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World Athletics Day: भरपेट खाना न दौड़ने को जूते, सुरेंद्र पांडे को जुनून ने बनाया अंतरराष्ट्रीय धावक

World Athletics Day 2022 अंतरराष्ट्रीय धावक सुरेंद्र पांडे की संघर्ष भरी कहानी प्रेरित करने वाली है। उनका कहना है कि किसी चीज के लिए लग जाओ तो वह मिलकर रहता है। कुछ करने की लगन ने मुझे सुबेदार खिलाड़ी और अब सहायक खेल निदेशक बनाया है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 07 May 2022 07:39 AM (IST)Updated: Sat, 07 May 2022 07:39 AM (IST)
World Athletics Day: भरपेट खाना न दौड़ने को जूते, सुरेंद्र पांडे को जुनून ने बनाया अंतरराष्ट्रीय धावक
World Athletics Day: 2004 में उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग परीक्षा पास की और सहायक निदेशक बन गए।

दीप चंद्र बेलवाल, हल्द्वानी : World Athletics Day: उस दिन गांव में ईंट से लदी गाड़ी आई थी, उसे खाली करने वाला नहीं मिला। मुझे रानीखेत भर्ती में जाना था। मगर स्वजनों के पास भी रुपये नहीं थे। इसलिए छह रुपये में मैंने पूरी गाड़ी खाली कर दी। अगले दिन रानीखेत गया तो भर्ती हो गया। वर्ष 2004 में उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग (यूकेएसएसएससी) परीक्षा पास की। आज बतौर सहायक खेल निदेशक कार्यरत हूं।यह कहना है मूलरूप से तल्ली जोशी खोला व हाल दोनहरिया बलवंत कालोनी निवासी सुरेश पांडे का। इस समय वह खेल विभाग में सहायक खेल निदेशक पद पर कार्यरत हैं।

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अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स दिवस को लेकर सुरेश पांडे ने बताया कि उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। पिता सरकारी विभाग में बाबू थे, लेकिन बड़ा परिवार होने पर सारी जिम्मेदारी पिता पर थी। खाना भी भरपेट नहीं मिल पाता था। दौडऩे का शौक बचपन से रहा। दौडऩे के लिए जूते नहीं होते थे।

रानीखेत से अल्मोड़ा तक नंगे पैर दौड़ लगाना शुरू कर दिया। वर्ष 1981 में आर्मी में भर्ती हो गए। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध भी लड़ा। आर्मी में रहते राष्ट्रीय वह अंतरराष्ट्रीय धावक बन गए। लेकिन पढ़ाई के प्रति उनकी रुचि कम नहीं हुई। वर्ष 2004 में उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग परीक्षा पास की और सुरेश पांडे खेल विभाग में सहायक निदेशक बन गए।

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां 

- वर्ष 1985, 1986, 1991 व 1994 में चार बार रथ आल इंडिया मैराथन में स्वर्ण पदक।

- वर्ष 1985 से 1990 में राष्ट्रीय क्रास कंट्री में छह बार स्वर्ण पदक।

- वर्ष 1985 व 1986 में पुणे में अंतरराष्ट्रीय मैराथन में स्वर्ण पदक।

- वर्ष 1994 में मलेशिया में अंतरराष्ट्रीय मैराथन में स्वर्ण पदक।

दो बार मिला उत्कृष्ट सेवा मेडल

थल सेना में भी सुरेश पांडे ने अपना लोहा मनवाया। आपरेशन विजय यानी कारगिल युद्ध 1999 में हिस्सा लेकर दुश्मनों से टक्कर ली। अपनी रेजीमेंट के रणबांकुरों के साथ मिलकर दुश्मनों के छक्के छुड़ाए। अच्छे प्रदर्शन पर वह सिपाही से लेकर सूबेदार तक बने। 1985 व 1989 में उत्कृष्ट पदक से सम्मानित हुए।

देश को दिए सात अंतरराष्ट्रीय धावक

सुरेश पांडे आज भी रोजाना चार बजे उठकर दौडऩे के लिए मैदान में पहुंच जाते हैं। अक्सर वह बच्चों के साथ दौड़ते दिख जाते हैं। हरीश कोरंगा, मोहन सिंह कापड़ी, महेश फत्र्याल, दरबान सिंह, सुमेर सिंह, अवधेश कुमार व हीरा सिंह रौतेला को भी मैराथन में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय धावक बनाने का श्रेय भी सुरेश पांडे को जाता है।

नशे से हमेशा रहे दूर

युवा पीढ़ी में बढ़ते नशे की प्रवृत्ति को लेकर सुरेश चिंतित हैं। वह बताते हैं कि अपने जीवन में कभी बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू व शराब को नहीं छुआ, जबकि आर्मी में रहते उन्हें उनके पास शराब की कोई कही नहीं होती थी।


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