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आपातकाल के दौरान दो साल जेल में रहे बसंत बल्लभ पांडे, रोटी में छिपाकर भेजते थे संदेश

इंदिरा गांधी शासन के दौरान 1975 में लगा आपातकाल काले अध्याय से कम नही था। इस दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का काम किया।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 27 Jun 2019 12:41 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2019 12:41 PM (IST)
आपातकाल के दौरान दो साल जेल में रहे बसंत बल्लभ पांडे, रोटी में छिपाकर भेजते थे संदेश
आपातकाल के दौरान दो साल जेल में रहे बसंत बल्लभ पांडे, रोटी में छिपाकर भेजते थे संदेश

बागेश्वर, जेएनएन : इंदिरा गांधी शासन के दौरान 1975 में लगा आपातकाल काले अध्याय से कम नही था। इस दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का काम किया। जेपी के नेतृत्व में आपातकाल के दौरान पूरे देश लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन किए गए। बागेश्वर में भी इसकी चिंगारी पहुंची। पूरी सरकारी मशीनरी को इस आंदोलन को कुचलने के लिए लगा दिया गया। लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत से निकले लोगों के आगे सरकार घुटने टेकने को मजबूर हो गई। आपातकाल के वह दो साल के गवाह बने बसंत बल्लभ पांडे आज भी उस दौर को याद कर इसे लोकतंत्र की हत्या करने से जोड़ते हैं।

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1975 में अल्मोड़ा जिले का एक तहसील हुआ करता था बागेश्वर। तहसील मुख्यालय में बीते 5 जुलाई 1975 को जनसंघ के नेताओं की बैठक चल रही थी। बैठक में आपातकाल को लेकर चर्चा हो रही थी। कुछ देर बाद उपजिलाधिकारी चनर राम, कलेक्टर मुकुल सनवाल का फरमान लेकर आए। तब जनसंघ के तेज तर्रार युवा नेता बसंत बल्लभ पांडे पुत्र दुर्गा दत्त पांडे को गिरफ्तार किया गया। उन पर डीआईएस तथा 17 क्रिमिनल लॉ एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज किए गए। उन्हें 6 जुलाई 1975 को अल्मोड़ा जेल भेज दिया। जहां उन्हें उनके 20 अन्य साथियों के साथ रखा गया। वह दो वर्ष तक अल्मोड़ा जेल में रहे। 28 जनवरी 1977 को उन्हे रिहा किया गया। 

बसंत बल्लभ पांडे ने बताया कि आपातकाल के दौरान बाहर की जानकारी नहीं मिल पाती थी। तब उस समय एक युक्ति के जरिए हमारे पास सूचनाओं का आदान-प्रदान होता था। तब अल्मोड़ा में जनसंघ के महामंत्री थे गोविंद सिंह बिष्ट। उनके लिए घर से रोटी सब्जी आती थी। रोटी के अंदर संदेश जेल के अंदर आते थे। जिससे हमें बाहर की गतिविधियों की जानकारी मिलती थी। जब राजनैतिक कैदी का दर्जा मिला तो यह संकट नहीं रहा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में यह किसी काले धब्बे से कम नही हैं। ऐसा लगा की मानों खुली हवा में सांस लेना बंद हो गया हैं। पूरी व्यस्था वेंटिलेटर पर आ गई थी।

अल्मोड़ा जेल में की भूख हड़ताल

आपातकाल के दौरान पकड़े गए लोगों को अल्मोड़ा जेल में सामान्य कैदी की तरह ही रखा जाता था। उन्हें कीड़े लगे चावल व पानी वाली दाल  मिलती थी। जब उनके साथ भी यही बर्ताव हुआ तो अन्य साथियों के साथ उन्होंने इसके खिलाफ भूख हड़ताल शुरु कर दी। पांच दिन तक चली भूख हड़ताल के बाद उनकी जीत हुई। उन्हें तब राजनैतिक कैदी का दर्जा मिला। उसके बाद प्रत्येक कैदी के लिए 16 रुपए दिए जाने लगे। जिससे बाद से उन्हें अच्छा खाना मिलने लगा। 

1969 में जनसंघ से जुड़े बसंत

70 वर्षीय बसंत बल्लभ बीते 1969 में जनसंघ से जुड़े। इसी दौरान वह सरस्वती शिशु मंदिर रुद्रपुर में आचार्य के रुप में कार्य करने लगे। 1982 तक वह आचार्य रहे। आपातकाल में वह दो साल अल्मोड़ा जेल भी रहे। जब 1980 में भाजपा बनी तो वह भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता के रुप में काम करने लगे। अभी वह कठायतबाड़ा में अपना व्यवसाय करते है। उनका जनरल स्टोर व मिठाई की दुकान है। उनके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं।

आपातकाल में अल्मोड़ा जेल में बंद राजनैतिक कैदी

शारदा चरण जोशी, अल्मोड़ा

बसंत बल्लभ पांडे, बागेश्वर

पूरन चंद्र शर्मा, अल्मोड़ा 

गोङ्क्षवद सिंह बिष्ट, अल्मोड़ा

विपिन चंद्र त्रिपाठी, द्वाराहाट

कृष्णानंद, जागेश्वर 

षष्टी दत्त, जागेश्वर

ओमपाल सिंह निवासी मेरठ

रामचंद्र चतुर्वेदी लोहाघाट

पूरन प्रसाद, रामपुर

धीरज सिंह निवासी अल्मोड़ा

पूरन चंद्र जोशी पिथौरागढ़

अशोक कुमार शर्मा, एटा

रणजीत सिंह, अल्मोड़ा

पनी सिंह, पिथौरागढ़

देवीदीन पाल, बांदा

कामेश्वर बसंल, अलीगढ़

शिव सिंह, अल्मोड़ा

चंदन सिंह, अल्मोड़ा 

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