हाईवे पर भूस्खलन रोकेगा 'काला बांस'
भूगर्भीय लिहाज से नाजुक अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर 'काला बांस' यानी ब्लैक बेंबू भूस्खलन का खतरा टालेगा।
By Edited By: Published: Fri, 13 Jul 2018 01:43 AM (IST)Updated: Tue, 17 Jul 2018 05:14 PM (IST)
संवाद सहयोगी, रानीखेत/गरमपानी : भूगर्भीय लिहाज से नाजुक अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर 'काला बांस' यानी ब्लैक बेंबू भूस्खलन का खतरा टालेगा। वैज्ञानिकों के सुझाव पर प्रशासन की दिलचस्पी के बाद भूस्खलन प्रभावित पहाडि़यों पर अबकी बरसात में वृहद स्तर पर कमजोर मिट्टी को जकड़ कर रखने वाली यह बांस प्रजाति के पौधे लगाए जाएंगे। विशेषज्ञों का दावा है कि कम लागत में अधिक टिकाऊ यह तकनीक कमजोर भूभाग को थामने में मददगार साबित होती। वर्ष 2010 की प्रलयंकारी आपदा में हाईवे के तबाह होने के बाद जेसीबी से पहाडि़यों का कटान से भूस्खलन का खतरा और बढ़ चुका है। तमाम डेंजर जोन पर अतिसंवेदनशील पहाडि़यों के उपचार को करोड़ों का बजट खर्च करने के बावजूद स्थायी समाधान अब तक नहीं मिला है। नतीजतन, हाईवे पर जनहानि का सिलसिला बरकरार है। मगर इस बार बरसात में भूस्खलन का जोखिम कम करने के लिए देर से ही सही पर जो रास्ता निकाला गया है, उसे कुछ हद तक कारगर माना जा रहा है। सिरदर्द बन चुके डेंजर जोन लोहाली व अन्य पहाडि़यों पर प्रशासन ने 'काला बांस' के पौधे लगाने का निर्णय लिया है। वैज्ञानिकों की सलाह पर एसडीएम प्रमोद कुमार जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि पंतनगर की कोसी घाटी स्थित मझेड़ा अनुसंधान केंद्र पहुंचे। प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. रिपुसूदन से 'काला बांस' के गुणों की जानकारी ली। कहा कि जल्द ही एनएच अधिकारियों के साथ सर्वे करेंगे। डेंजर जोन लोहाली से इसकी शुरुआत की जाएगी। ================ 'मुख्य उद्देश्य पहाड़ी से हो रहे भूस्खलन को रोकना है। काला बास भूस्खलन रोकने में मददगार होगा। यही नहीं मलबा या पत्थर गिरने पर काला बास का जालनुमा फैलाव उसकी गति को कम करेगा। इससे पत्थर कम वेग से हाईवे की ओर गिरेंगे, जो कम खतरनाक होंगे। - प्रमोद कुमार, एसडीएम' ================ 'लंबे शोध व अध्ययन बाद हमने पाया कि भूस्खलन संभावित क्षेत्र में काला बास बेहतर काम कर सकता है। यह काफी तेजी से फैलता है। इसकी जड़ें मिट्टी को मजबूती से जकड़ कर रखती हैं। यह तेज बारिश को बर्दाश्त कर मिट्टी को खिसकने नहीं देता। - डॉ. रिपुसूदन, शोध वैज्ञानिक जीबी पंत कृषि अनुसंधान केंद्र मझेड़ा'
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