उत्तराखंड के 11 हाथी कॉरिडोर में अतिक्रमण पर हाई कोर्ट सख्त, मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक व सीटीआर निदेशक से मांगा जवाब
उत्तराखंड के 11 हाथी कॉरिडॉर घोषित वन क्षेत्रों में अतिक्रमण का हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया है। इस मामले में कोर्ट ने मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक व निदेशक सीटीआर से जवाब मांगा है।
नैनीताल, जेएनएन : उत्तराखंड के 11 हाथी कॉरिडॉर घोषित वन क्षेत्रों में अतिक्रमण का हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया है। कोर्ट ने इस मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक व निदेशक कार्बेट नेशनल पार्क व डीएफओ रामनगर को 15 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने इस मामले में सख्त नाराजगी जताते हुए पूछा है कि हाथियों को हाईवे पर रोकने के लिए मीर्ची खिलाने, फायरिंग व पटाखे फोडऩे जैसे पशुु क्रूरता भरे कृत्य करने की अनुमति किसने दी है।
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में दिल्ली की संस्था इंडीपेंडेंट मेडिकल इनिसिएटिव सोसाइटी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें कहा गया है कि राज्य के 11 हाथी कॉरिडोर मार्ग में अतिक्रमण पर व्यावसायिक भवनों का निर्माण कर दिया गया। रामनगर मेें 27 किलोमीटर हाईवे में तीन हाथी कॉरिडोर हैं। ढिकुली क्षेत्र का कॉरिडोर डेढ़ सौ से अधिक व्यावसायिक निर्माण की वजह से बंद हो चुका है। मोहान क्षेत्र में निर्माण होने व रात्रि में वाहनों की आवाजाही से हाथियों को कोसी तक पहुंचने में बाधा उत्पन्न हो गई है। मलानी कोटा, चिल्किया कोटा व दक्षिणी पतली दून भी करीब-करीब बंद हो चुका है। कुछ बड़े व्यावसायिक भवनों में शादियों और पार्टी में होने वाले शोरगुल से वन्य जीवों पर खलल पड़ रहा है। वन महकमे द्वारा जंगलों में मानव दखलंदाजी पर अंकुश के बजाय हाथियों को हाईवे पर आने से रोकने के लिए मिर्च पाउडर व पटाखों का उपयोग किया जा रहा है। जिससे हाथियों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है और वह हिंसक हो रहे हैं। पिछले एक साल में ही हाथियों के हमले के 20 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।
रामनगर मोहान मार्ग पर पिछले छह माह में 12 मामले दर्ज किए गए हैं। एक घंटे में करीब 126 वाहनों की आवाजाही से वन्य जीवों के लिए खतरा पैदा हो गया है। याचिका में केंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय की रिपोर्ट को दरकिनार कर इन कॉरिडोर में पर्यटन गतिविधियों पर सवाल खड़े करते हुए केंद्र सरकार की संस्तुतियां लागू करने की मांग उठाई गई है। याचिकाकर्ता के अनुसार एक हाथी रोजाना 225 लीटर पानी पीता है, जिसके लिए वह कोसी में उतरते हैं मगर वन महकमे द्वारा उनका मार्ग अवरुद्ध कर दिया गया है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मामले में सख्त रवैया अपनाते हुए 15 अक्टूबर तक जवाब मांगा है।