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World Elephant Day : संकट में एशियाई हाथी मगर जिम कॉर्बेट पार्क में पूरी तरह महफूज

World Elephant Day सुकून भरी खबर ये है कि उत्तराखंड खासकर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में गजराजों का कुनबा लगातार बढ़ रहा

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 07:58 AM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 07:59 AM (IST)
World Elephant Day : संकट में एशियाई हाथी मगर जिम कॉर्बेट पार्क में पूरी तरह महफूज
World Elephant Day : संकट में एशियाई हाथी मगर जिम कॉर्बेट पार्क में पूरी तरह महफूज

रामनगर, विनोद पपनै : एशियाई हाथियों पर संकट के बादल अब भी मंडरा रहे हैं। उन्हें बचाने की जद्दोजहद हो रही है। एशियाई हाथियों को खतरे वाली प्रजातियों की आईसीयून (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) की रेड लिस्ट में सूचीबद्ध किया जाना इस बात का संकेत है कि एशियाई हाथियों के अस्तित्व पर अभी भी संकट के बादल मंडरा रहे है। लेकिन इस सबसे इतर एक सुकून भरी खबर ये है कि उत्तराखंड खासकर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में गजराजों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। हालांकि उनके वास स्थल, कोरिडोर को बचाना आज के दौर में एक बड़ी चुनौती है।

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लगातार बढ़ रही है हाथियों की संख्या

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व मेंं 2007 में महज 650 हाथी थे, वहीं 2015 में इनकी संख्या 1035 आंकी गयी थी। मगर हाल ही में इनकी संख्या 1224 पायी गयी है। यानी 2015 की तुलना में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बीस प्रतिशत गजराज बढें हैं।

शिवालिक पहाडिय़ों की तलहटी मुफीद

एक समय था जब एशियाई हाथी शिवालिक की पहाडिय़ों की तलहटी और तराई-भाबर के जंगलों में स्वच्छंद विचरण करते थे। हिमालय की सबसे निचली पर्वतमाला शिवालिक हाथियों के फलने-फूलने के लिए सबसे मुफीद वासस्थल रही है। इसीलिए इसे शिवालिक एलीफैंट जोन कहा जाता है।

हाथी एक जगह पर नहीं ठहरते

हाथी एक जगह पर नहीं ठहरते हैं। उनमें लंबा प्रवास करने की प्रकृति पाई जाती है। उनकी इस प्रवृत्ति को माइग्रेशन कहा जाता है। प्रवास यात्रा को पूरा करने के लिए हाथी जिन रास्तों के इस्तेमाल करते हैं उन्हें माइग्रेशन रूट कहा जाता है। ये रास्ते तयशुदा होते हैं। यानी कि हाथी अपनी तेज स्मरण शक्ति के कारण इन तयशुदा रास्तों को कभी नहीं भूलते और अपनी प्रवास यात्रा इन्हीं रास्तों से करते हैं। हाथियों की यही विलक्षण स्मरण क्षमता वंशागत होकर उनकी पीढ़ी में भी चली गई। इसीलिए हाथियों की हर पीढ़ी आज भी उन्हीं रास्तों का इस्तेमाल करती है, जो उनके पूर्वजों ने खोजे थे।

उत्तराखंड में हाथियों का माइग्रेशन रूट

उत्तराखंड में हाथियों का माइग्रेशन रूट पश्चिम में यमुना नदी से आरम्भ होकर पूर्व में नेपाल तक है। हाथियों के प्रवास पथ का जंगल बीच-बीच में कई नदियों से आपस में जुड़ा है, जिन्हें एलीफैंट कॉरीडोर कहा जाता है। शिवालिक के पश्चिमी छोर पर यमुना नदी से हाथी राजाजी पार्क होकर लैंसडाउन पहुँचते थे। वहां से कॉर्बेट पार्क, रामनगर वन प्रभाग, हल्द्वानी वन प्रभाग होते हुए नेपाल तक चले जाते हैं। उनकी तकरीबन एक हजार किलोमीटर की यह प्रवास यात्रा वर्ष भर चलती थी।

संरक्षण के लिए चुनौतियां भी कम नहीं

हाथियों के संरक्षण के लिए कई चुनौतियां सामने हैं। मसलन उनके वास स्थलों को सुरक्षित रखना। उनके लिए चारे व पानी की व्यवस्था, मानव के साथ टकराव को टालना, जंगल में हाथी दांत के लिए घुसपैठ करने वाले शिकारियों से उनकी सुरक्षा करना, जंगल में बीमार हो जाने पर उनके उपचार की दिशा में काम किया जाना यह चुनौती है। इसके अलावा सबसे बड़ी चुनौती उनके कॉरीडोर को बचाने की है। अगर कॉरीडोर नही बचे तो उनके अस्तित्व पर संकट आ जाना लाजिमी है।

हाथियों के माइग्रेशन रूट बदल गए कंकरीट में

तराई-भाबर के आबाद होने के बाद हाथियों के माइग्रेशन रुट में कंक्रीट के जंगल उग गए। सबसे ज्यादा प्रभाव गौला रिवर कॉरीडोर पर पड़ा। बसासत के कारण काठगोदाम के आसपास का रूट और कॉरीडोर बाधित हो गया। यही हाल बिन्दुखत्ता में भी देखने को मिला। कॉर्बेट के लालढांग गांव के विस्थापित हल्दुआ-पीपलसाना में बसा दिए गए, जिससे यह कॉरीडोर भी ब्लॉक हो गया।

हाथियों के कई कॉरीडोर ब्लॉक

यमुना नदी से नेपाल के बीच हाथियों के कई कॉरीडोर ब्लॉक हो गए हैं। जिससे हाथी अपने माइग्रेशन रुट के बीच जंगल के छोटे छोटे आइसोलेटेड पैच में फंसकर रह गए हैं। यही वजह है कि उनके नैसर्गिक प्रवास यात्रा में खलल के चलते हाथियों का स्वभाव उग्र, हिंसक और चिड़चिड़ा हो गया है। उनका गुस्सा फसलों, मानव बस्तियों, राह चलते वाहनों पर निकल रहा है। हाथी कभी नहीं भूलते। तथा उनकी स्मृति उनकी पीढिय़ों में भी वंशागत होती है। यही वजह है कि हाथी मानव बस्तियों का रुख कर रहे हैं।

सीटीआर में कहां कितने हाथी

ढिकाला        244

सर्पदुली        195

बिजरानी       121

ढेला              65

झिरना           152

कालागढ़        234

सोना नदी       24

पाखरो           31

पलैन             56

अदनाला        54

मैदावन          22

मंदाल           26

क्या कहते हैं अधिकारी

राहुल निदेशक कॉर्बेट टाइगर रिजर्वने कहा कि हमने चुनौतियां स्वीकार की हैं। लैंटाना हटा कर नए ग्रास लैंड तैयार किए हैं। पानी के जल कुंड बनाए जा रहे हैं। मानव संघर्ष रोकने के लिए गांवों में सोलर फैंसिंग लगाई गई है। सोलर लाइटें लगाई गयी हैं। संवेदनशील क्षेत्रों में बराबर गश्त की जा रही है। जंगलों में सीसीटीवी कैमरों के अलावा ड्रोन से भी निगरानी की जा रही है। वहीं राजीव भरतरी अध्यक्ष उत्तराखण्ड जैव विविधता बोर्ड ने बताया कि हाथियों के कॉरिडोर को पहचान कर उनका अलग से प्रबंध किए जाने की जरूरत है। जो कॉरीडोर खराब हो रहे हैं उन्हें सुधारने की जरूरत है। इसके लिए प्रत्येक कॉरीडोर के लिए अलग से बजट बनाए जाए। जिसका पैसा केवल कोरोडोर सुधारने में ही लगाया जाए।  


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