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इबादत से हो गयी थी बेटी की शादी, 26 साल से रोजा रख रहे हिन्दू व्यापारी

हरिद्वार जिले के लक्सर निवासी पिछले छब्बीस साल से रोजा रख रहे हैं। उनका कहना है कि सब धर्म एक हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 03:14 PM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 05:44 PM (IST)
इबादत से हो गयी थी बेटी की शादी, 26 साल से रोजा रख रहे हिन्दू व्यापारी
इबादत से हो गयी थी बेटी की शादी, 26 साल से रोजा रख रहे हिन्दू व्यापारी

लक्सर, हरिद्वार [रजनीश कुमार]: रमजान के पाक माह के दौरान खुदा की इबादत में सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही तल्लीन नहीं है, लक्सर के व्यापारी रतन सिंह भी हर रोज रोजा रखते हैं। मेल-मिलाप का पैगाम देने वाले रतन सिंह कहते हैं 'बीते 26 साल से यह क्रम चल रहा है। खुदा की इबादत हो या भगवान की पूजा, दोनों एक ही हैं। नवरात्र में नौ दिन व्रत रखता हूं तो माहे रमजान में रोजा भी।' वह कहते हैं कोई भी मजहब बैर रखना नहीं सिखाते। 

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हरिद्वार के निकट लक्सर कस्बे से सटे बसेड़ी गांव के रहने वाले 70 वर्षीय रतन सिंह की रुड़की मार्ग पर रेडीमेड गारमेंटस की दुकान है। उनके चार बच्चे हैं, दो बेटे और दो बेटी। सबकी शादी हो चुकी। रतन बताते हैं कि वर्ष 1992 में उन्होंने पहली बार रोजा रखा। वजह पूछने पर वह कहते हैं, तब वह छोटी बेटी सुनीता के लिए रिश्ता तलाश रहे थे, लेकिन माकूल रिश्ता नहीं मिल रहा था। ऐसे में उन्होंने विभिन्न विभिन्न धार्मिक स्थलों पर जाकर मन्नत भी मांगी। इसी दौरान वह रुड़की के पास एक मजार में गए।

वहां किसी आलिम ने रोजे रखने की सलाह दी। वह कहते हैं, रोजा रखा तो अच्छा लगा। वर्ष 1993 में बेटी की शादी हो गई, लेकिन उन्होंने रोजे रखना जारी रखा। रतन कहते हैं मैं हिंदू हूं और हिंदू धर्म में गहरी आस्था रखता हूं, लेकिन अन्य धर्मों का भी सम्मान करता हूं। बताते हैं कि वह ईश्वर-अल्लाह में कोई फर्क नहीं मानते, हम सभी एक ही ईश्वर की संतान है। बस अपने अपने तरीके से उसकी आराधना करते है। रतन के अनुसार जब पहले रोजा रखा तो सुकून का एहसास हुआ। बस इसके बाद यह हर साल का क्रम बन गए। शुरू में लोग सवाल उठाते थे, लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। अब दोनों धर्मों के लोगों से उन्हें सराहना मिलती है। 

लक्सर की जामा मस्जिद के मौलवी गालिब रशीद कहते हैं कि रोजे रख कर रतन सिंह भाई-चारे का पैगाम दे रहे हैं। वह कहते हैं कि रोजा रखने को मजहबी नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। रोजा जिस्मानी और रुहानी सुकून देता है। इससे दूसरों की मदद की प्रेरणा मिलती है, क्यों कि भूखे-प्यासे रहकर दूसरों के दर्द का एहसास होता है। 

बहूू बेटे बनाकर देते हैं सहरी 

रतन सिंह के परिजनों को भी उनके रोजा रखने पर कोई एतराज नहीं है। उनके बेटे व बेटी रमजान के दौरान सुबह जल्दी उठकर उनके लिए सहरी में खाने-पीने का इंतजाम करते हैं। रतन सिंह सहरी करने के बाद सुबह-सुबह अपनी दुकान पर आ जाते हैं। शाम को वह इफ्तारी करते हैं। रोजे के दौरान वह अन्य रोजेदारों की तरह सभी नियमों का पालन करते हैं। 

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