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मध्य हिमालय में किसानों ने बंजर भूमि को किया आबाद, 11 गांवों के किसानों का हर्बल कंपनियों से हुआ करार

11 गांवों के 300 किसानों ने एनएमएचएस परियोजना से जुड़कर न केवल बंजर भूमि को आबाद किया है बल्कि अपनी आजीविका का भी विस्तार किया है। किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बाजारों के चक्कर नहीं काटने पड़ रहे हैं।

By Prashant MishraEdited By: Published: Thu, 22 Jul 2021 05:18 PM (IST)Updated: Thu, 22 Jul 2021 05:18 PM (IST)
मध्य हिमालय में किसानों ने बंजर भूमि को किया आबाद, 11 गांवों के किसानों का हर्बल कंपनियों से हुआ करार
आने वाले वर्षो में तेजपात का उत्पादन मध्य हिमालय को एक ओर पहचान देगा।

जागरण संवाददातााा, पिथौरागढ़ : मध्य हिमालय में दशकों से बंजर पड़ी भूमि अब हरी भरी होने लगी है। 11 गांवों के 300 किसानों ने एनएमएचएस परियोजना से जुड़कर न केवल बंजर भूमि को आबाद किया है बल्कि अपनी आजीविका का भी विस्तार किया है। किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बाजारों के चक्कर नहीं काटने पड़ रहे हैं। देश की तमाम हर्बल कंपनियां गांवों में पहुंचकर किसानों के साथ सीधा करार कर रही हैं। 

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लगभग चार वर्ष पूर्व राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एनएमएचएस) परियोजना के तहत चीन और नेपाल सीमा से लगे मध्य हिमालयी क्षेत्र को चुना गया। समुद्रतल से 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थल नारायण आश्रम को इसका केंद्र घोषित किया गया। परियोजना का उद्देश्य हिमालयी क्षेत्र में बंजर पड़ी भूमि को स्थानीय ग्रामीणों की मदद से आबाद कर उन्हें घर पर ही रोजगार उपलब्ध कराना था। परियोजना की कमान हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल के वैज्ञानिकों और शोधार्थियों को सौंपी गई। वैज्ञानिकों ने चौंदास क्षेत्र का भ्रमण कर यहां उत्पादित होने वाली औषधीय महत्व की जड़ी बूटियों को इसके लिए चुना।

वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों की मदद से बंजर पड़ी भूमि में हर्बल नर्सरी, ग्लास, ग्रीन हाउस तैयार किए। शोध के बाद मध्य हिमालय के इस क्षेत्र को कुटकी, गंद्रायणी, जटामांसी, जम्बू फरन, कूट, सम्यो, कपुरकचरी, तेजपात को उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया। इन जड़ी बूटियों का पूर्व में यहां उत्पादन होता था, लेकिन पिछले कुछ समय से ये संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में आ गई थी। वैज्ञानिकों ने चौंदास घाटी क्षेत्र के 14 गांवों के उत्पादन की नवीनतम तकनीक से अवगत कराया और आज इन गांवों के 300 ग्रामीण इन जड़ी बूटियों का उत्पादन करने लगे हैं। ग्रामीणों को अब घर में ही दो से तीन लाख रू पये सालाना की आमदनी हो रही है।

खरीदारों से सीधा करार

चौंदास क्षेत्र में कपुर कचरी(वन हल्दी) और जम्बू का अच्छा खासा उत्पादन होने की जानकारी मिलने पर जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान, जिला भेषज संघ, ह्यूमन इंडिया श्रीनगर, जड़ी बूटी उत्पादक सहकारी समिति ने सीधे क्षेत्र में पहुंचकर ग्रामीणों से उत्पाद खरीदने के लिए करार किया है। इससे उत्पादकों की बाजार की समस्या हल हो गई है। गांव में ही किसानों का पूरा उत्पादन बिक जा रहा है। ये संस्थाएं उत्पादकों को तमाम अन्य मदद भी दे रही हैं। आने वाले वर्षो में तेजपात का उत्पादन मध्य हिमालय को एक ओर पहचान देगा।

परियोजना से मध्य हिमालय को दोतरफा लाभ हो रहा है। इससे जहां अनियंत्रित जड़ी बूटी विदोहन पर रोक लगने से संकटग्रस्त जड़ी बूटियां फिर से उत्पादित होने लगी हैं, वहीं जैव विविधता का भी संरक्षण हो रहा है। किसानों को गांव में ही रोजगार मिलने के साथ बंजर भूमि आबाद हो रही है।

डा.आईडी भट्ट, परियोजना प्रमुख, पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा

चौंदास घाटी को हर्बल वैली के रू प में विकसित करने के लिए तेजी से कार्य हो रहे हैं। बाजार में जड़ी बूटियों की बढ़ती मांग ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही है। हर्बल घाटी के रू प में विकसित हो जाने पर यहां पर्यटन को भी बल मिलेगा।

नरेंद्र सिंह परिहार, परियोजना बायोलॉजिस्ट, पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा


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