Haldwani Literature Festival: महिलाओं के दर्द को लिखे बिना कोई पुरुष नहीं बन सका श्रेष्ठ लेखक: डा. मंजू पांडे उदिता
महिलाओं के दर्द विषय पर डा. पांडे ने किसी भी युग काल व समय में नीति-नियंता पुरुष रहे हैं। इसलिए पुरुष ने अपने हित व संतुष्टि लिए नियम बनाए। उसने खुद को विजेता बनाया। जब वह खुद विजेता होगा तो पराजय महिलाओं के हिस्से में आनी थी।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी। हल्द्वानी लिटरेचर फेस्टिवल में तमाम विषयों के साथ साहित्य में महिलाओं के दर्द पर भी बेबाकी से चर्चा हुई। जहां महिला लेखिका व कवि डा. मंजू पांडे उदिता ने कहा कि कोई भी लेखक महिलाओं के दर्द को लिखे बिना श्रेष्ठ लेखक नहीं हो सका है। अगर महिला ही अपने दर्द को लिखने लगी तो वह कहीं आगे पहुंच जाएगी।
शनिवार को डीपीएस हल्द्वानी में आयोजित दो दिवसीय हल्द्वानी लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारंभ पद्मश्री यशोधर मठपाल ने दीप जलाकर किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी विडियो के जरिये फेस्टिवल को लेकर शुभकामनाएं हैं।
उपन्यास व महिलाओं के दर्द विषय पर डा. पांडे ने किसी भी युग, काल व समय में नीति-नियंता पुरुष रहे हैं। इसलिए पुरुष ने अपने हित व संतुष्टि लिए नियम बनाए। उसने खुद को विजेता बनाया। जब वह खुद विजेता होगा तो पराजय महिलाओं के हिस्से में आनी थी। वह मानसिक, वैचारिक व अन्य रूपों से दर्द सहते रही। आधुनिक युग में महिला लेखकों पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ लिखा। यह पुरुषों के विरोध में नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार व कहानीकार कंचन पंत ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को अपने अनुभव से जोड़ा और कहा कि महिलाओं को खुद सशक्त होना होगा। संचालन मंजरी बल्यूटिया ने किया। कुमाऊं साहित्य व लेखक विषय पर वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मण सिंह बटरोटी ने कुमाऊं के प्रतिष्ठित लेखक इलाचंद्र जोशी, सुमित्रानंदन पंत व शैलेश मटियानी पर संस्मरण सुनाए।
मनोज पांडे ने रूसी लेखक के उत्तराखंड दौरे पर डाक्यूमेंट्री दिखाई। आज के दौर का मीडिया सत्र में न्यूज़ एंकर अनुराग पुनेठा ने दैनिक जागरण हल्द्वानी के समाचार संपादक आशुतोष सिंह, न्यूज़ एंकर प्रीति बिष्ट और पांचजन्य के सोशल मीडिया संपादक अंबुज के साथ चर्चा की।
इंटरनेट मीडिया व युवा साहित्य पर भी हुआ विमर्श
फेस्टिवल में सोशल मीडिया का बदलता स्वरूप विषय पर एथिकल हैकर अंशुल सक्सेना और मोटिवेटर व लेखक वैभव पांडे ने वर्तमान समय के हालातों में इंटरनेट मीडिया और उनकी चुनौतियों पर चर्चा की। भारतीय इतिहास और विवाद विषय पर लेखक सबरीश पीए और लेखक शांतनु गुप्ता के साथ पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने विमर्श किया।
युवा और साहित्य विषय पर प्रख्यात लेखक महेश दत्त और शिक्षाविद मनमोहन जोशी ने मंथन किया। संचालन स्वाति कपूर व प्रीति बिष्ट ने किया। कार्यक्रम में दिनेश मानसेरा, भूमेश अग्रवाल, विवेक अग्रवाल, डीपीएस की प्रधानाचार्य रंजना साही, प्रवींद्र रौतेला, अवनीश राजपाल, दिनेश पांडे, राजीव वाही, उमंग वासुदेवा, राजीव बग्गा, समित टिक्कू, अश्वनी सारस्वत, अर्पिता जोशी, हिमानी मेर, मनीषा शाह, आदि ने योगदान दिया।
पुरुषार्थ का कोई विकल्प नहीं- रयाल
लिटरेचर फेस्टिवल में कुछ चर्चा किताबों की विषय पर वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी व चर्चित पुस्तक खड़कमाफी की स्मृतियां के लेखक ललित मोहन रयाल ने अपनी लेखन यात्रा पर कहा कि पुरुषार्थ का कोई विकल्प नहीं है। साथ में लेखक डा. चंद्रशेखर जोशी और पुलिस क्षेत्राधिकारी प्रमोद साह ने कहानी उपन्यास और गद्य पर विस्तार से चर्चा की।
डिजिटल साहित्य से बढ़ रही रचनात्मकता- सिंह
सेवानिवृत पुलिस अधिकारी व बादलों में भवाली के लेखक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने डिजिटल साहित्य विषय पर कहा कि अब समय डिजिटल का है। इससे रचनात्मकता बढ़ी है। आगे इसका भविष्य है। वर्ल्ड बुक के प्रकाशक रणधीर अरोरा ने कहा कि डिजिटल प्लेटफार्म का बढ़ता दायरा नए आयाम तय कर रहा है। संचालन गणेश जोशी ने किया।