मंडी में आढ़त पर्ची लगा रही किसानों को रोजाना लाखों की चपत
जासं हल्द्वानी अन्नदाता किसानों की कमर मौसम कम आढ़तियों की मनमानी ज्यादा तोड़ रही है। हाड़तोड़ मेहनत कर उगाई फसलों को अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद हल्द्वानी मंडी में दम तोड़ रही है।
जासं, हल्द्वानी: अन्नदाता किसानों की कमर मौसम कम, आढ़तियों की मनमानी ज्यादा तोड़ रही है। हाड़तोड़ मेहनत कर उगाई फसलों को अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद हल्द्वानी मंडी में दम तोड़ रही है। माल खरीदने के नाम पर किसानों से तीन रुपये की जगह आठ रुपये का आढ़त शुल्क वसूला जा रहा है। आढ़त का पर्चा भी ऐसा थमा दिया जाता है, जिसमें न तो फर्म का नाम लिखा होता है न रजिस्ट्रेशन नंबर। ऊपर से पर्ची में आढ़त शुल्क का कोई जिक्र ही नहीं होता है।
हल्द्वानी मंडी में सीजनल फल, सब्जी रामगढ़, धारी और ओखलकांडा विकासखंड के कुछ क्षेत्रों से आती है। जब अन्य राज्यों के आलू की डिमांड कम होने लगती है तो इन क्षेत्रों से बहुतायत मात्रा में आलू मंगाया जाता है। यहां के गांवों में आलू, फूल-बंद गोभी, मटर व सेब, खुमानी, नाशपाती, पुलम की अच्छी पैदावार होती है। बरसाती सीजन का ये आलू बाजार में खूब बिकता है। किसानों की मानें तो इस बार पहाड़ी आलू का दाम मंडी से 50 रुपये किलो लगाया गया। मंडी में आढ़त पर्ची में हो रही मनमानी की शिकायत सूपी आगर आलू उत्पादक स्वायत्त सहकारिता समिति ने मंडी समिति से की है। चार हजार क्विंटल आलू की होती है खरीद
हल्द्वानी मंडी में जून से अक्टूबर तक पहाड़ी आलू की खूब खरीद होती है। रामगढ़, धारी के किसानों से रोजाना चार हजार क्विंटल तक आलू की खरीद होती है। इसी तरह रोजाना दो हजार क्विंटल फलों की भी खरीद होती है। ऐसे समझें मुनाफे का खेल
यदि मंडी में एक किसान 50 रुपये किलो के हिसाब से एक क्विंटल पहाड़ी आलू बेच रहा है तो इसके बदले तीन फीसद आढ़त शुल्क कटौती के बाद उसके हाथ में 4850 रुपये आने चाहिए। लेकिन मनमाने तरीके से आठ फीसद काटे जा रहे आढ़त शुल्क की वजह से किसान को 4600 रुपये ही मिल पाते हैं। यानि एक क्विंटल में सीधे ढाई सौ रुपये का घाटा। रोजाना चार हजार क्विंटल के हिसाब से ये घाटा सीधे दस लाख रुपये तक पहुंच जाता है। जो कि हजारों किसानों के हक का है। मनमानी का आलम
मंडी में किसान को माल आढ़तियों को देने के बाद 6-आर पर्चा दिया जाता है। जिसमें माल का वजन, विक्रेता किसान का नाम, खरीदने वाले आढ़ती की फर्म का नाम, रजिस्ट्रेशन नंबर, आढ़त शुल्क व कुल मूल्य अंकित होता है। लेकिन किसानों का आरोप है कि 6-आर या तो वो सादा पर्चा होता है या फिर प्रिंटेड कागज। जिसमें माल का वजन, फर्म का नाम, रजिस्टेशन नंबर और आढ़त शुल्क तक नहीं लिखा होता। ऐसे में ये पता लगाना बड़ा मुश्किल होता है कि माल की कुल कीमत कितनी लगाई गई है। मंडी में किसानों को उनके माल का पक्का आढ़त का पर्चा बनाकर दिया जाए। जो पर्चा अभी दिया जा रहा है उसमें आढ़त शुल्क तक नहीं लिखा होता है और ऊपर से आठ फीसद आढ़त शुल्क काटा जा रहा है। ये सरासर गलत है।
पूरन सिंह बिष्ट, अध्यक्ष, सूपी आगर आलू उत्पादक स्वायत्त सहकारिता समिति मंडी में माल बेचने वाले किसानों को 6-आर व खरीदने वाले लोगों को 9-आर पर्ची देने की व्यवस्था है। किसानों से तीन फीसद आढ़त शुल्क लिया जाता है।
भुवन चंद्र तिवारी, महामंत्री, आलू-फल आढ़ती व्यापारी एसोसिएशन मंडी इस संबंध में शिकायती पत्र प्राप्त हुआ है। इस तरह की मनमानी पर रोक लगाने के आदेश दिए गए हैं। यदि फिर भी कोई शिकायत मिलती है तो संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
विश्वविजय सिंह देव, अध्यक्ष मंडी समिति हल्द्वानी