ओखलकांडा में चार गुलदार एक साथ नजर आ रहे, बदल रहा व्यवहार, बढेंगी मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं
गुलदार का व्यवहार बदल रहा है। अब वो आबादी में साथ घूमने के साथ संयुक्त शिकार करने से भी पीछे नहीं हट रहा। वहीं लंबे समय तक एक ही आबादी क्षेत्र में नजर आने वाले गुलदार ने भले अभी तक किसी पर हमला नहीं किया हो।
हल्द्वानी, जेएनएन : गुलदार का व्यवहार बदल रहा है। अब वो आबादी में साथ घूमने के साथ संयुक्त शिकार करने से भी पीछे नहीं हट रहा। वहीं, लंबे समय तक एक ही आबादी क्षेत्र में नजर आने वाले गुलदार ने भले अभी तक किसी पर हमला नहीं किया हो। मगर भविष्य के लिए यह खतरनाक संकेत है। दस साल पहले बागेश्वर का एक मामला इसका उदाहरण है।
शिकारी लखपत सिंह रावत के मुताबिक अक्टूबर 2010 में बागेश्व के अंसरकोट क्षेत्र में दो गुलदारों ने दो बच्चों का शिकारी किया था। नरभक्षी घोषित होने पर लखपत ने ही इन्हें ढेर किया। इस घटना का एक खास पहलू यह था कि यह दोनों गुलदार करीब चार-पांच साल तक अंसरकोट के पास एक अक्सर एक चट्टान पर आकर बैठते और आबादी को देखते रहते। मगर लोगों पर हमला करने में चार-पांच साल तक इंतजार किया।
वहीं, ओखलकांडा ब्लाक के कोटली क्षेत्र में आबादी से कुछ दूरी पर स्थित चार अगल-अलग उम्र के गुलदार भी खूब नजर आ रहे हैं। नजर पडऩे पर वन विभाग की टीम से इन्हें ट्रैंकुलाइज करने की मांग की गई ताकि आबादी से दूर किया जा सके। टीम मौके पर भी पहुंची। मगर फिर ऐसा नहीं किया गया। वन विभाग का मानना था कि अगर एक भी गुलदार मिसिंग हुआ तो वह आबादी में आतंक मचा सकता है। वहीं, देवलचौड़ में छह माह से आ रहे गुलदार को लेकर भी शिकारियों ने भविष्य में खतरे की संभावना से इंकार नहीं किया।
दो गुलदार और एक कुत्ता
शिकारी लखपत के मुताबिक ओखलकांडा में आदमखोर गुलदार को ढूंढने के दौरान उन्होंने दो गुलदारों को एक साथ एक कुत्ते को निशाना बनाने का प्रयास करते हुए भी देखा। जबकि पहले इस तरह की बात सामने नहीं आई।
आबादी का डर खत्म हो जाएगा
विशेषज्ञों के मुताबिक गुलदार के लगातार एक ही क्षेत्र में आनेे पर उसके अंदर इंसानी डर खत्म हो जाएगा। उसके बाद वह हमलावर भी होगा। आसान भोजन और खुद की शारीरिक क्षमता खत्म होने की वजह से भी हमले की स्थिति बनेगी।