डॉ. भरत झुनझुनवाला बोले, डैम के जरिये अमीरों तक पहुंचते हैं गरीबों के संसाधन
हरिद्वार स्थित मातृसदन पहुंचे डॉ भरत झुनझुनवाला का कहना है कि गंगा की पहचान उसकी अविरलता से ही होती है।
हरिद्वार, जेएनएन। ब्रह्मलीन स्वामी सानंद की मांगों के समर्थन में मातृ सदन आश्रम में अनशनरत ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के समर्थन में आयोजित संवाद कार्यक्रम के दूसरे और अंतिम दिन वरिष्ठ स्तंभकार भरत झुनझुनवाला ने कहा कि डैम बनाना गरीब के संसाधनों को अमीर तक पहुंचाना है। कहा पहले वह डैम के समर्थक थे, लेकिन इसके दुष्परिणामों को देखते हुए वह इसके खिलाफ हैं। कहा कि गंगा की पहचान उसकी अविरलता से है। इसके लिए देशभर में आंदोलन चलाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि गंगा की हिफाजत का मतलब हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक पूरी ङ्क्षजदगी की हिफाजत है। जलवायु, जमीन, खेती, हरियाली, जानवर और पौधे और वह सबकुछ, जो इस क्षेत्र को बचाए रखने के लिए जरूरी है। मछुआरे, किसान आदि जिनका जीना-मरना गंगा के साथ है, जो अपनी जीविका के लिए गंगा पर आश्रित हैं। हिमालय क्षेत्र में बड़े बांधों को बनाने की कोशिश जारी है।
इसके कारण होने वाली प्राकृतिक विपदाओं और समस्याओं का सरकार के पास कोई हल नहीं है। गंगा के नाम पर सिर्फ देशी-विदेशी कंपनियों, जिनका मकसद केवल मुनाफा कमाना है, को लाभ पहुंचाया जा रहा है। किसानों, मछुआरों और उनकी रोजी, आवास और जल के प्राकृतिक अधिकार से वंचित करके सरकार नदियों के किनारों को पर्यटन केंद्रों में बदलना चाहती है, जिससे पर्यटन से जुड़ी कंपनियों और सरकार को लाभ होगा लेकिन लाखों आम लोगों का नुकसान होगा।
वाशिंगटन स्टेट के अल्वा डैम का उदाहरण देते हुए झुनझुनवाला ने कहा कि वहां के लोगों ने सरकार से डैम हटाने की मांग की थी। लोगों का तर्क था कि डैम से ज्यादा फायदा नदी के मुक्त प्रवाह से होगा। इसे देखते हुए सरकार ने डैम को हटा दिया। बताया कि आइआइटी रुड़की और इंस्टीट््यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ ने भी अपने एक अध्ययन में गंगा के डैम से मुक्त होने के फायदे बताए। कहा कि ऐसे अध्ययन को आज नजरअंदाज किया जा रहा है। एडवोकेट जयवीर पुंडीर ने बताया कि डैम आदि बनने के बाद भी सरकार सबकुछ अच्छा चलने की बात कहती है, तो गंगा पर कानून बनाने से पीछे क्यों हटती है।
आज कोर्ट के हस्तक्षेप का ही परिणाम है कि उत्तराखंड में गंगा पर एक नहीं 22 परियोजनाओं पर रोक लगी है। गंगा संरक्षण पर कार्य करने वाले विमल भाई ने गंगा पर बने डैम से हुए नुकसान की जानकारी दी। साथ ही गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए सकारात्मक सोच के साथ जनांदोलन की बात कही। कुछ वक्ताओं ने गंगा पर बेहतर कार्य करने वालों को गंगा पत्रकारिता पुरस्कार दिए जाने की बात रखी, जिसका सभी ने समर्थन किया। इस अवसर पर मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद, ब्रहमचारी दयानंद, मधु झुनझुनवाला, डॉ. विजय वर्मा, समीर रतूड़ी समेत कई वक्ता मौजूद रहे।
जनभागीदारी को लौटाना होगा छीना गया प्राकृतिक अधिकार
शनिवार को पूर्व सीएम हरीश रावत के बाद रविवार को कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय मातृ सदन पहुंचे। उन्होंने कहा वह गांव के बेटे हैं। गंगा की गोद में पले बढ़े हैं। गंगा को सभी मां कहते हैं, तो फिर मां की रक्षा भी पुत्र का कर्तव्य है। कहा कि मंथन को आए बुद्धिजीवी गंगा की अविरलता को जन भागीदारी की बात करते हैं। बगैर लाभ कोई क्यों भागीदारी करे। जब तक किसान, मछुआरों को उनकी रोजी-रोटी, आवास के अलावा जल और जंगल जैसे छीने हुए प्राकृतिक अधिकार नहीं मिल जाते, तब तक उनका साथ नहीं मिल सकता। इसके लिए भी सोचना होगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वह राजनीतिक तौर पर नहीं बल्कि स्वामी शिवानंद के समर्थक के तौर पर यहां आए हैं।
हरकी पैड़ी पर निकाली जनजागरण यात्रा
गंगा की अविरलता, निर्मलता और ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के समर्थन में रविवार शाम गंगा भक्तों ने हरकी पैड़ी क्षेत्र में जनजागरण यात्रा निकाली। स्वामी सानंद अमर रहे के अलावा बांधों के विरोध में नारे लगाए। लोगों को पंफलेट आदि वितरित कर उन्हें जागरूक किया।
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