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अनुभवों से मिली लेखन में ताकत : निशंक

जागरण संवाददाता, हरिद्वार : पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा राजनीि

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 08:30 PM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 08:30 PM (IST)
अनुभवों से मिली लेखन में ताकत : निशंक

जागरण संवाददाता, हरिद्वार : पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा राजनीतिक अनुभवों से उनके लेखन को ताकत मिलती है। राजनीति और लेखन में बेहतर तालमेल बनाकर रखा है। पत्रकारिता में निष्पक्षता और विचारों की स्वतंत्रता भी जरूरी है। वह गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय और अंत: प्रवाह सोसायटी की ओर से आयोजित तीन दिवसीय हरिद्वार लिटरेचर फेस्टिवल के समापन दिन रविवार को ¨हदी कविता के सत्र में परिचर्चा में शामिल थे। परिचर्चा का संचालन प्रोफेसर नंदकिशोर ढौंडियाल और सहसंचालन डॉ. सुशील उपाध्याय ने किया।

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इस अवसर पर सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि राजनीतिज्ञों के बारे में बहुत कुछ बोलकर और खराब होने का अवसर दिया जाता है। कहा राजनीतिक अनुभवों से उनके लेखन को ताकत मिली है। बोले मैं हैपीनेस का ब्रांड एंबेसडर हूं यह मेरे लिए काफी खुशी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उनकी रचनाओं में कोई भेदभाव नहीं रहा। साहित्य में कोई लकीर नहीं खींचा जा सकता। इसी भाव को ¨जदा रख राजनीति में उन्होंने सबको समान नजर से ही देखा। कहा आज राजनेताओं पर कुछ भी कहा लिखा जा रहा है यह उचित नहीं है। इस दौरान डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने अपनी कविता, उनमें से ए वतन तेरे लिए, मुझे विधाता बनना है, जीवन पथ में, तुम भी मेरे साथ चलो, प्रलय के बीच, मातृभूमि के लिए आदि भी सुनाई।

मैं हरिद्वार का राजनीतिक पंडा

तीन दिवसीय लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजन में आए साहित्यकारों, लेखकों का अभिनंदन करते हुए कहा मैं हरिद्वार का राजनीतिक पंडा हूं। उन्हें एक राजनेता के चलते सबका स्वागत करने का अवसर मिलता है।

लेखन या फिल्मांकन केवल व्यवसाय के लिए नहीं

सांसद ने परिचर्चा में केदारनाथ त्रासदी पर अपनी पुस्तक प्रलय के बीच पर चर्चा किया। कहा लेखन या फिल्मांकन केवल व्यवसाय के लिए नहीं होना चाहिए। कहा केदारनाथ फिल्म में केदारनाथ को छोड़कर बाकी सब कुछ है।

परिस्थितिवश राजनीति में आया

कवि, लेखक, साहित्यकार से राजनीति के सफर के बारे में सांसद ने बेबाकी से कहा वह परिस्थितिवश राजनीति में आए। जब पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी ने उन्हें बुलाकर चुनाव लड़ने को कहा तो उनके मन में अंत‌र्द्वद शुरू हो गया। उनकी मां भी राजनीति में आने के विरोध में रहीं। आज राजनीति में होते हुए किसी पंथ या विचार के दायरे में नहीं बंधा।


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