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AAP की दस्तक से उत्तराखंड की सियासत में हलचल तेज, खुद को स्थापित करेगी या कांग्रेस काे नुकसान पहुंचाएगी पार्टी ?

आम आदमी पार्टी (AAP) ने उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है। आप की दस्तक से सूबे की सियासत में हलचल तेज हो गई है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 24 Aug 2020 01:41 PM (IST)Updated: Mon, 24 Aug 2020 02:01 PM (IST)
AAP की दस्तक से उत्तराखंड की सियासत में हलचल तेज, खुद को स्थापित करेगी या कांग्रेस काे नुकसान पहुंचाएगी पार्टी ?
AAP की दस्तक से उत्तराखंड की सियासत में हलचल तेज, खुद को स्थापित करेगी या कांग्रेस काे नुकसान पहुंचाएगी पार्टी ?

नैनीताल, स्कंद शुक्ल : आम आदमी पार्टी (AAP) ने उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है। आप की दस्तक से सूबे की सियासत में हलचल तेज हो गई है। अरविंद केजरीवल खुद उत्तराखंड में पार्टी के लिए संभावनएं देख रहे हैं। सूबे में राजनीतिक संभावनाओं को लेकर वह चैनलों को दिए अपने इंटरव्यू और पोस्ट फेसबुक पेज और ट्वीटर हैंडल से लगातार शेयर कर रहे हैं। उन्होंने जनता की नब्ज को पकड़ते हुए स्वास्थ्य, शिक्षा और पलायन के मसले को प्रमुखता से उठाया है। वहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एसएस कलेर, पार्टी प्रभारी दिनेश मोहनिया और अन्य पदाधिकारी लगातार जनसंपर्क और प्रेस को संबोधित कर प्रार्टी को विस्तार देने की कोशिश में लगे हैं। विधान सभा चुनाव में अब महज डेढ साल का वक्त बचा है। एेसे में क्या आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में खुद को स्थापित कर सकेगी? सूबे में आप की दस्तक कांग्रेस और भाजपा को कितना नुकसान पहुंचा सकती है। चालिए समझने की कोशिश करते हैं। 

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आसान नहीं पहाड़ की राह 

बीते दिनों पार्टी के प्रदेश प्रभारी दिनेश मोहनिया ने दून में कहा कि यहां की जनता 20 साल तक भाजपा और कांग्रेस के शोषण का शिकार हुई। ऐसे में लोग अब आप को तीसरे विकल्प के रूप में देख रही है। दिल्ली में हमने विकास की एक नई इबारत लिखी है। मोहल्ला क्लीनिक और स्कूलों को अपग्रेड करने की योजना की दुनियाभर में सराहना गया। दिल्ली के मॉडल पर उत्तराखंड में भी चुनाव लड़ा जाएगा। लेकिन क्या सच में उत्तराखंड फतह करना दिल्ली जैसा आसान होगा। यूं तो दिल्ली जैसा उत्तराखंड भी एक छोटा राज्य है। लेकिन यहां की भौगोलिक स्थिति बड़ी समस्या है। पार्टी को यहां शून्य से शुरुआत करनी होगी। डेढ साल में खुद को स्थापित करना और प्रत्याशियों का चुनाव पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगी। पर्वतीय राज्यों की समस्याएं मैदानों की अपेक्ष कहीं जटिल होती हैं। पहाड़ के दुर्गम इलाकों में पैठ बनाना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। 

भाजपा-कांग्रेस के जमे-जमाए चेहरे जोड़ेंगे  

आप का उत्तराखंड में चेहरा कौन होगा ? यह बहुत मायने रखेगा। अरविंद केजरीवाल के नाम पर ही पार्टी यदि चुनाव लड़ती है तब भी कुछ चेहरे ऐसे होने चाहिए जिन पर जनता भरोसा कर सके। ऐसे में स्थानीय को तवज्जो देना पार्टी के लिए विवशता होगी। जबकि अब तक पार्टी के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसके नाम पर लोगों की भीड़ जुटाई जा सके। प्रदेश पार्टी का कैडर खड़ा करना भी आप के लिए बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए जरूरी होगा कि आप भाजपा-कांग्रेस के कुछ चर्चित चेहरों को तोड़कर पार्टी में लाए। जमे-जमाए चेहरों को पार्टी में लाने से पार्टी के काडर को खड़ा करने में सुविधा हाेगी। 

भाजपा बनाम आप न हो जाए चुनाव 

विगत विधानसभा चुनाव में चुनाव से ठीक पहले यशपाल आर्य समेत कांग्रेस के कई दिग्गजों ने भाजपा का दामन थाम लिया था। कांग्रेस को करारी शिकस्त देकर भाजपा ने बहुमत से सरकार बनाई । तब सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत तक को अपनी दोनों सीटों से हाथ धोना पड़ा था। ऐसे में इस बार सूबे में आम आदमी पार्टी की दस्तक दिल्ली जैसा राजनीतिक समीकरण बना सकती है। जाहिर तौर आप कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश करेगी। ऐसे में कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। चुनाव भाजपा बनाम आप हुआ तो कांग्रेस का राजनीतिक भविष्य भी खबरे में पड़ सकता है।

दिल्ली चुनाव परिणाम ने खोला उत्तराखंड का रास्ता 

दिल्ली और उत्तराखंड दाेनों सूबों में विधानसभा सीटों की संख्या 70-70 है। इसी वर्ष हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए तो एक बार फिर से आप को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई। 62 सीटें जीतकर बहुमत की सरकार बनाई। जबकि इसके पहले हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 67 सीटें हासिल हुई थीं। तब भी दिल्ली की जीत ने सत्तारूढ़ भाजपा में हलचल तेज कर दी थी। तब सीमए त्रिवेन्द्र सिंह रावत ते कहा था जिस तरह दिल्ली में आप ने खैरात बांटी है वो दिल्ली के लिए कितना सफल होगा देखने वाली बात होगी। दिल्ली चुनाव परिणाम के बाद से ही की यह कयास लगाए जाने लगे थे कि आप अब उतराखंड में दस्तक दे सकती है। उत्तराखंड की बड़ी आबादी दिल्ली में है। दिल्ली के पर्यटकों की आमद में उत्तराखंड में खूब है। दो प्रदेश सीधे तौर पर एक दूसरे से कनेक्ट भी हैं। 

प्रदेश प्रभारी ने कहा, स्थीन चेहरा ही करेगा नेतृत्व

आप के पार्टी के प्रदेश प्रभारी दिनेश मोहनिया ने जागरण से बातचीत करते हुए कहा कि पार्टी का एजेंडा साफ है। स्वास्थ्य, शिक्षा और पलायन के मुद्दे पर पार्टी के तौर पर प्रदेश की जनता ही चुनाव लड़ेगी। सभी सीटों पर बूथों को मजबूत करने के लिए तेजी से काम हो रहा है। दिल्ली की तरह उत्तराखंड में प्रदेश की जनता ही प्रतिभाग करेगी। प्रत्याशी भी स्थानीय लोग बनाए जाएंगे और मुख्यमंत्री का चेहरा है। भाजपा -कांग्रेस के लोगों से भी एतराज नहीं है। कुछ लोग संपर्क में भी हैं। हमारे सर्वे में प्रदेश की 62 फीसद जनता ने पार्टी के चुनाव लड़ने पर सहमति दी है।  

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाेले-कांग्रेस को होगा नुकसान  

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने आम आदमी पार्टी के चुनाव लड़ने पर लोकतंत्र में किसी को भी चुनाव लडऩे का अधिकार है। वैसे भी उत्तराखंड में पढ़े-लिखे लोग हैं। क्षेत्रीय दलों को समर्थन नहीं करते हैं। जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है। इनके आने से हमारी पार्टी और मजबूत होगी। उनसे नुकसान होगा तो कांग्रेस को होगा।

विकल्प बनने का ख्वब छोड़ दे आप, उत्तराखंड में एक भी सीट नहीं मिलने वाली

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और सूबे की नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश आप के चुनाव लड़ने पर कहा कि भाजपा कांग्रेस के नफा-नुकसान पर बात करने की बजाए अपनी स्थिति पर गौर करे। रही बात आप के उत्तराखंड के चुनाव में हिस्सा लेने की तो दिल्ली और पहाड़ की राजनीति में जमीन आसमान का अंतर है। दिल्ली की रपटीली सड़कों पर राजनीति करना आसान है। जबकि उत्तराखंड के पथरीले और भौगोलिक दृष्टि से बेहद जटिल राज्य में सियास करना दूसरी बात है। सूबे में विकल्प बनने का सपना देखने वाली आम आदमी पार्टी छोड़ दे। यहां उन्हें एक भी सीट नहीं मिलने वाली है। विकल्प बनने का ख्वाब ही छोड़ दें।


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