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मैं हारा जरूर, मगर कभी रण नहीं छोड़ा: हरदा

फेसबुक पोस्ट के जरिये विरोधियों पर निशाना साधते हुए पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि महाभारत के युद्ध में अर्जुन घाव लगने पर रोमांचित होते थे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 07:08 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 07:08 PM (IST)
मैं हारा जरूर, मगर कभी रण नहीं छोड़ा: हरदा
मैं हारा जरूर, मगर कभी रण नहीं छोड़ा: हरदा

जागरण सवंाददाता, हल्द्वानी: फेसबुक पोस्ट के जरिये विरोधियों पर निशाना साधते हुए पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि महाभारत के युद्ध में अर्जुन घाव लगने पर रोमांचित होते थे। सियासी सफर की शुरुआत से ही मुझ पर भी कई घाव लगे और हार भी मिली। इसके बावजूद निष्ठा नहीं बदली और कभी रण भी नहीं छोड़ा। सियासी हारों पर चर्चा करने वालों लोगों पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि जिनके वार्ड से कभी काग्रेस नहीं जीती, वो लोग भी मुझे मेरी हारों का स्मरण करवा रहे हैं।

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अपने बयान व विरोध के तरीकों से अक्सर सरकार को परेशान करने वाले पूर्व सीएम व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस के दिग्गजों के बीच बागियों को लेकर इन दिनों अजब स्थिति बन चुकी है। प्रदेश नेतृत्व उनकी वापसी को लेकर दरवाजे खुले होने की बात कह रहा है। जबकि हरदा पुराने स्टैंड पर कायम हैं। इस बीच कुछ लोग हरदा की राजनीतिक हारों की गिनती में भी जुट गए। जिसे लेकर हरदा ने फेसबुक पर लिखा कि मैं उन बच्चों का आभारी हूं, जिनके माध्यम से मेरी हार गिनवाई जा रही है। इनमें से कई योद्धा तो आरएसएस की क्लास से सीखे हुनर आजमा रहे हैं। जब पहली हार झेलने के बाद मैं दोबारा युद्ध के लिए कमर कस रहा था, उस समय यह लोग जन्म ले रहे थे।

इस टिप्पणी के जरिये हरदा ने अपने सियासी अनुभव और पारी को लेकर भी इशारा कर दिया। उन्होंने ने आगे कहा कि कुछ लोगों ने इतनी बार अपने पूर्वजों का नाम भी नहीं लिया होगा, जितनी बार मेरी चुनावी हारों की गिनती कर डाली, मगर इसमें भी वे चूक गए। क्योंकि, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चम्पावत व बागेश्वर में तो मैं 1971-72 से चुनावी हार-जीत का जिम्मेदार बन गया था। न जाने कितनों को लड़ाया और उनमें से कितने हार गए। पूर्व सीएम ने कहा कि चुनावी हारों के अंकगणित लगाने वालों को अपने गुरुजनों से पूछना चाहिए कि उन्होंने अपने जीवन काल में कितनों को लड़ाया और उनमें से कितने जीते।


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