फसल हाथी ने बर्बाद की या मवेशी को बाघ-गुलदार ने खाया तो इस एप पर करें शिकायत
बाघ-गुलदार जैसे वन्यजीव ने मवेशियों को अपना निवाला बनाया है तो सूचना देने के लिए वन विभाग के दफ्तरों के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है।
हल्द्वानी, जेएनएन : अगर आपके खेत में घुसकर हाथियों ने फसल को रौंद दिया है। या फिर बाघ-गुलदार जैसे वन्यजीव ने मवेशियों को अपना निवाला बनाया है तो सूचना देने के लिए वन विभाग के दफ्तरों के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है। अब पीडि़त मोबाइल से ही इसकी जानकारी अधिकारियों तक पहुंचा सकता है। बस गूगल प्ले स्टोर से वाइल्डलाइफ उत्तराखंड को डाउनलोड कर उसमें जानकारी दर्ज करनी होगी।
यूएनडीपी के प्रोजेक्ट सिक्योर हिमालया के तहत मंगलवार को एफटीआइ में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में वन विभाग के अधिकारियों को एप की खासियत से रूबरू करवाया गया। उत्तराखंड में पहली बार यह सिस्टम लागू किया जा रहा है। पहली ट्रेनिंग एफटीआइ में ही हुई, जिसमें कुमाऊं के वनाधिकारी पहुंचे। इसके बाद गढ़वाल मंडल में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस दौरान डायरेक्टर एफटीआइ आइपी सिंह, डीएफओ महातिम यादव, डीएफओ हिमांशु बागरी, एसडीओ यूसी तिवारी, रेंजर शालिनी जोशी, अमित ग्वासाकोटी, संतोष पंत आदि शामिल रहे।
फॉरेस्ट के सुझाव भी शामिल होंगे
कार्यशाला के दौरान फॉरेस्ट अफसरों ने एप को लेकर सवाल भी किए। डेवलपर टीम इन सुझावों को भी सॉफ्टवेयर में शामिल करेगी। कार्यशाला में प्रशिक्षण देने वालों में सिंकिता नेगी, तनुस गैरोला, रेनू, नवीन मेहरा आदि शामिल रहे। वहीं, अपर्णा पांडे इस प्रोजेक्ट की स्टेट हेड है।
एप ऐसे करेगा काम
वन्यजीवों से फसल या मवेशियों को नुकसान पहुंचने पर घटना की फोटो व अन्य जानकारी एप में फीड करनी होगी। लोकेशन के नाम पर पहले जिले का नाम आएगा। उसमें जाने पर उसे जिले की डिवीजनों का रिकॉर्ड भी दिख जाएगा। संबंधित वनक्षेत्र के हिसाब से पीडि़त अपनी शिकायत दर्ज कराएगा। दर्ज होते ही उसे संदेश भी पहुंचेगा। बाद में रेंज टीम निरीक्षण को भी पहुंचेंगे। ऐप में डिस्ट्रिक मैपिंग करवाई गई है।
मैनेजमेंट इन्फॉरमेशन सिस्टम पर भी काम
सॉफ्टवेयर डेवलपर टीम में शामिल सिंकिता नेगी ने बताया कि मैनेजमेंट इन्फॉरमेशन सिस्टम यानी एमआइएस पर भी काम होगा। इसमें मानव-वन्यजीव संघर्ष से लेकर वन्य अपराधों का डाटा फीड किया जाएगा। डिवीजन, जोन व सर्किल के हिसाब से जानकारी दर्ज की जाएगी। पासवर्ड के माध्यम से इस ऑनलाइन डाटा को चेक किया जा सकेगा। जंगलों से जुड़े अपराध का सुराग तलाशने में यह सिस्टम कारगर साबित हो सकता है।