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82 साल पहले हल्द्वानी रेलवे बाजार में पड़ी थी संस्कृत शिक्षा की नींव

80 के दशक से 2015 तक हल्द्वानी के रेलवे बाजार स्थित सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य रहे डा. गोपाल दत्त त्रिपाठी बताते हैं कि कुमाऊं के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान पंडित रामदत्त जोशी देवीदत्त बेलवाल और एडवोकेट घनानंद ने संस्कृत स्कूल की स्थापना की कवायद शुरू की।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 07:56 AM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 07:56 AM (IST)
82 साल पहले हल्द्वानी रेलवे बाजार में पड़ी थी संस्कृत शिक्षा की नींव
82 साल पहले हल्द्वानी के रेलवे बाजार में पड़ी थी संस्कृत शिक्षा की नींव

हल्द्वानी, भानु जोशी : संस्कृत भाषा का ध्वजवाहक रहे भारत देश में आज के समय में संस्कृत शिक्षा के लिए कई नामी स्कूल-कालेज संचालित होते हैं। विद्यार्थी अपने राज्य या जिले से संस्कृत शिक्षा ग्रहण करने लगे हैं। लेकिन एक दौर वो भी था जब देशभर में संस्कृत शिक्षा के लिए बनारस, हरिद्वार, इलाहाबाद जैसे गिने-चुने शहर ही थे। आजादी से पहले संस्कृत शिक्षा को लेकर आज जनमानस में एक उत्साह भी था। कुमाऊं के अधिकांश क्षेत्रों में पंडिताई आदि कर्म को खासा मान-सम्मान मिलता था। इस वजह से यहां के बच्चों, युवाओं को संस्कृत शिक्षा के लिए बनारस भेजने की परंपरा थी। मौसम परिवर्तन और घर से दूर रहने की वजह से इनमें से कई बीमार होकर वापस घर लौट आते थे। इसी परेशानी को देखते हुए आज से ठीक 82 साल पहले कुछ लोगों के सामूहिक प्रयासों से हल्द्वानी में संस्कृत शिक्षा की पहली नींव रखी गई। नाम दिया गया 'सनातन पाठशाला'। जो कि अब सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

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इन लोगों को जाता है श्रेय

80 के दशक से 2015 तक हल्द्वानी के रेलवे बाजार स्थित सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य रहे डा. गोपाल दत्त त्रिपाठी बताते हैं कि कुमाऊं के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान पंडित रामदत्त जोशी, देवीदत्त बेलवाल और एडवोकेट घनानंद ने संस्कृत स्कूल की स्थापना की कवायद शुरू की। सबसे पहले सनातन धर्म समाज नाम से संस्था बनाई गई। जिसके बाद 1938 में सनातन पाठशाला की नींव डाली गई।

प्राइमरी की भी लगती थी कक्षाएं

सनातन पाठशाला में संस्कृत के साथ साथ प्राइमरी कक्षाओं की भी पढ़ाई शुरू हुई। जिसमें कक्षा एक से पांचवी तक के विद्यार्थियों को अन्य विषयों की भी शिक्षा दी जाती थी। साथ ही दसवीं और बारहवीं तक की भी पढ़ाई शुरू हुई। 1975 में इसे अस्थाई मान्यता मिली। 1990 में स्थायी मान्यता भी मिल गई।

पढ़कर निकले कई प्रकांड संस्कृत विद्वान

स्नातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय ने देश को कई प्रकांड विद्वान भी दिए हैं। संस्कृत के अंतरराष्ट्रीय विद्वान एवं चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में विभागाध्यक्ष रहे डा. डीडी शर्मा इस स्कूल के पहले बैच के छात्र रहे। इसके अलावा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में रहे सुरेश चंद्र पांडे ने भी यहीं से आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके अलावा भी ऐसे कई विद्वान हैं जिन्होंने ज्योतिष, कर्मकांड की शिक्षा इसी स्कूल से लेकर विश्व पटल पर नाम रोशन किया।


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