गोविंद सनवाल, हल्द्वानी

रामनगर का कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) वन्यजीवों द्वारा इंसानों पर किए जा रहे हमलों के कारण लगातार सुर्खियों में आता जा रहा है। यहां के जंगल से सटे आबादी वाले इलाकों में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं तो इंसानी दखल से यह क्षेत्र भी वन्यजीवों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया। 2009 से 2016 तक 11 लोग यहां मारे जा चुके हैं। वहीं, पहाड़ में गुलदार, तेंदुए और सुअर तो तराई में हाथी भी इंसान पर खतरा बन रहे हैं।

नैनीताल में जुलाई 2016 में एक होटल में घुसे भालू ने दहशत मचा दी थी। वहीं अगस्त में एक गुलदार व्यस्त शहर के बीच होटल के कमरे तक पहुंच गया। होटल में ठहरे पर्यटक गुलदार के हमले से बाल-बाल बचे थे। आबादी क्षेत्र में पहुंच रहे वन्यजीवों की बढ़ती संख्या नैनीताल चिड़ियाघर व रेस्क्यू सेंटर रानीबाग भी बयां कर रहे हैं। पिछले एक साल में इन सेंटरों ने आबादी में घुसे 224 वन्यजीवों को रेस्क्यू किया है। फरवरी 2016 में भीमताल के मल्लीताल क्षेत्र में घुस आए तेंदुए ने दर्जन भर लोगों को घायल कर दिया था। आठ घंटे की मशक्कत के बाद दुकान में कैद कर तेंदुए को बमुश्किल रेस्क्यू सेंटर तक ले जाया गया। चम्पावत जिले में 2013 से अब तक 11 गुलदार मारे गए हैं। वहीं, टनकपुर के बोरगोठ निवासी सोना देवी को फरवरी 2017 में बाघिन ने शिकार बना लिया था। खटीमा व किलपुरा रेंज में 2010 से 2017 तक हाथी के हमले में नौ लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। जबकि बाघ व गुलदार ने भी नौ लोगों को शिकार बनाया है।

पिथौरागढ़ जिला भी वन्य जीवों के हमले में साल 2016 में डराने वाला रहा। गुलदार, सुअर और भालू के हमले में यहां डीडीहाट, गंगोलीहाट और पिथौरागढ़ में अलग-अलग तीन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। वहीं 39 लोगों को इन जानवरों ने घायल कर दिया। अल्मोड़ा जिले को 2012 में गुलदार व इंसानों के बीच टकराव चरम पर रहा। अक्टूबर में दस दिन के भीतर गुलदार ने चार लोगों को मौत के घाट उतार डाला। बाद में इनमें से दो नरभक्षी ढेर भी किए गए। 2013 के बाद से आमने-सामने का टकराव कुछ हद तक कम हुआ है, लेकिन जानवरों के वास स्थल में बढ़ते इंसानी दखल से गुलदारों को आबादी क्षेत्र से मुख्य शहर तक घुसने का सिलसिला जारी है।

जंगल में दखल से बढ़ रहे मानव-वन्यजीव संघर्ष

हल्द्वानी : रामनगर में दो लोगों के बाघ का शिकार बनने के बाद एक बार फिर बढ़ते मानव और वन्यजीव संघर्ष पर चिंता बढ़ गई है। वन महकमा इसे जंगल किनारे बढ़ती आबादी और वन्य जीवन में उनकी बढ़ती दखल एक बड़ी वजह मानव-वन्यजीव संघर्ष के लिए मान रहा है। जीव विशेषज्ञ का कहना है कि वन्यजीव और इंसानों के बीच संघर्ष की अधिकांश घटनाएं आबादी के बजाय जंगल में ही हुई हैं। इस मुद्दे पर वन संरक्षक डा. पराग मधुकर धकाते का कहना है कि जंगलों में कभी घास तो कभी मवेशी चराने के लिए आबादी का आवागमन बढ़ रहा है। इसके अलावा वन्य संपदा के लिए भी लोग बेधड़क जंगलों की ओर रुख करते हैं। जंगलों पर बहुतायत लोगों का आवागमन होगा तो निश्चित तौर से वन्य जीवन प्रभावित होगा। ऐसे में उन पर जंगली जानवरों के हमले की घटनाएं भी होनी स्वाभाविक है। इसे रोकने के लिए वन विभाग जागरुकता मुहिम तो चलाता ही है लेकिन इसके लोगों को खुद भी सजग रहने की जरूरत है।

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