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    IIT Roorkee : ब्लैक होल सिम्फनी का पता लगाने में अहम भूमिका निभा रहा संस्‍थान, पहला डाटा जारी

    By Jagran NewsEdited By: Nirmala Bohra
    Updated: Tue, 29 Nov 2022 08:50 AM (IST)

    IIT Roorkee आइपीटीए के साथ मिलकर कम फ्रिक्वेंसी के गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने की दिशा में काम कर रहा है। आइआइटी रुड़की के शोधकर्ताओं समेत एक टीम ने इंडियन पल्सर टाइमिंग ऐरे (की ओर से पहला डाटा जारी करने में योगदान दिया है।

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    IIT Roorkee : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की

    जागरण संवाददाता, रुड़की: IIT Roorkee : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के शोधकर्ताओं समेत एक टीम ने इंडियन पल्सर टाइमिंग ऐरे (आइएनपीटीए) की ओर से पहला डाटा जारी करने में योगदान दिया है।

    आइएनपीटीए लगभग 40 रेडियो-एस्ट्रोनोमरों का भारत-जापान सहयोग समूह है, जो इंटरनेशनल पल्सर टाइमिंग ऐरे (आइपीटीए) के साथ मिलकर कम फ्रिक्वेंसी के गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने की दिशा में काम कर रहा है।

    आइएनपीटीए का यह डाटा साढ़े तीन साल के अवलोकन के बाद जारी किया गया है। यह अवलोकन दुनिया के सबसे बड़े और बेहतरीन टेलीस्कोपों में से एक अपग्रेडेड जायंट मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (यूजीएमआरटी) से किया गया है, जिसका संचालन पुणे के निकट एनसीआरए-टीआइएफआर करता है।

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    एस्ट्रोनामिकल सोसायटी आफ आस्ट्रेलिया में प्रकाशित हुआ आलेख

    आइआइटी रुड़की के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर पी. अरुमुगम, पीएचडी छात्र जयखोम्बा सिंघा और संस्थान के पूर्व छात्र पीयूष मरमत द्वारा संयुक्त रूप से तैयार आलेख हाल में ही एस्ट्रोनामिकल सोसायटी आफ आस्ट्रेलिया में प्रकाशित हुआ है।

    इस शोध को अहम बताते हुए आइआइटी रुड़की के प्रो. पी अरुमुगम ने कहा कि यह हमारे संयुक्त प्रयास से संभव हुआ है और एक नए विंडो में गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने में यह मदद करेगा। इस ब्रह्मांड में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के आधार पर प्रकृति के गहरे रहस्यों के उत्तर ढूंढे जा सकते हैं।

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    अब हम जिन तरंगों का पता लगाते हैं वे मजबूत, लेकिन अल्पकालिक होती हैं। शोधकर्ता बड़ी लहरों को समुद्र के किनारे जोर से टकराते हुए सुन रहे हैं। जबकि, स्पेसटाइम लगातार छोटी लहरों से भरा है। आप एक सिम्फनी की कल्पना करें जहां हाई पिच सेक्शन क्रेसेंडो की जोरदार आवाज सुनाई दे रही है, जबकि बास सेक्शन लगातार फंडामेंटल प्राग्रेशन बजा रहे हैं।

    उन्होंने बताया कि यूनिवर्स में गुरुत्वीय तरंगों का यह इंटरप्ले ऐसा है, मानो प्रकृति सिम्फनी बजा रही हो। शोधकर्ता चुपके से क्रेसेंडो पर ध्यान लगाए हैं. जबकि एक निरंतर ‘बज’ से एक लौकिक मधुर संगीत उत्पन्न हो रहा है। उनका पता लगाने में सबसे पहली चुनौती उनके बीच मौजूद इंटरस्टेलर मीडिया का वृहद होना है।

    यह आइएनपीटीए डाटा इस इंटरस्टेलर ‘वेदर’ का चार्ट और निकट भविष्य में खोज का मार्ग प्रशस्त करने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। वहीं आइआइटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर कमल के पंत ने संस्थान के शोधकर्ताओं और आइएनपीटीए टीम की इस उपलब्धि के लिए सराहना की।