हैदराबाद रेजीमेंट का नाम बदल कर 27 अक्टूबर 1945 को रखा गया था कुमाऊं रेजीमेंट
कुमाऊं दिवस का इतिहास अपने आप में आजादी की एक वीरगाथा समेटे हुए है। हैदराबाद रेजीमेंट (Hyderabad Regiment) में कुमाऊं के सैनिकों की अधिकता व दबदबा बढऩे से 27 अक्टूबर 1945 को इसका नाम ही बदल कर कुमाऊं रेजीमेंट (kumaon Regiment) रख दिया गया।
मनीस पांडेय, हल्द्वानी : कुमाऊं दिवस का इतिहास अपने आप में आजादी की एक वीरगाथा समेटे हुए है। हैदराबाद रेजीमेंट (Hyderabad Regiment) में कुमाऊं के सैनिकों की अधिकता व दबदबा बढऩे से 27 अक्टूबर 1945 को इसका नाम ही बदल कर कुमाऊं रेजीमेंट (kumaon Regiment) रख दिया गया। वहीं ठीक दो साल बाद देश की आजादी के बाद 27 अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान के नापाक इरादे को नाकामयाब करने के लिए भारतीय सेना ने पहली बार जम्मू कश्मीर में पैदल मार्च किया। जिससे कुमाऊं दिवस अपने आप में और ज्यादा खास हो गया।
कुमाऊं दिवस के पीछे रेजीमेंट की एक बेमिसाल ताकत है। जिसके बलिदान को याद करने के लिए कुमाऊं दिवस का आयोजन किया जा रहा है। मेजर बीएस रौतेला ने इस संबंध में एक आयोजन हल्द्वानी कुसुमखेड़ा के भूमिया बैंक्वेट हाल में किया है। जहां कुमाऊं रेजीमेंट, नागा रेजीमेंट, कुमाऊं स्काउट्स, पांच मैकेनाज्ड इंफेंट्री, तीन पैरा व पूर्व सैनिक मौजूद रहेंगे। मेजर बीएस रौतेला ने बताया कि 27 अक्टूबर के ही दिन 1947 को जम्मू कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरी सिंह के विशेष आवदेन पर भारतीय सेना की प्रथम इंफेट्री बटालियन ने कश्मीर को कूच किया और आजादी के बाद का पहला युद्ध लड़ा गया। जिसमें 4-कुमाऊं के मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत वीरता का सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस गौरवमयी दिवस को हर्ष और उल्लास से मनाने के लिए हर साल लोग एकत्र होते हैं।
मेजर बीएस रौतेला ने बताया कि 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद निजाम व हैदराबाद ने अपने आप को अलग राज्य घोषित कर दिया। निजाम नवाज औसफ झा ने हैदराबाद व बैरार को अलग राज्य घोषित किया। मैसूर के राजा हैदर अली व मराठा ने अलग होने के लिए अपनी गतिविधियां चला दी। अंग्रेजों ने निजाम हैदराबाद के साथ एक संधि की। जिसमें युद्ध की जरूरत पर 10 हजार सैनिक मांगे व सहायता का वचन दिया। इसके बाद सबसे पहले मैसूर का युद्ध किया गया। कुल चार युद्ध 1799 तक हुए और आखिर में टीपू सुल्तान मारा गया। अंग्रेजों के लिए यह बड़ी राहत की बात थी। 1891 में अंग्रेज अधिकारी हेनरी ने भारतीय राज्यों पर कब्जा करना शुरू कर दिया।
1857 में देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ। 1790 से 1890 तक कुमाऊं गोरखा लड़कों के अंडर में था। गोरखे हारे तो अंग्रेजों ने कुमाऊं में फौज बनाई। 24 अप्रैल 1815 में इस फौज का नाम कुमाऊंनी बटालियन रखा गया। यह बटालियन बाद में गोरखा राइफल के नाम से जानी गई। अंग्रेजों ने अल्मोड़ा के सिटौली के पास 23 अक्टूबर 1917 को पहली बटालियन खड़ी की। इस बटालियन को युद्ध में भेज दिया गया। बाद में यह बटालियन हैदराबाद रेजीमेंट के साथ लड़ी और 15 मार्च 1923 को हैदराबाद के साथ शामिल हो गई। हैदराबाद में कुमाऊं के लोगों का दबदबा बढऩे लगा। ऐसे में 27 अक्टूबर 1945 को हैदराबाद रेजीमेेंट का नाम बदलकर कुमाऊं रेजीमेंट रख दिया गया।