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चाय अब सि‍र्फ चुस्‍की के काम नहीं आएगीी, बेकार समझी जानी वाली पत्तियों से बनेंगे हर्बल उत्पाद

चाय की बेकार पत्‍ति‍यों से अब सौंदर्य से जुड़े हर्बल उत्पाद तैयार किए जाने लगे हैं। अरुणाचल में इस पर सफल प्रयोग के बाद अब जीबी पंत रोष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के विज्ञानी उत्तराखंड मेें भी इस फार्मूला पर अध्ययन में जुट गए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2020 07:47 AM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 07:47 AM (IST)
चाय अब सि‍र्फ चुस्‍की के काम नहीं आएगीी, बेकार समझी जानी वाली पत्तियों से बनेंगे हर्बल उत्पाद
चाय अब सि‍र्फ चुस्‍की के काम नहीं आएगा, बेकार समझी जानी वाली पत्तियों से बनेंगे हर्बल उत्पाद

अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : चाय अब सि‍र्फ चुस्‍की के काम नहीं आएगा। बागनों में छटी हुई पत्तियां जिन्हें अमूमन बेकार समझ कर अलग कर दिया जाता है, उससे अब सौंदर्य से जुड़े हर्बल उत्पाद तैयार किए जाने लगे हैं। अरुणाचल में इस पर सफल प्रयोग के बाद अब जीबी पंत रोष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के विज्ञानी राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एनएचएमएस) के तहत उत्तराखंड मेें भी इस फार्मूला पर अध्ययन में जुट गए हैं।

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दरअसल, नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) अरुणाचल प्रदेश को वर्ष 2017-18 में मिशन की ओर से यह परियोजना स्वीकृत की गई। एनआईटी ने अरुणाचल में चाय के रासायनिक गुणों का अध्ययन किया। निष्कर्ष निकाला कि इसमें अपार संभावनाएं हैं। परियोजना के तहत चाय के फिनोलिक और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से नए उत्पाद बनाने की ठानी। यहीं से एक नई राह निकल पड़ी जो कोरोनाकाल में बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं खासतौर पर प्रवासियों को बेहतर स्वरोजगार दे सकता है।

राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के नोडल अधिकारी प्रो. किरीट कुमार ने बताया कि मिशन की यह बड़ी उपलब्धि है। छंटी चाय से तैयार किए जा रहे हर्बल उत्पाद उत्तराखंड समेत अन्य पर्वतीय राज्यों में आजीविका का एक बढ़ा विकल्प बन सकता है। आने वाले समय में चाय उत्पाद राज्यों के लिए बड़ी उम्मीद की किरण बनेगी।

उपेक्षित अवशेष बड़े काम का

आमतौर पर चाय की पत्तियां अपने निर्माण के पीछे अपना बड़ा भाग छोड़ देती है। चाय पत्ती की छंटाई से लेकर बागानों में छंटनी के बाद बड़ी मात्रा में पत्ती, टहनियां आदि भाग बच जाते हैं। एनआईटी के युवा विज्ञानियों व शोधार्थियों ने इन्हीं अवशेष भागों पर अध्ययन किया। नतीजा युवा प्रतिभाओं ने बेकार समझे जाने वाली छंटी चाय पत्तियों व टहनियों से साबुन, सौंदर्य उत्पाद ही नहीं बल्कि वर्तमान में सेनिटाइजर तक बनाने में सफलता हासिल कर ली है।

जैव ईंधन भी बना डाला

परियोजना प्रमुख डा. साकेत कुमार जाना के नेतृत्व में युवा वैज्ञानिकों और शोधार्थियों ने चाय पौधे के अवशेष से जैव ईंधन तक तैयार किया है। यह ईंधन पर्यावरण के लिए अनुकूल माना जा रहा। चाय पत्ती के अवशेष से तैयार छोटी गोलियां जो कोयले की भांति जलती हैं, ईंधन का एक नया विकल्प हो सकता है। जैविक उप उत्पादों को तैयार करने के साथ परियोजना के तहत ऐसी तकनीक विकसित करनी थी जो टिकाऊ व सतत् हो।

अभी ये उत्पाद बनने लगे

अरुणाचल में वर्तमान में छंटी चाय के अवशेष से दंतमंजन, बाडीटेक, शैंपू, हेयर आयल, बाडी आयल, फेसवाश, लिप बाम, कोल्ड क्रीम व एंटी सेप्टिक क्रीम के साथ सेनिटाइजर शानदार पैकिंग में मार्केटिंग शुरू कर दी गई है। रासायनिक विश्लेषण में ये उत्पाद सुरक्षित व गुणवत्तापूर्ण पाए गए हैं।

अब उत्तराखंड की बारी

वर्तमान में प्रयोग का चरण पूरा होने पर इन उत्पादों के पेटेंट के साथ अब उत्तराखंड व अन्य हिमालयी राज्यों में इन्हें व्यवसायिक रूप से बड़ी मात्रा में तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ाया जाएगा। विज्ञानियों की मुहिम रंग लाई तो देश के पर्वतीय राज्यों में घाटे की मार से बेजार चाय बागानों में यह शोध अनुसंधान नई जान फूंक स्वरोजगार के नए अवसर देगा।


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