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पहाड़ में शिक्षकों की कमी और हड़ताल पर हाईकोर्ट सख्त

हाईकोर्ट ने दूरस्थ क्षेत्रों के इंटर कॉलेजों में शिक्षकों की कमी के मामले में सरकार को स्थिति साफ करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही शिक्षकों की हड़ताल पर भी सख्त रुख अपनाया है।

By BhanuEdited By: Published: Thu, 02 Aug 2018 09:58 AM (IST)Updated: Thu, 02 Aug 2018 09:58 AM (IST)
पहाड़ में शिक्षकों की कमी और हड़ताल पर हाईकोर्ट सख्त
पहाड़ में शिक्षकों की कमी और हड़ताल पर हाईकोर्ट सख्त

नैनीताल, [जेएनएन]: हाई कोर्ट ने अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ व चम्पावत के दूरस्थ क्षेत्रों के चुनिंदा इंटर कॉलेजों में शिक्षकों की कमी के मामले में सरकार को स्थिति साफ करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई सोमवार को होगी। साथ ही शिक्षकों की हड़ताल पर भी सख्त रुख अपनाया है। 

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मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ में अल्मोड़ा के जीआईसी मासी अभिभावक संघ अध्यक्ष गोपाल दत्त, स्याल्दे के महेंद्र गिरी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया है कि मासी जीआईसी में शिक्षकों के 11 पद जबकि स्याल्दे में प्रधानाचार्य समेत चार प्रवक्ता, सात एलटी के पद रिक्त हैं। जीआईसी मछियाड़ चम्पावत में कोई प्रवक्ता नहीं है और जीआईसी पीपली पिथौरागढ़ में 254 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं मगर एक भी प्रवक्ता नहीं है। 

जीआईसी रोड़ीपाली पिथौरागढ़ में दस प्रवक्ता पदों के सापेक्ष आठ रिक्त, अल्मोड़ा के जीआईसी भल्यूटा में प्रवक्ता के नौ पद रिक्त, बागेश्वर में जीआईसी भन्तोला में 20 विद्यार्थी व दो शिक्षक हैं। इन विद्यालयों में शिक्षकों की कमी से पठन-पाठन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, साथ ही छात्र-छात्राएं पलायन करने को मजबूर हैं। 

याचिका में कहा गया कि शैक्षणिक सत्र शुरू हुए चार माह बीत चुका है मगर शिक्षकों के अभाव में गरीबों के बच्चे या तो बिना अध्यापक के अध्यापन कर रहे हैं या स्कूल छोड़ने को मजबूर हैं। कोर्ट ने नियमित शिक्षक नियुक्त करने के आदेश पारित किए थे, मगर अब तक शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई। ॉ

याचिका में नियमित शिक्षकों की नियुक्ति होने तक वैकल्पिक व्यवस्था करने की गुहार भी लगाई गई है। खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए सरकार से सोमवार तक स्थिति साफ करने के निर्देश दिए हैं। शिक्षकों की कमी को लेकर मासी के विद्यार्थियों ने मुख्य न्यायाधीश को पाती भी भेजी थी।

सरकार बताए, शिक्षक हड़ताल पर हैं या नहीं

राजकीय शिक्षक संघ के बेमियादी आंदोलन के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि राजकीय शिक्षक संघ के बैनर तले शिक्षक हड़ताल पर हैं या नहीं। कोर्ट ने सरकार को इस मामले में स्थिति साफ करने के निर्देश दिए हैं।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ में ऊधमसिंह नगर के बकुलिया सुभाषनगर निवासी अजय तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया है कि सरकारी विद्यालयों में पहले से शिक्षकों की कमी है, फिर भी शिक्षक हड़ताल पर जा रहे हैं। जिससे छात्रों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। 

याचिका में शिक्षकों पर एस्मा लगाने की मांग करते हुए कानूनी कार्रवाई का आग्रह किया गया है। सुनवाई के दौरान राजकीय शिक्षक संघ के अधिवक्ता की ओर से बताया गया कि शिक्षक हड़ताल पर नहीं हैं। शिक्षकों के आंदोलन से शिक्षण कार्य बाधित नहीं हो रहा है। जनहित याचिका में जो तथ्य कहे गए हैं, वो गलत हैं। शिक्षक संघ की 19 सूत्रीय मांगें लंबित हैं, सरकार के असंवेदनशील रवैये के चलते संगठन संगठन शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहा है। कुछ पदाधिकारी अनशन पर हैं। 

जवाब में कहा गया है कि शिक्षक संघ मान्यता प्राप्त संगठन है। संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग कर रहा है। खंडपीठ ने शिक्षक संघ से आंदोलन समाप्त करने की अपेक्षा की है तो संघ की ओर से सरकार को मांगों के संबंध में दिशा-निर्देश देने की आग्रह करते हुए आंदोलन समाप्त करने की बात कही है। वहीं, कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि शिक्षक संघ हड़ताल पर है या नहीं।

आंदोलन में शामिल शिक्षकों की बन रही सूची

हाई कोर्ट में शिक्षक संघ के हड़ताल पर नहीं होने के वक्तव्य देने के बाद शिक्षा विभाग ने जिलों से हड़ताल या आंदोलन में शामिल शिक्षकों का ब्योरा जुटाने के साथ ही समाचार पत्रों की कटिंग जुटाने का काम तेज कर दिया है। 

सूत्रों के अनुसार आंदोलन में शामिल शिक्षकों के बारे में यह भी ब्योरा जुटाया जा रहा है कि वह अवकाश पर आंदोलन में शामिल हुए थे या बिना अवकाश के। पुख्ता सूत्रों के अनुसार सरकार कोर्ट के सामने आंदोलन में शामिल शिक्षकों की पूरी कुंडली पेश करने की योजना पर काम कर रही है। शिक्षकों के इस आंदोलन के मामले में कोर्ट में हो रही सुनवाई को देखते हुए शिक्षा निदेशक आरके कुंवर खुद नैनीताल पहुंचे थे।

दस दिन में पर्यावरणीय क्लीयरेंस कोर्ट में प्रस्तुत करें

रुद्रप्रयाग समेत पूरे प्रदेश में नदियों के पांच सौ मीटर दायरे में हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट व ऑल वेदर रोड निर्माण पर रोक मामले से प्रदेश के साथ भी केंद्र सरकार की भी चिंता भी उजागर हुई है। 

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल कर ऑलवेदर रोड पर लगी रोक हटाने का आग्रह किया गया है। इधर मुख्य सचिव ने हलफनामा दायर कर कहा है कि प्रदेश में नदियों के पांच सौ मीटर दायरे में मलबा निस्तारण नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने केंद्र से इस मामले में पर्यावरणीय क्लीयरेंस दस दिन में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।

हिमाद्री जनकल्याण संस्थान रुद्रप्रयाग द्वारा जनहित याचिका दायर की गई थी। जिसमें कहा गया था कि मंदाकिनी व अन्य नदियों में निर्माणाधीन हाइड्रो प्रोजेक्ट तथा नदी किनारे बन रही ऑलवेदर रोड का मलबा फेंका जा रहा है, जिससे नदी प्रदूषित हो रही है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में राज्य में निर्माणाधीन हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी। 

वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ में मामले में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने पर्यावरणीय चिंताएं कोर्ट के समक्ष रखी। इस दौरान सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय की ओर से प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया। जिसमें रोक के फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया। साथ ही कहा कि इस प्रोजेक्ट की पीएमओ द्वारा मॉनिटरिंग की जा रही है।

खंडपीठ ने नदी के दायरे से पांच सौ मीटर में मलबा निस्तारण के आदेश में संशोधन से इन्कार कर दिया। साथ ही कहा कि ऑलवेदर रोड ही नहीं अन्य सड़कें भी महत्वपूर्ण हैं। साथ ही मंत्रालय से पर्यावरणीय क्लीयरेंस दस दिन के भीतर प्रस्तुत करने के निर्देश दिए। अगली सुनवाई 13 अगस्त नियत की गई है।

हाई कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी

हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर केंद्र व राज्य सरकार द्वारा रोक हटाने एवं ऑल वेदर रोड को अत्यंत जरूरी बताए जाने पर हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि सरकार ऑल वेदर रोड पर तो पूरा ध्यान दे रही है, मगर पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क सुविधाओं का ख्याल नहीं है। 

दैनिक जागरण में 29 जुलाई को प्रकाशित खबर का संज्ञान लेते हुए कहा कि पिछले दिनों बागेश्वर के एक गांव से गर्भवती महिला को तीन दिन तक पालकी में 56 किमी दूर अस्पताल ले जाया गया। इतनी बड़ी समस्याएं होने के बाद भी आज तक सरकारें स्वास्थ्य व सड़क सुविधा के लिए कोई ठोस उपाय नहीं कर पाई।  

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