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बारिश से नहीं अवैध खनन और प्रशासन की लापरवाही से महज आठ साल में टूट गया गौला पुल

इंदिरानगर बाइपास स्थित गौला नदी पर बने पुल की 30 मीटर लंबी सड़क मंगलवार सुबह ध्वस्त होकर नदी में समा गई। 2008 में तेज बहाव की भेंट चढ़े इस पुल को पूरी तरह बनने में करीब पांच साल लगे थे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 20 Oct 2021 08:32 AM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 08:32 AM (IST)
पानी के वेग से नहीं अवैध खनन और प्रशासन की लापरवाही से महज आठ साल में टूट गया गौला पुल

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : इंदिरानगर बाइपास स्थित गौला नदी पर बने पुल की 30 मीटर लंबी सड़क मंगलवार सुबह ध्वस्त होकर नदी में समा गई। 2008 में तेज बहाव की भेंट चढ़े इस पुल को पूरी तरह बनने में करीब पांच साल लगे थे। लेकिन आठ साल में संपर्क मार्ग दोबारा ध्वस्त होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। अवैध खनन और अफसरों की लापरवाही इसके पीछे बड़ी वजह है। नदी के अंदर पानी का डायवर्जन पूरी तरह बिगड़ा हुआ था, जिस वजह से सेफ्टी वाल पानी की मार सह नहीं सकी। नतीजतन हल्द्वानी से गौलापार, चोरगलिया और खटीमा तक के लोगों को अब परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

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मंगलवार सुबह पांच बजे करीब गौला पुल के टूटे हिस्से पर लोगों की नजर पड़ी। इसके बाद पूरी सड़क ही गायब हो गई। 30 मीटर लंबी, 25 मीटर गहरी और 12 मीटर चौड़ी सड़क मलबा बनकर नदी में समा गई। सूचना मिलते ही पुलिस व प्रशासन के अधिकारी मौके पर पहुंच गए, जिसके बाद बैरिकेड लगाकर लोगों को पुल से दूर किया गया। मगर भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस को लाठियां भी फटकारनी पड़ी। वहीं, पुल के बंद होने की वजह से गौलापार व चोरगलिया के लोगों को अब काठगोदाम होकर शहर आना पड़ेगा। वहीं, खटीमा तक से बड़े वाहन, ट्रक व रोडवेज बसें वाया चोरगलिया होकर इस रास्ते से हल्द्वानी पहुंचती थी। लेकिन काठगोदाम से आने पर अब उन्हें नो-एंट्री का सामना करना पड़ेगा।

ऐसी सक्रियता पहले क्यों नहीं दिखाई

सड़क बहने के बाद एडीएम अशोक जोशी, नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय, सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह, एसडीएम मनीष कुमार, एसडीओ धु्रव सिंह मर्तोलिया के अलावा एनएचएआइ व लोनिवि के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए थे। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब बार-बार पुल की सुरक्षा को लेकर सवाल किए जा रहे थे, तब अफसरों ने सक्रियता क्यों नहीं दिखाई। वहीं, हादसे के बाद केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन मंत्री अजय भट्ट व पूर्व सीएम हरीश रावत ने निरीक्षण कर स्थिति का जायजा भी लिया। इसके बाद दिन भर नेताओं का आना-जाना लगा रहा।

वुडहिल ने 19.77 करोड़ में बनाया

गौला पुल को पहले उत्तर प्रदेश निर्माण निगम ने बनाया था। आरटीआइ से मिली जानकारी के मुताबिक तब लागत साढ़े नौ करोड़ थी। जुलाई 2008 में पुल टूटने पर वुडहिल इंफ्रास्टक्चर लिमिटेड ने तीन चरणों में पुल का निर्माण किया था। पुल पहले खोल दिया गया था, मगर काम पूरा 2013 में हुआ। 364.76 लंबा नया पुल 19.77 करोड़ में बना था।

दैनिक जागरण ने बार-बार चेताया

हजारों लोगों से जुड़े पुल की सुरक्षा के मामले को दैनिक जागरण ने कई बार प्रमुखता से प्रकाशित किया था। 30 अगस्त को गौला पुल के पिलरों की सुरक्षा दीवार ध्वस्त शीर्षक से खबर प्रकाशित करने पर प्रमुख सचिव लोनिवि ने मामले का संज्ञान लेकर अफसरों से रिपोर्ट तलब की थी, जिसके बाद एसडीएम व एनएचएआइ के इंजीनियर निरीक्षण को पहुंचे। इसके बाद दो सितंबर को खतरे में गौला पुल, पिलर की सरिया तक दिखने लगी शीर्षक से पुन: अफसरों को चेताया। लेकिन जल्द मरम्मत करवाने का दावा करने वाले अधिकारी फिर मौन साध गए।

मौसम ने साथ दिया तो 15 दिन लगेंगे

गौला पुल को पहले लोनिवि ने बनवाया था, मगर तीनपानी से लेकर नारीमन चौराहे तक की सड़क एनएचएआइ को ट्रांसफर होने की वजह से अब जिम्मेदारी एनएचएआइ की है। इंजीनियरों संग पुल के निरीक्षण को पहुंचे प्रोजेक्ट डायरेक्टर योगेंद्र शर्मा ने बताया कि नदी में पानी कम होने पर काम शुरू कर दिया जाएगा। मौसम ने साथ दिया तो 15 दिन के भीतर सेफ्टी वाल तैयार कर सड़क बन जाएगी। बशर्ते प्रशासन का पूरा सहयोग मिले।

निर्माण पर सवाल, एक पिलर और होता

गौला पुल के नीचे धड़ल्ले से होने वाले अवैध खनन की वजह से पिलरों की स्थिति पहले से गड़बड़ा रही थी। ऐसे में पानी का बहाव भी बिगड़ गया। जिस वजह से सड़क गायब हुई। वहीं, एनएचएआइ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर योगेंद्र शर्मा ने बताया कि किनारे की तरफ एक पिलर और होना चाहिए था।

पुराने पुल का ब्लाक गायब, सिंचाई नहर ध्वस्त

काठगोदाम में पुराने पुल का एक सुरक्षा ब्लाक तेज बारिश की वजह से टूट गया। इसके अलावा सिंचाई नहर पूरी तरह ध्वस्त हो गई। इस नहर से गौलापार के काश्तकारों को सिंचाई के लिए पानी मिलता था। मगर अब परेशानी का सामना करना पड़ेगा।

पुल को लेकर कभी गंभीरता नहीं दिखी

  • गौला पुल की सुरक्षा को लेकर 2019 व 2020 में मरम्मत प्रस्ताव तैयार कर 30 लाख का बजट मांगा गया था, मगर बजट नहीं दिया गया।
  • नवंबर 2020 में अफसरों की संयुक्त कमेटी ने निरीक्षण कर रिपोर्ट बनाई। रिपोर्ट में पिलरों के अप-डाउन एरिया में दीवार निर्माण का सुझाव दिया गया। लेकिन कोई काम नहीं हुआ।
  • पिलरों के आसपास घोड़ों से अवैध खनन होता है। जबकि हाई कोर्ट ने पुल के एक-एक किमी क्षेत्र को खनन के लिए प्रतिबंधित किया है।
  • पिलरों की सुरक्षा दीवार ध्वस्त होने और सरिया तक नजर आने के बावजूद अफसरों ने मरम्मत का काम क्यों नहीं करवाया।

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