के बाद पाकिस्तान में सब कुछ छोड़कर आए कृपाल सिंह के जख्म बड़े थे। उनका घर छूटा था। बचपन की गलियां छूटी। अपनी पहचान छूटी। दोस्त छूटे। सब यादकर उनकी आंखें भर आतीं। लेकिन अपने अतीत के दुख को भूलकर उन्होंने ऊधम सिंह नगर में ठिकाना बनाया।
कृपाल सिंह ने तराई को आबाद किया
कृपाल सिंह ने खुद के परिश्रम से तराई को आबाद किया। उनके आदर्शों को आत्मसात कर आज परिवार के पांच-पांच बच्चे पायलट बनकर देश की सेवा कर रहे हैं। उनके पौत्र ने उत्तराखंड राज्य स्थापना एवं बागबानी में बड़ा योगदान दिया। आज इस परिवार की बेटियां भी हवाई जहाज उड़ा रही हैं।
दौरान गले मिलने वाले दुश्मन बन गए
सियालकोट जिले का मिर्जा गोराया गांव (अब पाकिस्तान) सिख बहुल था। कुछ मुस्लिम परिवार भी थे। सभी एक दूसरे के साथ खुशी-खुशी रहते थे। इस बीच 1947 में विभाजन की खबर यहां पहुंची तो अचानक ही सबकुछ बदल गया। कल तक जो गले मिलते थे, वही सिख परिवारों की संपत्ति पर नजर गड़ाने लगे।
दामाद के प्रयास से बाजपुर में मिली जमीन
तेजी से बदलते हालात में कृपाल सिंह भी परिवार सहित किसी तरह बचते-बचाते पंजाब आ गए। इसी बीच तराई में जंगल आबाद करने की योजना चलाई जा रही थी। कृपाल सिंह को उनके दामाद कैप्टन बहादुर सिंह चीमा के प्रयास से बाजपुर विकासखंड के ग्राम विजपुरी में चार एकड़ भूमि मिल गई।
वन्यजीवों के बीच आबाद की आबादी
तब घना जंगल था। दिन में ही बाघ, हाथी व जंगली जानवर आस-पास मंडराते थे। ऐसे में अच्छे-अच्छे लोग यहां से पलायन कर जाते थे। लेकिन कृपाल सिंह सितंबर 1947 में अपने दो बेटों जोगेंद्र सिंह (Jogendra Singh Goraya) व सुरेंद्र सिंह गोराया (Surendra Singh Goraya) (उस समय कक्षा 9 व 11 के छात्र थे।) के साथ यहां आए। कठिन संघर्ष कर हालात को अपने पक्ष में किया।
गोराया परिवार का नाम रोशन कर रहे बच्चे
Goraya family of Tarai : यहां सुरेंद्र सिंह गोराया की छह बेटियां व एक बेटे का जन्म हुआ। अभी कृपाल सिंह व सुरेंद्र सिंह गोराया भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके पौत्र व पौत्रियां भारत में ही नहीं, विश्व में गोराया परिवार का नाम रोशन कर रही हैं।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन की आवाज बुलंद की
पौत्र प्रभुशरण सिंह गोराया ने तमाम विरोध के बीच उक्रांद की रैली बाजपुर में करा राज्य निर्माण की आवाज बुलंद की। सबसे पहले वर्ष 2004 में अमरूद की खेती शुरू कर बागवानी को बढ़ावा दिया। वर्ष 2017 में थाइलैंड से थाई प्रजाति मंगा कर 40 एकड़ भूमि में बागवानी शुरू की।
बेटियां भी उड़ा रही हैं हवाई जहाज
सुरेंद्र सिंह गोराया की छह बेटियां थीं, जिसमें बलजोत कौर के पुत्र सिकंदर सिंह विर्क व बेटी सिमरन कौर निजी कंपनी में पायलट हैं। उनकी दूसरी बेटी अमृतपाल कौर का बेटा जसजीत सिंह व तीसरी बेटी प्रभजोत कौर की बेटी महकजोत कौर भी पायलट हैं। एक ही परिवार से पांच पायलेट देश की सेवा कर रहे हैं।