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उत्तराखंड में पहाड़ी खाने का जायका हिमायली जड़ी-बूटी के बिना अधूरा

पहाड़ी खाने का जायका हिमालयी जड़ी-बूटी के बिना अधूरा ही है। समय के साथ अब पहाड़ी व्यंजन प्राय लुप्त सा हो गया है। फिर भी पहाड़ के गांवों में यह स्वाद आज भी जिंदा है। संरक्षण के अभाव में औषधीय हिमालयी जड़ी-बूटियां भी लुप्त होती ही दिख रही हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 09:26 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 09:26 AM (IST)
उत्तराखंड में पहाड़ी खाने का जायका हिमायली जड़ी-बूटी के बिना अधूरा
उत्तराखंड में पहाड़ी खाने का जायका हिमायली जड़ी-बूटी के बिना अधूरा

बागेश्वर, चंद्रशेखर द्विवेदी : पहाड़ी खाने का जायका इसमें पड़ने वाली हिमालयी जड़ी-बूटी के बिना अधूरा ही है। समय के साथ अब पहाड़ी व्यंजन प्राय: लुप्त सा हो गया है। फिर भी पहाड़ के गांवों में यह स्वाद आज भी जिंदा है। संरक्षण के अभाव में औषधीय हिमालयी जड़ी-बूटियां भी लुप्त होती ही दिख रही हैं।

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अगर आप कोई भी पहाड़ी व्यंजन खा रहे हो। तो उसको आप उसकी खुशबू से उसे आसानी से पहचान सकते है। खाने को स्वादिष्ट बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तड़के की होती है। और यह तड़का लगता है हिमालयी जड़ी-बूटियों से। यह जड़ी बूटियां जख्या, गंदरायण, जम्बू, काली जीरी, जीरा, धनिया, लाल मिर्च, अदरक, लहसून, प्याज, मेथी, राई, चमसूर आदि आवश्यक रुप से हर खाने में डाली जाती है।

हर खाने के लिए के अलग प्रकार की जड़ी-बूटी का प्रयोग होता है। इसको वही उपयोग कर सकता है जो इसकी तासीर जानता हो। बागेश्वर मुख्य विकास अधिकारी डीडी पंत ने बताया कि पहाड़ी जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए लगातार कार्य किया जा रहा है। स्वयं सहायता समूह भी इस कार्य में जुड़े हुए है। उनको बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है।

जड़ी बूटियों के प्रयोग से खाने का स्वाद ही बदल जाता है। जख्या का प्रयोग आलू के गुटके, पिड़ालू के गुटके, पल्यौ (कढ़ी), तोरी, कद्दू आदि की सब्जी में किया जाता है। जख्या उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक मसाला है। सब्जियों के अतिरिक्त इसका प्रयोग मट्ठे में भी खूब किया जाता है।

गंदरायण और जंबू भी उच्च हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली यह जड़ी बूटी भूख बढ़ाने के काम भी आता है। जंबू का प्रयोग मीट, दाल, सब्जी, सूप, सलाद और अचार आदि में किया जाता है। जम्बू प्याज या लहसुन के पौधे के जैसा ही दिखता है। गंदरायण राजमा, कड़ी और गहत, अरहर व भट के डुबके में इसका छौंका व्यंजन की खुशबू और जायके को कई गुना बढ़ा देता है।

कद्दू की सब्जी में सामान्यतः अजवाइन का तड़का लगाया जाता है। इसके अलावा कद्दू की सब्जी में छौंके मेथी के छौंके का प्रयोग किया जा रहा है। मेथी का प्रयोग कद्दू की सब्जी के अलावा कड़ी में भी किया जाता है। काले जीरा का प्रयोग उड़द की दाल और पिड़ालू की सब्जी में किया जाता है।

अरहर और मसूर में काले जीरा का प्रयोग नहीं किया जाता है। सूखी लाल मिर्च का प्रयोग, भूनी हुई मिर्च का प्रयोग सब्जियों के उपर डालकर किया जाता है। इसे भोजन के साथ अलग से भी खाया जात है। हींग,धनिया प्रदेश के अलावा देश के अन्य भागों में भी होता हैं।


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