Bachendri Pal Birthday : बछेन्द्री पाल : पहाड़ों की बेटी जो एवरेस्ट फतह के बाद देश की हो गई, जानिए उनके जीवन से जुड़ी दस अहम बातें
happy Birthday Bachendri Pal भारत की पहली महिला एवरेस्ट विजेता बछेन्द्री पाल आज देश दुनिया में महिला शक्ति का सबसे अहम और बड़ा प्रतीत हैं। आज उनका 68वां जन्मदिन हैं। चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी अहम बातों के बारे में।
By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 24 May 2022 09:41 AM (IST)Updated: Tue, 24 May 2022 09:41 AM (IST)
जागरण संवाददाता, नैनीताल : Bachendri Pal Birthday : एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली और विश्व की पांचवीं महिला बछेन्द्री पाल का 68वां जन्मदिन है। वह बेटी जिसने भारत में महिलाओं के प्रति बनी रूढ़ और परंपरागत धारणाओं को ध्वस्त कर दिया। जिसने हजारों लाखों महिलाओं को स्पोर्ट और एडवेंचर के लिए प्रेरित किया। घर-घर में लोगों ने कहना शरू किया हमारी बिटिया बछेन्द्री पाल जैसी बनेगी। चलिए इस मौके पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी दस अहम बातें।
- बछेन्द्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नकुरी गांव में हुआ था। वह अपने गांव में ग्रेजुएशन करने वाली पहली महिला थीं। बीए करने के बाद बछेंद्री ने संस्कृत से एमए किया। इसके बाद बीएड की डिग्री हासिल की। परिवार वाले नहीं चाहते थे कि वह पर्वतारोही बने।
- बछेंद्री के गांव में लड़कियों की पढ़ाई लिखाई को अच्छे नजरिए से नहीं देखा जाता था। किसान परिवार होने के कारण उनके घर की माली हालत भी अच्छी न थी। इसलिए उन्हें शुरुआत में सिलाई कर खर्च चलाना पड़ा। वह जंगलों लकड़ी और घास लेने जाया करती थीं।
- पढ़ाई लिखाई और डिग्री हासिल करने के बाद भी जब बछेन्द्री पाल को कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो उन्हें लगा कि ये उनकी प्रतिभा का अपमान हे। जिसके बाद उन्होंने माउंटनियरिंग में कॅरियर बनाने की सोची, हालांकि उनके स्वजन इसके खिलाफ थे। बावजूद इसके उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में दाखिले के लिए आवेदन कर दिय।
- 1984 में भारत ने एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए एक अभियान दल बनाया। इस दल का नाम ‘एवरेस्ट-84’ था। दल में बछेंद्री पाल के साथ 11 पुरुष और पांच महिलाएं थीं। बछेंद्री के लिए यह एक बड़ा मौका था। उन्होंने सोचा यही वह मौका जिसका उन्हें लंबे समय से इंतजार था। इसके लिए उन्होंने जमकर ट्रेनिंग ली।
- एवरेस्ट-84’ दल का मिशन मई माह के शुरुआत में 1984 में हुआ। खराब मौसम, खड़ी चढ़ाई और तूफानों को झेलते हुए 23 मई 1984 के दिन बछेंद्री ने एवरेस्ट फतह करते हुए इतिहास रच दिया था। पूरे देश और दुनिया में बछेंद्री पाल की खूब तारीफ हुई। उनकी सफलता की गाथाओं से अखबारों के पन्ने रंग गए थे।
- बछेंद्री पाल ने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में बताया था कि एवरेस्ट अभियान के दौरान एक ऐसा भी मौका आया था जब 23 मई, 1984 को एवरेस्ट फतह करने से एक रात पहले मुझे टीम से बाहर करने की नौबत आ गई थी। हुआ यूं था कि टीम में एक साथी को मदद की ज़रूरत थी। मैं उसकी मदद के लिए थोड़ा नीचे चली गई। उसे पानी और कुछ और सामान दिया। इससे हमारे कुछ साथी नाराज़ हो गए थे और मुझे टीम से बाहर करने तक की मांग कर डाली थी। हालांकि तब बाहर होने से मैं बच बई थी।
- एवेस्ट फतह करने के बाद उनकी प्रशंसा तो खूब हुई लेकिन वह इस क्षेत्र में अपना कॅरियर नहीं बना पा रही थीं। ऐसे में टाटा समूह के जेआरडी टाटा ने बछेंद्री को जमशेदपुर बुलाया और अकादमी बना कर युवाओं को प्रशिक्षण देने को कहा। इसके बाद बछेंद्री की ज़िंदगी बदल गई।
- 35 सालों में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन, जमशेदपुर की संस्थापक निदेशक के तौर पर बछेंद्री पाल ने अब तक 4500 से ज्यादा पर्वतारोहियों को माउंट एवरेस्ट फतह करने के लिए तैयार किया है। इसके अलावा वह महिला सशक्तीकरण और गंगा बचाओ जैसे सामाजिक अभियानों से भी जुड़ी हैं, लेकिन उनकी पहचान भारत में पर्वतारोहण के पर्याय के रूप में बन चुकी है।
- बछेंद्री पाल अब आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 'फिट एट 50 प्लस वूमेन ट्रांस हिमालयन एक्सपीडिशन' मिशन शुरू करने जा रही हैं। 50 वर्ष से अधिक 12 महिलाओं के साथ 4600 किलोमीटर की पैदल यात्रा करेंगी। पड़ोसी देशों से गुजरने वाली इस यात्रा में दल का नेतृत्व वह खुद कर रही हैं। भारत को वर्मा से जोड़ने वाला पंगसौ दर्रा से 12 मार्च को यात्रा शुरू हो गई। यह यात्रा असम से होते हुए अरुणाचल प्रदेश, कारगिल, नेपाल, म्यामांर तक पैदल चलेगी। जो तकरीबन पांच माह तक चलेगी।
- बचपन से बहादुर रही बछेंद्र पाल को वर्ष 1984 में पद्मश्री, 1986 में अर्जुन पुरस्कार, जबकि वर्ष 2019 में पद्मभूषण मिला। इसके अलावा पर्वतारोहण के क्षेत्र में बछेंद्री पाल को कई मेडल और अवार्ड मिल चुके हैं। उत्तराखंड के पहाड़ों की इस बेटी को आज हर कोई प्रणाम कर रहा हे।
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