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Paush Purnima 2021 : सूर्यदेव के उत्तरायण के बाद पहली पूर्णिमा, दान व स्नान का परम महत्व

स्नान व दान आदि के लिए अहम मानी जाने वाली पौष महीने की पूर्णिमा गुरुवार 28 जनवरी को मनाई जाएगी। सूर्योदय से पहले ही पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी। पौष पूर्णिमा का स्नान-दान के साथ पूजा-पाठ व व्रत का भी महत्व है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 27 Jan 2021 06:50 AM (IST)Updated: Wed, 27 Jan 2021 06:50 AM (IST)
Paush Purnima 2021 : सूर्यदेव के उत्तरायण के बाद पहली पूर्णिमा, दान व स्नान का परम महत्व
पौष पूर्णिमा कल: सूर्यदेव के उत्तरायण के बाद पहली पूर्णिमा, दान व स्नान का परम महत्व

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: स्नान व दान आदि के लिए अहम मानी जाने वाली पौष महीने की पूर्णिमा गुरुवार 28 जनवरी को मनाई जाएगी। सूर्योदय से पहले ही पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी। पौष पूर्णिमा का स्नान-दान के साथ पूजा-पाठ व व्रत का भी महत्व है। शास्त्रों में पौष पूर्णिमा के दिन तीर्थ स्नान व दान के साथ ही सूर्य देव को अघ्र्य देने का विशेष महत्व बताया गया है। पौष मास में सूर्यदेव की अराधना से मोक्ष मिलता है। इस कारण पौष की पूर्णिमा तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान के बाद सूर्य देव को अघ्र्य देने की परपंरा है।

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ज्योतिषाचार्य डा. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक पूर्णिमा के दिन जरूरतमंदों को खाने की वस्तुएं और ऊनी कपड़े दान करने चाहिए। दान करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। पौष पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और व्रत करने से पुण्य और मोक्ष मिलता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों की पूजा करने का विधान है। सुबह सूर्योदय के समय सूर्य को अघ्र्य देना शुभ माना गया है, जबकि शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा करने के साथ व्रत का पारायण करना चाहिए।

सूर्य व चंद्रमा के पूजन की परंपरा
पौष पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी राशि यानी कर्क में होता है। इसलिए इसका प्रभाव बढ़ जाता है। पौष पूर्णिमा पौष माह का आखिरी दिन होता है। सूर्यदेव को पौष महीने का देवता माना गया है। ज्योतिषाचार्य डा. गोपाल दत्त त्रिपाठी ने बताया कि पौष के खत्म होते वक्त सुबह जल्दी उठकर भगवान सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। उत्तरायण के चलते इस दिन उगते हुए सूरज को अघ्र्य देने से उम्र बढ़ती है और नकारात्मकता समाप्त होती है। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ये पहली पूर्णिमा होती है। पुराणों के अनुसार उत्तरायण के बाद पहली पूर्णिमा पर चंद्रमा की 16 कलाओं से अमृत वर्षा होती है। इस दिन चंद्रमा को दिया गया अघ्र्य पितरों को पहुंचता है।

गंगाजल की बूंदे डालकर करें स्नान
ग्रंथों के मुताबिक पौष पूर्णिमा के मौके पर पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। ऐसा करने से पापों से मुक्ति के साथ व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा के दिन तीर्थ स्थलों पर लोग एकत्र होते हैं। कुमाऊं में हल्द्वानी के रानीबाग के चित्रशिला घाट, बागेश्वर के सरयू, जागेश्वर के जटागंगा व अल्मोड़ा व पिथौरागढ़ जिले के बार्डर में रामेश्वर धाम में स्नान को श्रद्धालु जुटते हैं। विद्धानों का कहना है कि कोरोना की वजह से कोई लोग घाट पर नहीं जा पाते तो घर पर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। शास्त्रों में देश-काल व परिस्थिति अनुसार विकल्प का विधान बताया गया है।


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