निर्जला एकादशी पर हरिद्वार में श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी
निर्जला एकादशी पर श्रद्धालुओं खास करके महिलाओं ने हरकी पैड़ी सहित गंगा के घाटों पर पवित्र डुबकी लगाई। श्रद्धालुओं ने स्नान के बाद दान पुण्य भी किया।
हरिद्वार, जेएनएन। निर्जला एकादशी पर श्रद्धालुओं खास करके महिलाओं ने हरिद्वार में हरकी पैड़ी सहित गंगा के घाटों पर पवित्र डुबकी लगाई। श्रद्धालुओं ने स्नान के बाद दान पुण्य भी किया। महिलाओं ने स्नान के बाद कन्याओं को पंखे पर फल फूल और शरबत इत्यादि की बोतले रखकर दान किया।
आज के दिन को ककड़ी एकादशी भी कहते हैं, इस दिन तरबूज और ककड़ी का दान किया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन को पांडव या भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।
पुलिस और प्रशासन सतर्क
स्नान के निमित्त हरिद्वार में पुलिस प्रशासन सतर्कता और व्यवस्था बनाए हुए है। निर्जला एकादशी को हरिद्वार गंगा घाट हर हर गंगे के जयघोष से सुबह से गूंजने लगे। स्नान तड़के से प्रारंभ हो गया है। जैसे-जैसे दिन चढ़ता रहा वैसे वैसे गंगा के घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी।
स्नान के बाद श्रद्धालु उगते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते भी नजर आए। गंगा के घाटों पर भक्तों ने पुरोहितों और पंडितों से निर्जला एकादशी की कथा भी सुनी। हरकी पैड़ी, सुभाष घाट, लोकनाथ घाट, कुशावर्त घाट सहित अन्य गंगा घाटों पर पुलिस बल के साथ ही गोताखोर तैनात हैं। जगह जगह बने गंगा घाटों पर स्नान के लिए लोगों की भीड़ रही। मां गंगा के जयकारों से घाट गूंजायमान रहे।
ये है मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों में दूसरे नंबर के भीमसेन को खाने पीने का बहुत शौक था और वह अपने इस शौक पर नियंत्रण नहीं रख पाते थे। उनके अन्य भाई साल में पड़ने वाली सभी एकादशी पर व्रत रखते थे पर भीम ऐसा नहीं कर पाते थे। इससे उन्हें इस बात का हमेशा अफसोस रहता था कि वह भगवान विष्णु का अनादर कर रहे हैं।
व्यथित होकर वह महर्षि व्यास के पास गए। उनकी व्यथा सुनकर महर्षि व्यास ने उन्हें साल में एक बार निर्जला एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। भीमसेन ने महर्षि व्यास की सलाह पर व्रत रखना शुरू कर दिया। तभी से इस दिन को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।
महत्व
वर्ष में 24 एकादशी होती है उनमें निर्जला एकादशी सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। भगवान विष्णु की उपासना करने के लिए इस संसार के प्राणी ईह लौकिक और पारलौकिक सुखों की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए निर्जला एकादशी का व्रत रखते हैं। जेष्ठ मास में एकादशी को होने वाली यह निर्जला एकादशी इसलिए निर्जल व्रत रखी जाती है। क्योंकि मनुष्य को अपनी साधना और शारीरिक क्षमता और शक्ति का आभास हो सके। 40 से 48 डिग्री तापमान के रहते हुए प्यास से युक्त होते हुए भी जल ग्रहण ना करना इससे बड़ी परीक्षा और क्या होगी। इसीलिए इस व्रत को सर्वोत्तम व्रत बताया गया है। जिस दिन व्रत रखा जाता है उससे अगले दिन इसका पारायण करने का विधान है।
एकादशी व्रत का समय
प्रातः काल 13 जून दिन बृहस्पतिवार को निर्जला एकादशी का व्रत ब्रह्म मुहूर्त से आरंभ हो गया। उसके पश्चात इसका पारायण अगले दिन प्रातः 5:20 से 8:07 के मध्य होना चाहिए। क्योंकि यह समय पारण करने के लिए बहुत शुभ है।
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