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गौला पुल पर मंडराते खतरे पर शासन ने मांगी रिपोर्ट, जिला प्रशासन भी हरकत में आया

हल्‍द्वानी के गौला पुल पर मंडराते खतरे को लेकर शासन गंभीर हो गया है। दैनिक जागरण में क्षतिग्रस्त होते पिलरों की खबर प्रमुखता से प्रकाशित होने के बाद शासन ने लोनिवि के प्रमुख अभियंता से रिपोर्ट तलब की है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 01 Sep 2021 08:56 AM (IST)Updated: Wed, 01 Sep 2021 08:56 AM (IST)
गौला पुल पर मंडराते खतरे पर शासन ने मांगी रिपोर्ट, जिला प्रशासन भी हरकत में आया
गौला पुल पर मंडराते खतरे पर शासन ने मांगी रिपोर्ट, जिला प्रशासन भी हरकत में आया

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : गौला पुल पर मंडराते खतरे को लेकर शासन गंभीर हो गया है। दैनिक जागरण में क्षतिग्रस्त होते पिलरों की खबर प्रमुखता से प्रकाशित होने के बाद शासन ने लोनिवि के प्रमुख अभियंता से रिपोर्ट तलब की है। वहीं, मंगलवार दोपहर स्थानीय प्रशासन व एनएचएआइ के ब्रिज इंजीनियर ने भी नदी में उतरकर पुल के पिलरों का निरीक्षण किया। एनएचएआइ का कहना है कि बारिश सीजन खत्म होते ही सेफ्टी वॉल दोबारा बनाई जाएगी।

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देहरादून-ऋषिकेश मार्ग पर रानीपोखरी में पुल के धराशाई होने के बाद दैनिक जागरण ने हल्द्वानी में गौला नदी पर बने पुल की पड़ताल की थी। पड़ताल में यह सच सामने आया कि पुल के अधिकांश पिलर की सुरक्षा दीवार टूट चुकी है। क्षतिग्रस्त पिलरों की तस्वीरों के साथ 30 अगस्त के अंक में दैनिक जागरण ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। खबर प्रकाशित होने के अगले ही दिन मंगलवार को प्रमुख सचिव लोनिवि आरके सुधांशु ने मामले को गंभीरता से लेते हुए विभाग के प्रमुख अभियंता से प्रकरण की स्टेटस रिपोर्ट तलब कर ली। इधर, रानीपोखरी में पुल गिरने की घटना से सबक लेते हुए जिला प्रशासन भी हरकत में आ गया। मंगलवार दोपहर एसडीएम हल्द्वानी मनीष कुमार सिंह व एनएचएआइ के ब्रिज इंजीनियर परशुराम ने गौला पुल का निरीक्षण किया। ब्रिज इंजीनियर के मुताबिक, बारिश खत्म होते ही टूट चुकी सुरक्षा दीवार को फिर से बनाया जाएगा।

अवैध खनन से पहुंचा नुकसान

वन विभाग भले पुल के आसपास अवैध खनन की घटना से इन्कार करता है, लेकिन एनएचएआइ का कहना है कि अवैध खनन की वजह से ही सुरक्षा दीवार टूटी होगी। ब्रिज इंजीनियर परशुराम ने बताया कि वन विभाग के साथ पुलिस को भी इस बाबत पत्र लिखा जाएगा। 13 साल पहले जब पुल टूटा था, तब लोनिवि की जांच रिपोर्ट में अवैध खनन को ही जिम्मेदार ठहराया गया था।

2008 में टूटा था पुल

गौला पुल को पहले उत्तर प्रदेश निर्माण निगम ने बनाया था। सूचना का अधिकार से मिली जानकारी के मुताबिक, तब इसकी लागत साढ़े नौ करोड़ थी। लोनिवि के अधिशासी अभियंता अशोक कुमार के मुताबिक जुलाई 2008 में पुल टूटने के बाद कंस्ट्रक्शन कंपनी वुडहिल इंफ्रास्टक्चर लिमिटेड ने इसे बनाया था। तीन चरण में इस पर 19.77 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। गौला के नए पुल की लंबाई 364.76 मीटर है। इसके निर्माण के लिए गौलापार व चोरगलिया के लोगों ने लंबा आंदोलन किया था।

हाई कोर्ट के नियम का पालन नहीं

गौलापार निवासी आरटीआइ कार्यकर्ता रवि जोशी ने पूर्व में पुल को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। उसके बाद पुल के अप-डाउन एरिया में एक-एक किमी क्षेत्र को खनन के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था, मगर जोशी का कहना है कि उसके बावजूद घोड़ों से रेत चोरी कर नींव कमजोर की जा रही है। एक तरफ वन विभाग ने चुप्पी साध रखी है, वहीं दूसरी तरफ पुल के ऊपर बने चेक पोस्ट में मौजूद पुलिसकर्मी भी ध्यान नहीं देते।

एनएचएआइ को ट्रांसफर हुआ पुल

ईई अशोक कुमार के मुताबिक, तीनपानी-काठगोदाम हाईवे चौड़ीकरण का हिस्सा होने के कारण फरवरी 2021 में पुल भी एनएचएआइ को ट्रांसफर कर दिया गया था। विभाग ने पूर्व में एक कंसलटेंट कंपनी को अधिकृत कर सुरक्षा को लेकर सर्वे कराया था, मगर पूरी रिपोर्ट नहीं मिली। फिर स्वामित्व बदलने की वजह से जिम्मेदारी एनएचएआइ पर आ गई।


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