बेतरतीब विकास और ड्रेनेज सिस्टम का उचित प्रबंध न होने से बारिश की मार झेलती है हल्द्वानी
कंकरीट का जंगल बनते महानगर की ड्रेनेज व्यवस्था को लेकर प्रशासन अब तक स्थायी योजना नहीं बना पाया है।
हल्द्वानी, जेएनएन : हल्द्वानी की पहचान कुमाऊं के प्रवेश द्वार के साथ ही आर्थिक राजधानी के रूप में भी होती है। यहां की आबोहवा, संशाधन और रोजगार पहाड़ से लेकर मैदान तक के लोगों को आकर्षित करती है। यही कारण है शहर का विस्तार काफी तेजी से होता जा रहा है। कंकरीट का जंगल बनते महानगर की ड्रेनेज व्यवस्था को लेकर प्रशासन अब तक स्थायी योजना नहीं बना पाया है। यही कारण है बरसाती मौसम के दौरान नाले-नालियां उफान पर आने के साथ ही सड़कें और गलियां तलैया बन जाती है। नगर प्रशासन हर साल सफाई के नाम पर लाखों रुपया बहाता है, लेकिन बरसात उनके ड्रेनेज व्यवस्था के दावों को धो डालती है।
नगर निगम का विस्तार होने के बाद वार्डों की संख्या 30 से बढ़कर 60 पहुंच गयी है और जनसंख्या लगभग पांच लाख है। पुराने 30 वार्डों का परिसीमन तक 33 वार्ड बनाए गए और ग्रामीण क्षेत्र के इलाकों को नगर निगम में शामिल कर 27 नए वार्ड बनाए गए हैं। हर साल रोजगार व सुविधाओं की आस में गांवों से पलायन कर लोग हल्द्वानी पहुंच रहे हैं और धीरे-धीरे यहीं के होकर रह जा रहे हैं। ऊधम सिंह नगर में सिडकुल खुलने से भी हल्द्वानी की आबादी में इजाफा हुआ है। यहां की आबोहवा और सुविधाओं की वजह से सिडकुल में काम करने वाले लोग तक हल्द्वानी में रहने को प्राथिकता देते हैं। हालात ये है कि पुराना शहर पहले ही पूरी तरह से भवानों से पैक हो चुका है। नए शहर में तेजी से निर्माण कार्य चल रहे हैं, लेकिन ड्रेनेज को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है।
रकसिया नाले की निकासी की नहीं बन पायी योजना
बिठोरिया से लेकर प्रेमपुर लोश्ज्ञानी तक रकसिया नाला हर साल तबाही मचाता है। प्रेमपुर लोश्ज्ञानी से आगे नाले की निकासी बंद है। जिस कारण बरसात में उफान पर आने पर नाला कालानियों में घुस जाता है और गलियों से लेकर घरों तक कचड़े के ढेर बना देता है। नाले के तबाही मचाने के बाद हर साल प्रशासनिक अमला हरकत में दिखता है, लेकिन मौसम बदलने के साथ ही अफसरों की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं तो लोग भी बुरा सपना समझकर भूल जाते हैं। अगले वर्ष नाले के रौद्र रूप लेने पर फिर अफसर व लोगों की नींद कुछ समय के टूटती है। इसके साथ ही नाले की निकासी को लेकर जमीन की समस्या भी प्रशासन के आगे आड़े आ रही है। जमीन के दाम आसमान छू चुके हैं। जिस कारण नाला निकासी के लिए भूमि की उपलब्धता लगातार मुश्किल बनती जा रही है।
इंदिरानगर नाले के निकासी प्रस्ताव को स्वीकृति का इंतजार
इंदिरानगर नाला हर साल इंदिरानगर के साथ ही गौजाजाली और बरेली रोड के इलाकों में तबाही मचाता है। इस नाले को बरेली रोड पर जाकर सिंचाई नहर में छोड़ा जाता है। जिससे ये नाला खेतों तक गंदगी के ढेर लगा देता है। इस साल मानसून सत्र में नाले की तबाही देखकर मंडलायुक्त ने नगर प्रशासन, नगर निगम, सिंचाई व जल संस्थान के अफसरों की बैठक ली। नाले की निकासी गौला किनारे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में करने का निर्णय लेकर सिंचाई विभाग को प्रस्ताव बनाने के लिए कहा गया। शुरुआत में तो सिंचाई के अफसर नाला निकासी से हाथ खींचने लगे, लेकिन मंडलायुक्त की सख्ती पर डीपीआर बनाने की कवायद शुरू की गयी। चंद दिन पहले सिंचाई विभाग ने डीपीआर तैयार कर मंडलायुक्त को भेज दी है। इस प्रस्ताव को स्वीकृत का इंतजार नगरवासी कर रहे हैं।
नाले-नालियों की सफाई और रखरखाव में सालाना डेढ़ करोड़ खर्च
नगर निगम हर साल नाले-नालियों की सफाई व रखरखाव में डेढ़ करोड़ रुपये तक खर्च कर रहा है। इसके बावजूद बरसात होने पर लोगों को इसका फायदा नहीं मिल पाता है। नगर निगम के सूत्र बताते हैं कि शहर में 14 नाले हर साल बरसात में उफान पर आते हैं। जिनकी सफाई के सालाना 15 लाख रुपये तक खर्च किया जाता है। नालों की सफाई कराना भी अस्थायी निदान के लिए किया जाता है।
मास्टर प्लान बनाने की तैयारी अब भी फाइलों में
शहर के नियोजित विकास के लिए मास्टर प्लान बनाना अत्यंत जरूरी हो गया है। इसके बावजूद मास्टर प्लान बनाकर लागू करने की कवायद अब भी कागजों तक सीमित है। मास्टर प्लान में शहर की हर कालोनी, मोहल्ले, बस्ती व क्षेत्र के पूरे आंकड़ रहेंगे। इसके अलावा अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्रों पर मिलने वाली सुविधाएं, शिक्षा का स्तर, स्कूलों की संख्या, परिवहन, पानी, बिजली, शौचालय, सीवर की सुविधा शामिल होगी। इसके साथ ही शहरी विस्तार का विश्लेषण करने के साथ मौजूदा भूमि का इस्तेमाल व भविश्य की जरूरतों का आकलन होगा।