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नेपाल सीमा से लगे तल्लाबगड़ में मछली पालन से कर रहे बेहतर आमदनी

तल्ला बगड़ के काली नदी घाटी स्थित चमतोली गांव के युवक जीवन सिंह धामी ने अपने बुलंद हौसले के बल पर ही यह उपलब्धि प्राप्त की है। तीन मत्स्य टैंक के जरिये वह फिलहाल प्रतिमाह पांच क्विंटल मछली उत्पादन कर रहे हैं।

By Prashant MishraEdited By: Published: Thu, 09 Dec 2021 03:15 PM (IST)Updated: Thu, 09 Dec 2021 03:15 PM (IST)
प्रतिमाह पांच क्विंटल मछली उत्पादित कर अस्कोट से लेकर जौलजीबी तक के बाजार में आपूर्ति कर रहे हैं।
आन सिंह धामी, तीतरी (पिथौरागढ़)।  रोजगार की तलाश में पहाड़ से पलायन करने वालों को नेपाल सीमा से सटे तल्ला बगड़ के जीवन सिंह धामी ने नई राह दिखाई है। अपने उद्गम से जौलजीबी तक मछलियों के लिए प्रतिकूल बेहद ठंडी नदियों के क्षेत्र में भी प्रकृति की चुनौती को स्वीकार कर वह प्रतिमाह पांच क्विंटल मछली उत्पादित कर अस्कोट से लेकर जौलजीबी तक के बाजार में आपूर्ति कर रहे हैं।
तहसील डीडीहाट एवं विकास खंड कनालीछीना के अंतर्गत नेपाल सीमा से लगे तल्ला बगड़ के काली नदी घाटी स्थित चमतोली गांव के युवक जीवन सिंह धामी ने अपने बुलंद हौसले के बल पर ही यह उपलब्धि प्राप्त की है। तीन मत्स्य टैंक के जरिये वह फिलहाल प्रतिमाह पांच क्विंटल मछली उत्पादन कर रहे हैं। उनकी योजना इसे प्रतिमाह 10 क्विंटल तक पहुंचाने की है। वह कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प, रोहू, कतला, मुराक और पंगासियस प्रजातियों का पालन कर रहे हैं, जिनकी क्षेत्र में विशेष मांग है। 
बर्फानी नदी में नहीं होती मछली
काली नदी घाटी क्षेत्र में उत्त्तराखंड की सबसे बड़ी और लंबी काली नदी बहती है। हिमनदों (ग्लेशियर) से निकलने वाली काली नदी अपने मूल उद्गम से लगभग 130 किमी दूर जौलजीबी से तल्ला बगड़ में प्रवेश करती है। जौलजीबी में काली नदी में दूसरी विशाल बर्फानी गोरी मिलती है। दोनों नदियों का पानी अत्यधिक ठंडा होने से इनमें मछलिया नहीं मिलती हैं। जौलजीबी से झूलाघाट के बीच 30 किमी का दायरा मछलियों के लिए उपयुक्त है।  
गैर हिमानी देपाल गाड़ को चुना
जीवन सिंह धामी ने हंसेश्वर मठ के निकट बहने वाले गैर हिमानी देपाल गाड़ में मत्स्य उत्पादन कर क्षेत्र में नए अध्याय का सूत्रपात किया है। अभी तक कई क्विंटल मछली उत्पादन कर बेच चुके हैं। अनुकूल माहौल और जलवायु मददगार साबित हो रही है। 
अस्कोट से जौलजीबी तक कर रहे आपूर्ति
अस्कोट से लेकर जौलजीबी तक के लोगों को जीवन के उद्यम से घर पर ही ताजी मछलियां मिल रही हैं। जीवन का लक्ष्य प्रतिमाह दस क्विंटल उत्पादन का है। इसके लिए उन्होंने 30 गुणा 90 मीटर के तीन तालाब बनाए हैं।
स्वरोजगार का बढिय़ा माध्यम
जीवन का कहना है कि क्षेत्र में मछली पालन स्वरोजगार का सबसे अच्छा माध्यम है। वह बताते हैं कि हंसेश्वर मठ के महंत परमानंद गिरि महाराज, मत्स्य विभाग और बैंक का सहयोग भी प्रेरणादायक रहा। क्षेत्र में बेरोजगार मत्स्य पालन की तरफ उन्मुख हों तो तल्ला बगड़ पिथौरागढ़ जिले में सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक क्षेत्र बन सकता है। यह जिले की मांग पूरी करने की क्षमता रखता है।
अन्य युवा भी हो रहे प्रेरित 
सकारात्मक पहल का ही परिणाम है कि जीवन के उद्यम से अन्य युवा भी प्रेरित हो रहे हैं। क्षेत्र के ही ललित सिंह, योगेंद्र पाल आदि भी छोटे-छोटे तालाब बनाकर मछली पालन कर आमदनी बढ़ा रहे हैं। 
मत्स्य निरीक्षक रमेश चलाल ने बताया कि जिले के नदी घाटी क्षेत्रों में युवा मछली उत्पादन पर अच्छा काम कर रहे हैं। काली नदी घाटी, गोरी नदी, रामगंगा नदी सहित अन्य घाटियां मत्स्य उत्पादन के अनुकूल हैं। इन स्थानों पर पर्याप्त पानी है। तल्लाबगड़ में मत्स्य पालन सफल साबित हो रहा है।

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