Uttarakhand Forest Fire: उत्तराखंड में लगातार बढ़ रहे जंगलों में आग के मामले, अप्रैल में रोज 25 हेक्टेयर की औसत से जले देवभूमि के जंगल
उत्तराखंड के जंगलों में आग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि वन विभाग की मांग पर प्रशासन ने पीआरडी जवान भी उपलब्ध करवा दिए हैं। इसके अलावा शुक्रवार शाम से वायुसेना ने भी मोर्चा संभाल लिया। नैनीताल व आसपास के जंगलों में हेलीकाप्टर के माध्यम से जलते जंगलों की आग बुझाने की कोशिश की जा रही है।
गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी। आमतौर पर सर्दियों में जंगल नहीं जला करते। पिछले कुछ साल में छुटमुट घटनाएं सामने आने पर उत्तराखंड वन विभाग ने एक नवंबर से आग की निगरानी शुरू कर दी। 31 मार्च तक स्थिति नियंत्रण में थी। इन पांच माह में करीब 32 हेक्टेयर जंगल जला, मगर अप्रैल के साथ चुनौती और चिंता भी शुरू हो गई। सिर्फ एक से 26 अप्रैल के बीच 657 हेक्टेयर जंगल जल चुका है। यानी 25 हेक्टेयर की औसत से रोजाना हरियाली राख हो रही है। यही वजह है कि सेना ने भी आग बुझाने के लिए मोर्चा संभाल लिया।
जलते जंगलों की आग बुझाने की कोशिश की जा रही है
उत्तराखंड के जंगलों में आग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि वन विभाग की मांग पर प्रशासन ने पीआरडी जवान भी उपलब्ध करवा दिए हैं। इसके अलावा शुक्रवार शाम से वायुसेना ने भी मोर्चा संभाल लिया। नैनीताल व आसपास के जंगलों में हेलीकाप्टर के माध्यम से जलते जंगलों की आग बुझाने की कोशिश की जा रही है।
नुकसान का आंकड़ा 75 हेक्टेयर को भी पार कर गया
वहीं, वन विभाग के आधिकारिक आंकड़ों पर नजर डालें तो एक अप्रैल से आग की घटनाओं में वृद्धि का सिलसिला शुरू हो गया था। नवंबर से मार्च तक जहां केवल 32 हेक्टेयर जंगल जला तो अप्रैल में दो दिन ऐसे थे, जब नुकसान का आंकड़ा 75 हेक्टेयर को भी पार कर गया था।
अराजकतत्व लगा दे रहे आग
दूसरी तरफ, वन विभाग के अधिकारी चीड़ के जंगल, अराजकतत्व से लेकर मौसम को भी इन घटनाओं की बड़ी वजह मान रहे हैं। हालांकि, आग का यह दायरा नई आशंकाओं का संकेत भी दे रहा है। वन्यजीवों, दुर्लभ वनस्पतियों से लेकर प्राकृतिक जलस्त्रोतों तक पर खतरा मंडरा रहा है।
मुख्य बिंदु
:-एक नवंबर से 26 अप्रैल तक कुल घटनाएं-575
:-गढ़वाल में 211 घटनाओं में 234.45 हेक्टेयर जंगल जला
:-कुमाऊं में 313 घटनाओं में 395.92 हेक्टेयर जंगल झुलसा
:-वन्यजीव वाले क्षेत्रों में 51 मामलों में 59.52 हेक्टेयर नुकसान
आग लगने की पांच मुख्य वजहें
:-अप्रैल में पारा लगातार बढऩे की वजह से आग का दायरा भी बढ़ा।
:-अराजकतत्व भी जंगल में आग लगाते हैं, कभी गलती से भी घटना।
:-सर्दियों में हिमपात व बरसात में कमी, ऐसे में जंगल सूखे पड़े हुए हैं।
:-पर्वतीय क्षेत्र में हवा की वजह से चिंगारी एक से दूसरे जंगल पहुंच रही।
:-अप्रैल में मामले तेजी से बढ़े, लेकिन उस हिसाब से विभागीय तैयारी नहीं।
ये डिवीजनें आग की चपेट में आईं
बागेश्वर डिवीजन, चंपावत डिवीजन, तराई पूर्वी, रामनगर प्रभाग, अल्मोड़ा डिवीजन, पिथौरागढ़ डिवीजन, हल्द्वानी वन प्रभाग, नैनीताल डिवीजन के अलावा गढ़वाल मंडल की कई डिवीजनों में अब तक आग लग चुकी है। केदारनाथ वन्यजीव डिवीजन, कार्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी टाइगर रिजर्व, नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क जैसे वन्यजीव आरक्षित वाले क्षेत्रों तक में भी आग लग चुकी है।
आग बुझाने के दौरान वन दारोगा समेत पांच कर्मी बेहोश
बूम रेंज में जंगल की आग बुझाने के दौरान वन दारोगा समेत पांच वनकर्मी बेहोश हो गए। आग की तेज लपटों के बीच आक्सीजन न मिलने व डिहाइड्रेशन से बेहोशी की बात कही जा रही है। अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद सभी को छुट्टी दे दी गई। बूम रेंजर गुलजार हुसैन ने बताया कि नघान, श्याला, आमखर्क, बरमदेव बीट के अलावा वन पंचायत तलियाबांज में 24 अप्रैल से वनाग्नि की घटना हो रही हैं।
आग बुझाने के दौरान धुएं व तेज लपटों से वनकर्मी बेहोश हो गए
शुक्रवार शाम वन दारोगा मनोज राय के नेतृत्व में टीम बूम रेंज में गई थी। आग बुझाने के दौरान धुएं व तेज लपटों से वनकर्मी बेहोश हो गए। फायर श्रमिक दीपक महर, वन रक्षक गंगा कुंवर, अक्षय कुमार, होशियार सिंह भी धुएं से बेहोशी जैसी स्थिति में आ गए। सभी को ग्लूकोज पिलाकर अस्पताल लाया गया। सीएमएस डा. घनश्याम तिवारी ने बताया कि आग की लपटों से वनकर्मियों में आक्सीजन की कमी हो गई थी। जिस कारण उन्हें बेहोशी हुई। उपचार के बाद सभी को घर भेज दिया गया।