Move to Jagran APP

Holi 2022: उत्तराखंड की कुमाऊंनी होली के अंग्रेज भी थे दीवाने, 1850 से आयोजित हो रही होली की बैठकी

Kumaoni Holi उत्तराखंड की कुमाऊंनी होली सिर्फ एक त्योहार नहीं है। यह परंपरा शास्त्रीय संगीत व उल्लास का संगम है। करीब एक महीने चलने वाले इस उत्सव को सौ वर्ष से भी अधिक हो रहा पर रंग अभी गाढ़ा ही है।

By Prashant MishraEdited By: Tue, 15 Mar 2022 02:49 PM (IST)
Holi 2022: उत्तराखंड की कुमाऊंनी होली के अंग्रेज भी थे दीवाने, 1850 से आयोजित हो रही होली की बैठकी
1850 से होली की बैठकें नियमित होने लगीं और 1870 से इसे वार्षिक समारोह के रूप में मनाया जाने लगा।

जागरण संवाददाता, बागेश्वर : कुमाऊंनी होली शास्त्रीय संगीत से उपजी है। ग्वालियर व मथुरा से भी मुस्लिम फनकार यहां आते रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने में भी कुमाऊं में होली का गायन होता रहा। 1850 से होली की बैठकें नियमित होने लगीं और 1870 से इसे वार्षिक समारोह के रूप में मनाया जाने लगा। 

राजा कल्याण चंद्र के समय दरबारी गायकों के भी संकेत मिलते हैं। अनुमान लगाया जाता है कि दरभंगा की होली में अनोखा सामंजस्य है। निदेशक हिमालय शोध संगीत समिति डा. पंकज उप्रेती ने बताया कि कन्नौज व रामपुर की गायकी का प्रभाव भी होली पर पड़ा।

होली गायकी को सोलह मात्राओं में पिरोया। मुगल शासक व कलाकारों को भी होली गायकी की यह शैली रिझा गई और वह गा उठे किसी मस्त के आने की आरजू है। इसी प्रकार की एक रचना जिसमें लखनऊ के बादशाह और कैसरबाग का उल्लेख है। अधिकतर यह राग काफी में गाई जाती है।

प्राचीन वर्ण व्यवस्था की एक मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली व होली प्रमुख त्योहार बनकर उभरे। पौष के प्रथम रविवार को विष्णुपदी होली के बाद वसंत, शिवरात्रि के अवसर पर क्रमवार गाते हुए होली निकट आते-आते अति श्रृंगारिकता इसके गायन-वादन में सुनाई देती है।

झोड़ा-चांचरी का भी संगम

होल्यार डा. गोपाल कृष्ण जोशी ने बताया कि गांवों में होली के साथ-साथ झोड़ा-चांचरी, लोक नृत्य शैली का चयन भी है। कुमाऊं की होली के काव्य स्वरूप को देखने से पता चलता है कि कितनी विस्तृत भावना इन रचनाओं में भरे हैं।

इसका संगीत पक्ष भी शास्त्रीय और गहरा है। पहाड़ का प्रत्येक कृषक आशु कवि है। गीत के ताजा बोल गाना और फिर उसे विस्मृत कर देना सामान्य बात थी। 

विद्वानों के बारे में पता चलता है कि इनमें सबसे प्रथम पंडित लोकरत्न पंत गुमानी हैं। उनकी रचना जो राग श्याम कल्याण के नाम से अधिकांश सुनाई देती है। मुरली नागिन सों, बंशी नागिन सों, कह विधि फाग रचायो, मोहन मन लीना है।