Jim Corbett birth anniversary : महान शिकारी के साथ एक शानदार लेखक भी थे जिम कॉर्बेट
Jim Corbett birth anniversary 25 जुलाई 1975 को जन्मे एडवर्ड जिम कॉर्बेट के नाम की जब भी चर्चा होती है तो अक्सर लोगों के दिलो दिमाग में एक ऐसे शिकारी का चेहरा घूमने लगता है जिसने नरभक्षी बाघों का खात्मा कर जंगल के किनारे बसे लोगों को जीवनदान दिया।
विनोद पपनै, रामनगर : Jim Corbett birth anniversary :25 जुलाई 1975 को जन्मे एडवर्ड जिम कॉर्बेट के नाम की जब भी चर्चा होती है तो अक्सर लोगों के दिलो दिमाग में एक ऐसे शिकारी का चेहरा घूमने लगता है जिसने नरभक्षी बाघों का खात्मा कर जंगल के किनारे बसे लोगों को जीवनदान दिया। मगर जिम कॉर्बेट केवल शिकारी ही नहीं बल्कि बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। वह एक बेहतरीन शिकारी होने के साथ ही, संवेदनशील पर्यावरणविद व उच्चकोटि के लेखक और बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ ही एक दार्शनिक के तौर पर भी उन्हें जाना जाता है। ।
प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में
आदमखोर बाघों को मारने वाले जिम कॉर्बेट की प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के फिलेंडर स्मिथ स्कूल में हुई थी। जो अब बिड़ला विद्या मंदिर के नाम से जाना जाता है। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने बिहार प्रांत में फ्यूल इंस्पेक्टर के पद पर रेलवे में नौकरी कर ली। 1914 में द्वितीय विश्व युद्ध होने पर वह वापस कुमाऊँ लौट आए। उन्होंने अपनी जिंदगी के ज्यादातर खूबसूरत पल यहीं गुजारे।
नरभक्षी बाघ बने गोली का निशाना
जिम कार्बेट ने थाक का बाघ, पवलगढ़ का कंवारा बाघ के अलावा रुद्रप्रयाग, पौड़ी गढ़वाल, चंपावत आदि स्थानों पर हजारों लोगों को अपना ग्रास बना चुके आदमखोर बाघों को मौत की नींद सुला कर बाघों के आतंक से मुक्ति दिलाई। वन्य जीवों व पक्षियों की आवाज निकालने में भी उनको महारथ हासिल थी। जिम कॉर्बेट ने कुमाऊं लेबर फोर्स का गठन भी किया था। इस फोर्स ने ब्रिटिश सेना के लिए फ्रांस और वजीरिस्तान में अपना योगदान दिया।
लेखन पर भी अच्छी पकड़
जिम कार्बेट की गिनती बेहतरीन लेखकों में भी होती है। शिकारी जीवन पर उन्होंने मैन ईटर्स ऑफ़ कुमांऊ, द टेंपल टाइगर, माई इंडिया, लेपर्ड आफ रुद्र प्रयाग, जंगल रोर, ट्री ट्राप्स जैसी रोचक पुस्तकें भी लिखी। जिन्हें आज भी लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं। उनके ऊपर फिल्म और डाक्यूमेंट्री भी बन चुकी हैं।
कुमाउंनी-गढ़वाली भाषा बोलने में दक्षता
आइरिस मूल के होने के बावजूद जिम का बचपन कुमाऊं की पहाडिय़ों में बीता। इसलिए उन्हें कुमाउंनी व गढ़वाली भाषा बोलने का अच्छा ज्ञान था। ग्रामीण उन्हें कॉर्बेट नहीं कारपेट साहब कहकर पुकारा करते थे। कुछ लोग उन्हें गोरा साधू के नाम से भी जानते थे। इसके अलावा वह कुशल कारपेंटर, पर्यावणविद् , वैद्य के साथ ही अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी भी थे।
नैनीताल पालिका के वाइस चेयरमैन भी रहे
1907 से 1910 तक वह नैनीताल पालिका बोर्ड के सदस्य रहे। 1919 से 1926 तक वह पालिका के वाइस चेयरमैन भी रहे। नैनीताल पालिका बोर्ड को 1920 में 7300 रुपए दान देकर बैंड हाऊस का निर्माण व पाइंस में शमशानघाट के लिए भूमि खरीदी। उन्होंने 1923 में नैनी झील में मछलियों के संरक्षण के लिए नियमों में संशोधन करवाया। तब मछलियों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया था। 19 अप्रैल 1955 में न्यूरेरी कीनिया में इनका निधन हुआ। भारत से अथाह प्रेम रखने वाले इस जेंटलमैन को 146 साल बाद भी लोग याद करते हैं।