मिथक : गंगोत्री और चम्पावत से विधायक बनने वाली पार्टी की ही बनती है सरकार
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत लगातार तेज हो रही है। दलबदल से लेकर बयानबाजी का सिलसिला तेजी से आगे बढ़ रहा है। वहीं सत्तर सीटों वाले उत्तराखंड में कुछ विधानसभा क्षेत्रों को लेकर मिथक या कहें तो धारणाएं भी बन चुकी हैं।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत लगातार तेज हो रही है। दलबदल से लेकर बयानबाजी का सिलसिला तेजी से आगे बढ़ रहा है। वहीं, सत्तर सीटों वाले उत्तराखंड में कुछ विधानसभा क्षेत्रों को लेकर मिथक या कहें तो धारणाएं भी बन चुकी हैं। अक्सर चर्चा होती है कि गढ़वाल की गंगोत्री सीट से जिस पार्टी का विधायक सदन में पहुंचता है। राज्य में सत्ता की चाबी भी उसी पार्टी को मिलती है। हालांकि, यही स्थिति कुमाऊं की चम्पावत सीट को लेकर भी है। राज्य गठन के बाद से अब तक हुए चार चुनाव में जिस पार्टी के उम्मीदवार ने यह सबसे ज्यादा दम दिखाया। उसी दल की सरकार भी बनी। जबकि रानीखेत सीट का इतिहास इस मामले में पूरी तरह उलट है।
2002 और 2012 में चम्पावत विधानसभा सीट पर कांग्रेस के हेमेश खर्कवाल ने जीत हासिल की थी। उस समय कांग्रेस की सरकार भी बनी। वहीं, 2007 में इस सीट पर भाजपा की बीना माहराना और 2017 में कैलाश गहतोड़ी विजयी हुए। दोनों बार सत्ता में भाजपा आई। वहीं, पिछले चार चुनावों में गंगोत्री सीट से जीतने वाले विधायक को भी हर बार सत्ता सुख मिला। कुछ समय पूर्व गंगोत्री सीट के भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत का निधन हो गया था। हालांकि, यहां उपचुनाव नहीं हुआ। अगले चुनाव में ही गंगोत्री को नया विधायक मिलेगा।
रानीखेत ने सत्ता नहीं दिलाई
2002 और 2012 में विधानसभा चुनाव में रानीखेत सीट पर भाजपा के अजय भट्ट ने जीत हासिल की थी। मगर सरकार कांग्रेस की बनकर आई। वहीं, 2007 और 2017 में कांग्रेस के करन माहरा ने अजय भट्ट को चुनाव में शिकस्त दी थी। लेकिन उत्तराखंड में सरकार भाजपा की बनी। वर्तमान में नैनीताल सीट से सांसद चुने गए अजय भट्ट केंद्र में रक्षा एवं पर्यटन राज्यमंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।