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India-Nepal Border Dispute: सीमा विवाद के बाद उपजे तनाव के बीच चार लाख नेपालियों को भाया भारत

माओवादी विचारधारा वाली नेपाल सरकार भले ही चीन के सुर में सुर मिलाकर सीमा विवाद को तूल देने में जुटी है लेकिन इस राजनीति से दूर आम नेपालियों को भारत ही भा रहा है। उनके दिलों में आज भी रोटी-बेटी का संबंध बरकरार है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2020 09:34 PM (IST)Updated: Sat, 26 Sep 2020 11:33 PM (IST)
India-Nepal Border Dispute: सीमा विवाद के बाद उपजे तनाव के बीच चार लाख नेपालियों को भाया भारत
राजनीति से दूर आम नेपालियों को भारत ही भा रहा है।

हल्द्वानी, अभिषेक राज: माओवादी विचारधारा वाली नेपाल सरकार भले ही चीन के सुर में सुर मिलाकर सीमा विवाद को तूल देने में जुटी है, लेकिन इस राजनीति से दूर आम नेपालियों को भारत ही भा रहा है। उनके दिलों में आज भी रोटी-बेटी का संबंध बरकरार है। हाल ही में नेपाली गृह मंत्रालय की रिपोर्ट से यह साबित भी होता है। रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के समय करीब छह लाख नेपाली भारत के विभिन्न हिस्सों से नेपाल लौटे थे। इनमें से करीब 4.25 लाख अगस्त मध्य से 20 सितंबर तक भारत लौट आए हैं। सर्वाधिक 2.25 लाख अकेले उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से लगते सुदूर पश्चिम नेपाल के हैं। मुख्य कारण पैसे की कमी, रोजगार का अभाव बताया गया है। सीमा सील होने के कारण यहां लोग जान जोखिम में डालकर काली नदी को ट्यूब से पार करने से भी नहीं हिचके। मंत्रालय ने दशहरे के बाद यह संख्या तेजी से बढऩे की उम्मीद जताई गई है।

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कोरोना के बढ़ते प्रभाव के बाद मार्च में जब पूरे भारत में लॉकडाउन हुआ तो कामगार अपने-अपने घरों के लिए रवाना हुए। इनमें बड़ी संख्या में नेपाली श्रमिक भी शामिल रहे। सभी परिवार के साथ घर लौटने लगे। इस बीच आठ मई को केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन सीमा तक तैयार गर्बाधार-लिपुलेख सड़क का शुभारंभ किया। नेपाल ने इसे अतिक्रमण करार देकर विरोध शुरू कर दिया। दुष्प्रचार का हथकंडा अपनाकर कालापानी और लिपुलेख को अपना बताते हुए नया राजनीतिक नक्शा जारी कर दिया। भारतीय सीमा पर एक के बाद एक करीब 800 बॉर्डर आउटपोस्ट बीओपी बना नेपाल सशस्त्र बल के जवानों की तैनाती करते हुए बॉर्डर सील कर दिया, लेकिन इस बीच भारत ने संयम बरतते हुए खाद्य सामग्री सहित दूसरी जरूरी वस्तुओं का निर्यात बराबर जारी रखा। इसके विपरीत नेपाल के रुख में काई तब्दीली नहीं आई। यहां तक उसने अपने नागरिकों से भारत से वापसी की अपील कर दी। इसका असर भी हुआ। लॉकडान में करीब छह लाख नेपाली भारत से लौट गए, लेकिन राष्ट्रीयता का यह ट्रंप कार्ड ज्यादा देर तक नहीं चल सका। घर वापस आए अपने नागरिकों को नेपाल रोजगार मुहैया नहीं करा सका। करीब चार महीने उनके खाली रहने से आय प्रभावित हो गई। कुछ के तो खाने के भी लाले पड़ गए। इसका असर नेपाल की आंतरिक व्यवस्था पर भी पड़ने लगा। हालत गंभीर होते देख नेपाली श्रमिकों ने फिर भारत का रुख किया। इसका अप्रत्यक्ष रूप से नेपाली सरकार ने भी समर्थन किया। परीक्षा देने वाले अपने विद्यार्थियों के लिए बॉर्डर नहीं खोलने वाले नेपाल ने श्रमिकों की वापसी पर मौन समर्थन जारी रखा। इससे अगस्त मध्य से 20 सितंबर तक करीब 4.25 लाख नेपाली विभन्न रास्तों से भारत लौट आए।

आगमन-प्रस्थान की तैयार हो रही रिपोर्ट

भारत से आने और जाने वाले अपने नागरिकों की नेपाल सूची तैयार कर रहा है। इसकी जिम्मेदारी बॉर्डर पर तैनात जवानों को सौंपी गई है। वह भारत से आने और नेपाल से जाने वालों की पूरी सूचना दर्ज कर रहे हैं। इसमें गांवपालिका सहित जिला प्रशासन से जारी पहचान पत्र व नागरिकता की कॉपी भी अपने पास रख रहे हैं। इसी आधार पर नेपाली गृह मंत्रालय ने श्रमिकों की भारत वापसी की रिपोर्ट जारी की है।

यहां से आए इतने नेपाली

प्रदेश                    लौटे नेपालियों की संख्या 

सुदूर पश्चिम          2,84,531

प्रांत 5                 79,557   

प्रांत 2                 23,832 

बाग्मती              13,000 

अपने दस विद्यार्थियों के लिए नहीं खोला था बॉर्डर

नेपाल के सीमावर्ती जिलों के विद्यार्थी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में भी पढ़ाई करते हैं। ऐसे में सितंबर में जब कुमाऊं  विवि ने परीक्षा शुरू कराई तो नेपाली विद्यार्थियों ने बॉर्डर खोलने की अपील की, लेकिन नेपाल अपनी जिद पर अड़ा रहा। इस कारण आठ विद्यार्थी जान जोखिम में डाल ट्यूब के सहारे काली नदी पार कर यहां पहुंचे। मामला बढ़ा तो बाद में नेपाल ने दो विद्यार्थियों के लिए झूला पुल खोला।

क्‍या कहते हैं जानकार

भारतीय सेना के र‍िटायर्ड मेजर बीएस रौतेला कहते हैं क‍ि भारत से नेपाल का रोटी-बेटी का संबंध सदियों से है। इसे नेपाली सरकार नकार नहीं सकती। नेपाल की अर्थव्यवस्था करीब-करीब भारत पर निर्भर है। भौगोलिक नजरिए से देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है। नेपाल को समझना होगा कि भारत ही उससे मित्रता निभा सकता है। चीन की चालबाजी को नेपाल जितनी जल्द समझ ले, यह उसके लिए बेहतर है।


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