Move to Jagran APP

लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी : मां का संघर्ष देख लिखा पहला गीत, फिर रचा गीतों का संसार, गिर्दा संग जमाई जुगलबंदी

Nainital News लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने एक हजार से अधिक गीत लिखे और उन्हें आवाज दी। यह सफर 73 वर्ष की उम्र में भी जारी है। मानवीय मर्म के साथ सामाजिक मुद्दों व सियायत पर खूब लिखा गाया।

By ganesh pandeyEdited By: Rajesh VermaPublished: Mon, 31 Oct 2022 10:57 AM (IST)Updated: Mon, 31 Oct 2022 10:57 AM (IST)
लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी : मां का संघर्ष देख लिखा पहला गीत, फिर रचा गीतों का संसार, गिर्दा संग जमाई जुगलबंदी
लोक गीत, संगीत को समाज का मर्म समझने वाला होना चाहिए।

गणेश पांडे, हल्द्वानी : Nainital News: लोक गायिकी के शीर्ष पर विराजित सुप्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी (Folk Singer Narendra Singh Negi) ने पहला गीत 'सैरा बसग्याल बोण मा, रुड़ी कुटण मा, ह्यूंद पिसी बितैना, मेरा सदनी इनी दिन रैना' को अपनी मां समुद्रा देवी के संघर्ष को देखकर रचा था। मां का संघर्ष बयां करते नेगी के शब्द कह रहे हैं, बरसात जंगलों में, गर्मियां कूटने में, सर्दियां पीसने में बिताई, मेरे हमेशा ऐसे ही दिन रहे। इस गीत को नेगी ने उस वक्त रचा, जब पिता मोतियाबिंद का आपरेशन कराने देहरादून के अस्पताल में भर्ती थे और मां पौड़ी के गांव में।

loksabha election banner

एक हजार से अधिक गीत लिखे

आगे चलकर नेगी ने समाज के मर्म से जुड़े गीतों का संसार रच डाला। एक हजार से अधिक गीत लिखे और उन्हें आवाज दी। यह सफर 73 वर्ष की उम्र में भी जारी है। मानवीय मर्म के साथ सामाजिक मुद्दों व सियायत पर खूब लिखा, गाया। हल्द्वानी में आयोजित जोहार महोत्सव (Johar festival) में पहुंचे नरेंद्र सिंह नेगी ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि लोक गीत, संगीत को समाज का मर्म समझने वाला होना चाहिए।

1999 में पहली बार गिर्दा संग जमी थी महफिल

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड आंदोलन के दौरान उन्हें जन कवि गिरीश तिवाड़ी गिर्दा से सुनने का मौका मिला। तब वह उत्तरकाशी में कार्यरत थे। जनकवि बल्ली सिंह चीमा, गिर्दा, अतुल शर्मा के गीत गलियों में गूंजा करते थे। तब उन्होंने भी जनगीत लिखे। पहली बार 1999 में पौड़ी आडिटोरियम गिर्दा के साथ उनकी जुगलबंदी हुई। फिर नैनीताल, दिल्ली व न्यूयार्क तक साथ में कार्यक्रम किए।

आंदोलनकारियों के सपनों को विफल होते देख हुए दुखी

लोक गायक नेगी ने कहा कि आंदोलनकारियों व शहीदों के सपनों को विफल होते देखते हैं तो दुख होता है। इसी पीड़ा में उन्होंने राजनीतिक मुद्दों पर गीत लिखे। एक गीतकार के बस में इससे अधिक हो भी क्या सकता है। राजनीतिक मुद्दों पर लिखने के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। नेगी ने गीतों की प्रस्तुति दी। आयोजक मंडल ने नरेंद्र सिंह नेगी को उनकी पेंटिंग व केदारनाथ धाम की हस्तनिर्मित कलाकृति स्मृति के तौर पर भेंट की।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.