खतरों के बावजूद उत्तराखंड के गलियारों में महफूज हैं गजराज, जंगलों में फलफूल रहा कुनबा
खतरे बहुत हैं और दुश्वारियां भी बेशुमार। इसके बादवजूद गजराज की आबादी उत्तर भारत के जंगलों में निरंतर बढ़ रही है। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि दक्षिण भारत की तुलना में उत्तर भारत में हाथियों के कुनबे के फलने-फूलने की संभावनाएं विपुल हैं।
खटीमा, जागरण संवाददाता : खतरे बहुत हैं और दुश्वारियां भी बेशुमार। इसके बादवजूद गजराज की आबादी उत्तर भारत के जंगलों में निरंतर बढ़ रही है। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि दक्षिण भारत की तुलना में उत्तर भारत में हाथियों के कुनबे के फलने-फूलने की संभावनाएं विपुल हैं। गजराज के कुनबे को सुरक्षित रखने का श्रेय कहीं न कहीं चाक चौबंद वनकर्मियों को भी जाता है।
भारत में हाथी न केवल जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका धार्मिक व पैराणिक मान्यताओं में भी इन्हें विशेष स्थान मिला है। इसके बावजूद दांत की लालच में हर वर्ष वन तस्कर बड़ी संख्या में इनका शिकार कर लेते हैं। रेल लाइन और हाईटेंशन बिजली तारों की चपेट में आकर भी बीते वर्षों में कई हाथी असमय काल कवलित हो गए।
उत्तराखंड के गलियारों में 18 सौ हाथी करते हैं विचरण
वैसे तो पूरे भारत में 26 हजार हाथी व 88 कॉरिडोर हैं। उत्तर-प्रदेश व उत्तराखंड में 12 कॉरिडोर हैं। जिसका अधिकांश भू-भाग उत्तराखंड का है। जहां 18 सौ हाथी इन गलियारों में विचरण करते हैं। आकड़े बताते हैं कि 17 सालों में हाथियों के परिवार में तीन सौ से अधिक सदस्य नए हो गए हैं। उत्तराखंड में पाए जाने वाले हाथी को एशियायी हाथी के नाम से जाना जाता है।
विकास की इंट्री ने रोकी हाथियों की इंट्री
फोर लेन-टू लाइन सड़के, ब्राडगेज लाइन, विद्युत लाइन का तेजी से विस्तार होने से वन्यजीवों पर खासा प्रभाव पड़ा है। पिछले तेरह साल में 13 हाथियों की मौत हो गई। सड़क चौड़ी व रेलवे ट्रैक होने की वजह से हाथी अपना मूमेंट पूरा नहीं कर पा रहे हैं। मानव बस्तियां उग जाने का बड़ा कारण सामने आया है।
दादी होती है हाथियों के झुंड की मुखिया
विशेषज्ञ बताते हैं हाथी की याददास्त बहुत गहरी होती है। इसलिए इनकी मुखिया भी हाथियों की दादी होती हैं। जो झुंड की अगुवाई करती हैं। हाथियों को मौसम बलने पर भोजने की तलाश में लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। यह रूट चार्ट हाथियों की दादी के पास रहता है। जो पीढ़ीधर पीढ़ी चला आ रहा है। पन्द्रह साल बाद नर हाथी परिवार से अलग रहने लगता है।
पेट और पैरों से करते हैं संवाद
हाथीआमने-सामने जब होते हैं तब वह पैरों की धमक से आपस में संवाद करते हैं। जब वे दूर होते हैं तब हाथी पेट की गर्जना से आपस में संपर्क कर लेते हैं।
जंगल के लिए हाथी की लीद बड़ी फायदेमंद
कहावत है हाथी का गोवर न लीपने के न पोतने के, लेकिन ऐसा नहीं है। वन विभाग के एसडीओ शिवराज चंद बताते हैं कि हाथी का मन पंसद आहार पत्ते व खाल हैं। जिसमें बांस, आंवला, नरतूल, रोहणी, बरगद, पीपल आदि के पत्ते होते हैं। खास बात यह है कि हाथी की लीद में वही आहर के पौधे फिर से जन्म ले लेते हैं, जिससे जंगलों में प्राकृतिक भोज स्वत: बन जाता है।
वर्ष उत्तराखंड में हाथियों की संख्या
2001 1500
2007 1346
2015 1797
2017 1839
तो मानव संघर्ष की घटनाएं बढेंगी
वन्य जीव विशेषज्ञ डा.जयप्रताप सिंह ने बताया कि जंगल की हर चीज जंगल में रहने वालों के लिए ही बनी है। यदि भरपूर आहार नहीं मिलेगा तो वह जंगल से बाहर आऐंगे और मानव संघर्ष की घटनाएं बढेंगी। इसलिए फल, फूल व पत्ते तोड़कर नहीं लाने चाहिए।
कब कहां हुई हाथियों की मौत
वर्ष कहां कैसे हुई मौत्त
2005 करंट से खटीमा में दो हाथी की मौत
2014 आपसी संघर्ष में एक हाथी की मौत
2014 टांडा रेंज में करंट से एक हाथी की मौत
2014 कार्बेट पार्क में करंट से एक हाथी की मौत
2017 नगला बाइपास ट्रेन से हादसे में हाथी मौत
2017 सैनिक फार्म में करंट से हाथी की मौत
2017 पंतनगर में करंट से हाथी की मौत
2017 पंतनगर ट्रेन हादसे में दो हाथी की मौत
2018 खटीमा में आपसी संघर्ष में मौत
2018 लालकुआं ट्रेन हादसे में हाथी की मौत
हाथियों के दांत के बनते हैं गहने
हाथी में महत्वूर्ण हिस्सा हाथी का दांत होता है। सिर्फ दांत के लिए ही हाथी का शिकार जाता रहा है। विशेषज्ञ बताते हैं इनके दांतों से गहन बनाए जाते हैं।