महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की उत्तराखंड मेंं सक्रियता से हलचल
राजभवन छोड़ भगत सिंह कोश्यारी की राजनीतिक कर्मभूमि में सक्रियता से एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गयी है। सियासी पिच पर मेंटोर की भूमिका से उनके फिर से सक्रिय राजनीति में आने के संकेत दे रही है।
चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा : राजभवन छोड़ भगत सिंह कोश्यारी की राजनीतिक कर्मभूमि में सक्रियता से एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गयी है। सियासी पिच पर मेंटोर की भूमिका से उनके फिर से सक्रिय राजनीति में आने के संकेत दे रही है। खैर जो भी हो चुनावी दीपावली में आकर उन्होंने राजनीतिक बम, पटाखे तो फोड़ ही दिए हैं।
उत्तराखंड बनने के बाद भगत सिंह कोश्यारी प्रदेश की राजनीति हमेशा अस्थिरता के लिए सुर्खियों में रहे। यही कारण था कि पहले केंद्रीय नेतृत्व ने 2007 में राज्यसभा भेजा। उसके बाद 2014 में लोकसभा का टिकट देकर प्रदेश की राजनीति से अलग कर लुटियंस दिल्ली के गलियारों में भेज दिया गया। जब यहां से भी उन्होंने प्रदेश की राजनीति में सक्रियता नहीं छोड़ी तो 2019 उन्हें राज्पाल बनाकर महाराष्ट्र भेज दिया।
चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर उनके उत्तराखंड प्रेम ने सियासी हलचलें तेज कर दी हैं। इस बार भगतदा के लिए सियासी पारी खेलने के लिए मुफीद जमीन तैयार हो गयी है। चार माह पहले उनके बेहद करीबी पुष्कर सिंह धामी का राजतिलक। उसके बाद उनकी लोकसभा सीट के उत्तराधिकारी अजय भट्ट को मंत्री पद। ऐसा माना जाता है कि इस बड़े राजनीतिक उलटफेर की पटकथा राजभवन से लिखी गई।
उम्र की बाध्यता के कारण इस बार अपने लिए नहीं, अपने करीबियों के लिए बैटिंग के लिए पिच तैयार की जा रही है। इस बार उनकी भूमिका मेंटोर के रूप में देखी जा रही है। महाराष्ट्र में राज्यपाल होने के दौरान जो उन्होंने किया, उसने केंद्रीय नेतृत्व पर भी उनकी मजबूत पकड़ बनाई। अब प्रदेश से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक उनके बढ़ते कद ने उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को फिर बढ़ा दिया है।
दो वर्ष बाद चुनाव से ठीक पहले पहले राजभवन छोड़ उनका पिथौरागढ़ और पैतृक घर नामती चेताबगड़ में एक सप्ताह का प्रवास कुछ नए राजनीतिक संकेत दे रहा है। जिस तरह उत्तरप्रदेश चुनाव को देखते हुए उत्तराखंड के राज्यपाल रहीं बेबी रानी मौर्य पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने भरोसा जताया। उसी तरह भगत दा पर भी केंद्रीय नेतृत्व दाव खेल सकता है।
कपकोट सीट पर है नजर
कपकोट विधानसभा से भगत सिंह कोशियारी ने प्रदेश में अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। दो बार लगातार यहां से जीत विधानसभा में पहुंचे। राच्य बनने के बाद चार चुनाव हुए। जिसमें तीन बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस को यह सीट मिली। अभी यह सीट बीजेपी के पास है। चुनाव आते ही इस सीट पर भी घमासान मचा हुआ है। कई दावेदार अपनी ताल ठोक रहे हैं। ऐसे समय पर भगत दा की एंट्री से चर्चाओं का बाजार गर्म है। लोगों की मानें तो वह अपने भतीजे के लिए अपनी परंपरागत सीट पर दाव लगा सकते है। इसके लिए वह प्रतिद्वंदियों को भी साधने में लगे है।