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बीपीएड डिग्रीधारकों को नियुक्ति मामले में हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

हाई कोर्ट ने बुधवार को बीपीएड डिग्रीधारकों के मामले में सुनवाई की। याचिका में कहा गया है कि 2010 तक बीपीएड की डिग्री ले चुके अभ्‍यर्थियों को राज्‍य के प्राथमिक विद्यालयों में विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से नियुक्ति देने का प्रावधान था।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 09:13 AM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 09:13 AM (IST)
बीपीएड डिग्रीधारकों को नियुक्ति मामले में हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
बीपीएड डिग्रीधारकों को नियुक्ति मामले में सरकार से मांगा जवाब

जागरण संवाददाता, नैनीताल : हाई कोर्ट ने बुधवार को बीपीएड डिग्रीधारकों के मामले में सुनवाई की। याचिका में कहा गया है कि 2010 तक बीपीएड की डिग्री ले चुके अभ्‍यर्थियों को राज्‍य के प्राथमिक विद्यालयों में विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से नियुक्ति देने का प्रावधान था। जबकि सरकार ने 2012 में इस नियमावली में संशोधन कर बीपीएड डिग्रीधारकों को इससे वंचित कर दिया। चार जुलाई 2012 को निदेशक प्रारंभिक शिक्षा ने सरकार को पत्र लिखकर कहा कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत बालकों के शारीरिक विकास को अनुदेशकों की नियुक्ति के लिए 2012 की नियमावली में संशोधन किया जाए, लेकिन उनके इस पत्र पर सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की, जबकि प्राथमिक विद्यालयों में योग एवं शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम एनसीईआरटी से पूर्व से ही निर्धारित है। मामले में सरकार को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

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बुधवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ में हिमांशु कुमार समेत 17 अन्य की याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें कहा गया है कि 2010 तक बीपीएड डिग्रीधारकों को राच्य के प्राथमिक विद्यालयों में विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से नियुक्ति देने का प्रावधान था, लेकिन सरकार ने 2012 में इस नियमावली में संशोधन कर बीपीएड डिग्रीधारकों को इससे वंचित कर दिया।

चार जुलाई 2012 को निदेशक प्रारंभिक शिक्षा ने सरकार को पत्र लिखकर कहा कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत बालकों के शारीरिक विकास को अनुदेशकों की नियुक्ति के लिए 2012 की नियमावली में संशोधन किया जाए, लेकिन उनके इस पत्र पर सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की, जबकि प्राथमिक विद्यालयों में योग एवं शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम एनसीईआरटी से पूर्व से ही निर्धारित है। पूर्व में कोर्ट ने निदेशक प्रारंभिक शिक्षा को मामले में निर्णय लेने के निर्देश दिए थे लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी इस विषय पर कोई निर्णय नही लिया गया, जिसकी वजह से उनको फिर से न्यायालय की शरण में आना पड़ा।


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