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अंकिता हत्याकांड के बाद राजस्व पुलिस खत्म करने की फिर उठी मांग, आखिर है क्या रेवेन्यू पुलिसिंग

1857 के विद्रोह से घबराए अंग्रेजों ने देश में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए साल 1861 ‘पुलिस ऐक्ट’ लागू किया। इसके तहत देशभर में पुलिसिया व्यवस्था का ढांचा तैयार किया गया लेकिन खर्च कम करने के लिए कठिन इलाकों में पुलिस की जिम्मेदारी रेवेन्यू डिपार्टमेंट को सौंप दी गई।

By JagranEdited By: Skand ShuklaPublished: Wed, 28 Sep 2022 03:31 PM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2022 03:31 PM (IST)
अंकिता हत्याकांड के बाद राजस्व पुलिस खत्म करने की फिर उठी मांग, आखिर है क्या रेवेन्यू पुलिसिंग

हल्द्वानी जागरण संवाददाजा : अंकिता हत्याकांड के बाद एक बार फिर उत्तराखंड में राजस्व पुलिसिंग (revenue policing Uttarakhand) को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। राजस्व पुलिस को समाप्त कर प्रदेश भर में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी रेगुलर पुलिस को सौंपने की मांग उठी है। इसको लेकर कुछ लोग फिर हाईकोर्ट की शरण में पहुंचे हैं। क्या है राजस्व पुलिस? कैसे यह रेगुलर पुलिस से अलग और कमजोर है? चलिए जानते हैं।

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खर्च कम करने को अंग्रेजों ने रेवेन्यू अधिकारियों का सौंपी थी पुलिसिंग

1857 के विद्रोह से घबराए अंग्रेजों ने देश में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए साल 1861 ‘पुलिस ऐक्ट’ लागू किया। इसके तहत देशभर में पुलिसिया व्यवस्था का ढांचा तैयार किया गया, लेकिन खर्च कम करने के लिए कठिन इलाकों में पुलिस की जिम्मेदारी रेवेन्यू डिपार्टमेंट के अधिकारियों को ही सौंप दी गई।

आजादी के बाद भी उत्तराखंड में नहीं खत्म की गई राजस्व पुलिसिंग

देश की आज़ादी के बाद इस व्यवस्था में बदलाव हुए। पुलिस महकमा मज़बूत किया गया और देश के कोने-कोने में लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस चौकियां खोली गईं। महिला पुलिस की तैनाती की गई। अलग-अलग तरह की हेल्पलाइन शुरू हुई। वक्त के साथ पुलिस विभाग को लगातार मॉडर्न ट्रेनिंग और तकनीक से समृद्ध किया जाने लगा। लेकिन, उत्तराखंड का ज्यादातर क्षेत्र इन तमाम चीजों से अछूता ही रहा।

उत्तराखंड में 61 प्रतिशत हिस्से में नहीं राजस्व पुलिसिंग

उत्तराखंड में 61 प्रतिशत हिस्सा आज भी ऐसा है, जहां न तो कोई पुलिस थाना है, न कोई पुलिस चौकी और न ही यह इलाका उत्तराखंड पुलिस के क्षेत्राधिकार में आता है। यहां आज भी अंग्रेजों की बनाई वह व्यवस्था जारी है, जहां पुलिस का काम रेवेन्यू डिपार्टमेंट के कर्मचारी और अधिकारी ही करते हैं। इस व्यवस्था को ‘राजस्व पुलिस’ कहा जाता है।

रेवेन्यू के कर्मचारी होते हैं राजस्व पुलिस

राजस्व पुलिस में पटवारी, लेखपाल, कानूनगो और नायब तहसीलदार जैसे कर्मचारी और अधिकारी ही रेवेन्यू वसूली के साथ-साथ पुलिस का काम भी करते हैं। कोई अपराध होने पर इन्हीं लोगों को एफआईआर भी लिखनी होती है, मामले की जांच-पड़ताल भी करनी होती है और अपराधियों की गिरफ्तारी भी इन्हीं के जिम्मे है। जबकि इनमें से किसी भी काम को करने के लिए इनके पास न तो कोई संसाधन होते हैं और न ही इन्हें इसकी ट्रेनिंग मिलती है।

हाई कोर्ट ने राजस्व पुलिस को खत्म करने के दिए थे आदेश

साल 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस व्यवस्था को समाप्त करने के आदेश दिए थे। तब एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने आदेश दिए थे कि छह महीने के भीतर पूरे प्रदेश से राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त की जाए और सभी इलाकों को प्रदेश पुलिस के क्षेत्राधिकार में शामिल किया जाए। लेकिन, इस आदेश के ढाई साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई है।


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