संतान की रक्षा के लिए रखा जाता है छठ व्रत
जागरण संवाददाता, रुड़की: संतान की रक्षा एवं पुत्र प्राप्ति के लिए छठ पूजा व्रत रखा जाता है। इ
जागरण संवाददाता, रुड़की: संतान की रक्षा एवं पुत्र प्राप्ति के लिए छठ पूजा व्रत रखा जाता है। इस व्रत को सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है। चार दिन तक चलने वाला यह पर्व इस बार 11 नवंबर से शुरू होगा, जो 14 नवंबर को चलेगा।
आइआइटी रुड़की परिसर स्थित श्री सरस्वती मंदिर के पुजारी एवं ज्योतिषाचार्य पं. राकेश शुक्ला ने बताया कि छठ पूजा में 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। सूर्य षष्ठी व्रत भगवान सूर्य देव और उनकी बहन माता षष्ठी देवी को समर्पित है। इस व्रत के माध्यम से इनकी उपासना की जाती है। षष्ठी यानी छठ पूजा की परंपरा ऋग्वेद काल से मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को महाभारत काल में द्रोपदी और कुंती ने भी किया था, जिसकी वजह से पांडवों को विजय हासिल हुई थी। कुंती को कर्ण के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने बताया कि इस व्रत में तीनों दिन अलग-अलग विधान है, जिसका व्रती लोग पालन करते हैं। 11 नवंबर यानि पहले दिन चतुर्थी को नहाय खाय के साथ व्रत का प्रारंभ होगा। इसमें व्रती किसी पवित्र नदी जलाशय पर स्नान करके और लौकी चने की दाल का भोजन करते हैं। व्रत के दूसरे दिन पंचमी को खरना का नियम किया जाता है। इसमें व्रती लोग एक समय नमक रहित भोजन करते हैं। खासकर गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है। घर को साफ-सुथरा करके पूजन किया जाता है। साथ ही भूमि पर शयन करना होता है। तीसरे दिन यानी षष्ठी को मुख्य पूजन होता है। इसमें व्रती महिलाएं देवकारी का पूजन करके बांस की टोकरी में पूजन की सामग्री रखकर सायं काल किसी पवित्र नदी के तट पर भगवान सूर्य और षष्ठी देवी का पूजन करके अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। 14 नवंबर को सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश शुक्ला ने बताया कि सच्चे मन से इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति, असाध्य रोगों से मुक्ति, धन धान्य की प्राप्ति तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।