Swami Swaroopanand का धर्मनगरी से रहा गहरा नाता, चातुर्मास बिताने के लिए ज्योतिर्मठ जाने के दौरान रुकते थे मठ में
ज्योतिर्मठ और द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का धर्मनगरी से गहरा नाता रहा है। चातुर्मास बिताने को ज्योतिर्मठ जाने के दौरान वे अक्सर कनखल स्थित शंकराचार्य मठ में रुकते थे। अंतिम बार वे बीते वर्ष छह अप्रैल को कुंभ में हिस्सा लेने के लिए हरिद्वार आए थे।
जागरण संवाददाता, हरिद्वार: ज्योतिर्मठ और द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का धर्मनगरी से गहरा नाता रहा है। चातुर्मास बिताने को ज्योतिर्मठ जाने के दौरान वे अक्सर कनखल स्थित शंकराचार्य मठ में रुकते थे। अंतिम बार वे बीते वर्ष छह अप्रैल को कुंभ में हिस्सा लेने के लिए हरिद्वार आए थे। आठ अप्रैल को उनकी भव्य शोभायात्रा भी निकाली गई थी।
बेबाक बयानी के लिए भी चर्चित थे शंकराचार्य
अपनी बेबाक बयानी के लिए भी शंकराचार्य चर्चित थे। शिरडी के साईं बाबा की पूजा को गलत बताने और साईं को हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मानने से इन्कार करने संबंधी उनके बयान पर देशभर में बवाल तक मचा। शंकराचार्य धर्म के साथ राजनीतिक मुद्दों पर भी अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते थे।
2016 में संपूर्ण चातुर्मास भी हरिद्वार में ही बिताया
सितंबर 2016 को हरिद्वार के कनखल स्थित शंकराचार्य मठ में उनके 93वें प्रकटोत्सव में संत-महात्माओं के अलावा तमाम राजनीतिक हस्तियां पहुंची थीं। इतना ही नहीं धर्मनगरी के साधु-संत और स्थानीय निवासियों के अनुरोध पर उन्होंने अपना संपूर्ण चातुर्मास भी हरिद्वार में ही बिताया था।
बयान से भी चर्चाओं में रहे
इस दौरान उन्होंने महिलाओं को शनि और साईं की पूजा न कर, उनका विरोध करने संबंधी विवादास्पद बयान दिया। कहा था कि महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के जबरन प्रवेश के चलते ही केरल के मंदिर में भयानक हादसा हुआ। इसके अलावा बेटियों के दाह संस्कार करने को लेकर दिए बयान से भी वे चर्चाओं में रहे थे। कहा था कि पितरों को तृप्ति तब मिलती है, जब उनका बेटा, पौत्र या बेटी का बेटा दाह संस्कार और तर्पण करे। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले और उलेमाओं को एक मंच पर लाने का प्रयास करने वाले स्वामी स्वरूपानंद का राम मंदिर को लेकर दिया बयान भी चर्चाओं में रहा था। उन्होंने कहा था कि अयोध्या में श्रीराम का मंदिर नहीं, विश्व हिंदू परिषद का कार्यालय बन रहा है।
चुनौती मिली पर नहीं दी मान्यता
कनखल स्थित जगदगुरु आश्रम के स्वामी राजराजेश्वरश्रम ज्योतिष पीठ तो भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ शारदा पीठ के शंकराचार्य को लेकर उन्हें चुनौती देते रहे। कानूनी लड़ाई भी चली, लेकिन उन्हें मान्यता नहीं दी। आखिरी सांस तक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दोनों पीठ के शंकराचार्य पद पर सुशोभित रहे।
अंतिम बार 2016 में बदरिकाश्रम आए थे स्वामी स्वरूपानंद
गोपेश्वर: ज्योतिर्पीठ (ज्योतिषपीठ) और द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने से देश ने एक महान संत को खो दिया है। ज्योतिर्पीठ ऐसी पावन स्थली है, जहां पर आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में कल्प वृक्ष के नीचे तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया था।
देश में की थी चार धाम की स्थापना
इसके बाद उन्होंने देशवासियों को धार्मिक रूप से एक सूत्र में पिरोने के लिए देश में चार धाम की स्थापना की थी। ज्योतिषपीठ बदरिकाश्रम क्षेत्र में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद का आना-जाना लगा रहता था। वर्ष 2016 में वे अंतिम बार गंगा दशहरा के दौरान ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) व बदरीनाथ धाम आए थे। इसके बाद स्वास्थ्य कारणों के चलते वे जोशीमठ नहीं आ पाए।
निरंतर धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होने आते रहते थे
वर्ष 1973 में ज्योतिर्पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोधाश्रम के ब्रह्मलीन होने के बाद द्वारका-शारदा मठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी अभिनव सच्चिदानंद तीर्थ, गोवर्धन मठ पुरी के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेव तीर्थ व शृंगेरी शारदा पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी अभिनव विद्या तीर्थ के प्रतिनिधि समेत तमाम संत-विद्वानों की मौजूदगी में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ज्योतिर्पीठ के शंकराचार्य के रूप में अभिषिक्त हुए। इसके बाद वे यहां निरंतर धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होने आते रहते थे और नागरिकों के साथ सीधा जुड़ाव होने के चलते वे अपनी अलग पहचान रखते थे।
सनातम धर्म-संस्कृति को हुई अपूरणीय क्षति: श्रीमहंत रविंद्रपुरी
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने ज्योतिष और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने पर शोक प्रकट किया। कहा कि भगवान के बाद सनातन धर्म में जगद्गुरु शंकराचार्य को ही भगवान का दर्जा दिया जाता है। उनके ब्रह्मलीन होने से सनातन धर्म और संस्कृति की अपूरणीय क्षति हुई है। ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने जीवन पर्यंत सनातन धर्म की ध्वजा को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अपना समूचा जीवन लगा दिया।
मातृसदन परमाध्यक्ष ने दी श्रद्धांजलि
मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद ने ज्योतिष और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने पर शोक प्रकट किया। कहा कि उनके बताए गए मार्ग पर चलकर धर्म प्रचार करने तथा समाज और राष्ट्र की सेवा करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
शंकराचार्य के ब्रह्मलीन होने पर साधु समाज शोक संतप्त
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के निधन पर जूना अखाड़े के संतों और नागा संन्यासियों में शोक की लहर दौड़ गई। अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमंत हरिगिरि महाराज ने अपने संदेश में कहा कि जगदगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के ब्रह्मलीन हो जाने से अध्यात्म जगत का एक युग समाप्त हो गया है।
शोकसभा में संतों और नागा संन्यासियों ने दी श्रद्धांजलि
रविवार को जूना अखाड़े में अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत प्रेमगिरि महाराज की अध्यक्षता और अंतरराष्ट्रीय सचिव महेश पुरी के संचालन में हुई शोकसभा में संतों और नागा संन्यासियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। महंत प्रेमगिरि महाराज ने कहा कि शंकराचार्य महाराज के ब्रह्मलीन होने पर सभी साधु समाज अत्यंत आहत है। उनके मार्गदर्शन में सभी अखाड़े निरंतर उन्नति और प्रगति करते रहे।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। अपनी विद्वत्ता, गरिमा तथा उच्च आचरण के धनी महाराज श्री साधु सम्मान एवं अखाड़े के मार्गदर्शक थे। श्रीमहंत महेश पुरी ने कहा कि उनके बताए गए मार्ग पर चलकर धर्म प्रचार करने तथा समाज और राष्ट्र की सेवा करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। श्रद्धांजलि सभा में कोठारी महाकाल गिरि, श्रीमहंत बजरंग गिरि, थानापति राजेंद्र गिरि, श्रीमहंत पशुपति गिरि, श्री महंत सुरेशानंद सरस्वती, पुजारी वशिष्ठ गिरि, महंत भारतपुरी सहित कई संत एवं नागा संन्यासी आदि उपस्थित थे।