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मां, मिट्टी से लिपटे होने का अहसास कराती हैं डा. बिष्ट की रचनाएं, उन पर शोध करने वाले मुरली ने बयां की यादें

प्रो. शेर सिंह बिष्ट ऐसे साहित्यकार रहे जो उत्तराखंड की माटी से जुड़े थे। उन्होंने यहां के समाज संस्कृति पर वृहद रूप में लिखा। लोगों ने उनके साहित्य को खूब पसंद किया रिसर्च पेपर लिखे। उनकी किताबें पढ़ते हुए मां मिट्टी से लिपटे होने का अहसास होता है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 09:52 PM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 09:52 PM (IST)
डा. बिष्ट के काम से मुरली इतने प्रभावित हुए कि उन पर पीएचडी करने का मन बनाया।

गणेश पांडे, हल्द्वानी। स्व. शेरदा अनपढ़ के बाद प्रो. शेर सिंह बिष्ट ऐसे साहित्यकार रहे, जो उत्तराखंड की माटी से जुड़े थे। उन्होंने यहां के समाज, संस्कृति पर वृहद रूप में लिखा। लोगों ने उनके साहित्य को खूब पसंद किया, रिसर्च पेपर लिखे। उनकी किताबें पढ़ते हुए मां, मिट्टी से लिपटे होने का अहसास होता है। डा. बिष्ट की कुमाऊंनी पुस्तक भारत माता, ईजा व उचैंण को पढ़ते समय पाठक खुद को रचनाओं में समाहित पाता है।

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प्रो. शेर सिंह बिष्ट के साहित्य पर पहला लघु शोध व पीएचडी करने वाले मुरली मनोहर भट्ट उनके निधन की खबर सुनकर आहत हैं। ओखलकांडा ब्लॉक के जीआइसी डालकन्या के प्रभारी प्रधानाचार्य मुरली मनोहर ने 2012 में डा. प्रभा पंत के निर्देशन में डा. बिष्ट पर लघु शोध किया। विषय था डा. शेर सिंह बिष्ट का व्यक्तित्व एवं कृतित्व। डा. बिष्ट के काम से मुरली इतने प्रभावित हुए कि डा. शेर सिंह बिष्ट का साहित्य सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ विषय से पीएचडी करने का मन बनाया।

पीएचडी से पहले विषय चयन को लेकर जब अल्मोड़ा में रिसर्च डिग्री कमेटी (आरडीसी) बैठी तो मुरली ने कहा, जब प्रेम चंद की एक रचना गोदान पर शोध हो सकता है तो डा. बिष्ट की 60 रचनाओं पर क्यों नहीं? जवाब सुनकर पैनल में बैठे विशेषज्ञ प्रभावित हो गए थे। मुरली ने नैनीताल डीएसबी कैंपस से डा. चंद्रकला रावत के निर्देशन में पीएचडी की है, जो पूर्ण होने वाली है। पीएचडी के सिलसिले में डा. बिष्ट के साक्षात्कार के लिए वह दो माह पहले हल्द्वानी आए थे। मुरली ने बताया कि डा. बिष्ट के निधन की खबर सुनकर आखिरी मुलाकात बार-बार आंखों में तैर रही है।

लोक साहित्य का ध्वजवाहक चला गया

एमबीपीजी कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष डा. प्रभा पंत ने कहा कि प्रो. बिष्ट ने यूजीसी के प्रोजेक्ट के तहत कुमाऊं हिमालय की बोलियों का सर्वेक्षण पर शोध कार्य किया। कुमाऊंनी बोली के संरक्षक के लिए वह सदैव याद किए जाएंगे। साहित्यिक पत्रिका कुमगढ़ के संपादक दामोदर जोशी देवांशु, डा. जगदीश पंत, जगदीश जोशी का कहना है कि प्रो. बिष्ट के रूप में उत्तराखंड ने लोक साहित्य ध्वज वाहक खो दिया है।

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