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कोरोना काल में गिरकर संभला ब्लड बैंक, अब प्रदेश में अव्वल

कोरोना काल में रक्तदान शिविरों के न लगने से ब्लड बैंकों में खून की कमी रही। जिला अस्पताल का ब्लड बैंक भी इससे अछूता नहीं रहा। जुलाई में स्थिति यह रही कि ब्लड बैंक में बी और एबी ग्रुप का रक्त ही नहीं था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 07:39 AM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 07:39 AM (IST)
कोरोना काल में गिरकर संभला ब्लड बैंक, अब प्रदेश में अव्वल
कोरोना काल में गिरकर संभला ब्लड बैंक, अब प्रदेश में अव्वल

मनीष कुमार, हरिद्वार

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कोरोना काल में रक्तदान शिविरों के न लगने से ब्लड बैंकों में खून की कमी रही। जिला अस्पताल का ब्लड बैंक भी इससे अछूता नहीं रहा। जुलाई में स्थिति यह रही कि ब्लड बैंक में बी और एबी ग्रुप का रक्त ही नहीं था। थैलेसीमिया मरीजों की जान पर बन आई। मुश्किल वक्त में ब्लड बैंककर्मी रक्तदान को आगे आए और थैलेसीमिया मरीजों की जान बचाई। ब्लड बैंक प्रभारी और कर्मचारियों की ²ढ़ इच्छा शक्ति का ही नतीजा है कि दोबारा ब्लड बैंक पुरानी स्थिति में आने लगा है। फिलवक्त ब्लड बैंक में 200 यूनिट से अधिक रक्त उपलब्ध है। रक्त की उपलब्धता मामले में फिलवक्त उसने प्रदेश के सभी ब्लड बैंकों को पीछे छोड़ दिया है। कोरोना संकट के बीच लोग ब्लड बैंक आकर रक्तदान करने से कतराते रहे। शिविर भी नहीं लगे। नतीजतन ब्लड बैंक खून की कमी से जूझता रहा। अप्रैल से सितंबर तक स्थिति ज्यादा खराब रही। हालांकि अप्रैल से जून तक खून की मांग कम रहने से फौरी राहत रही। अगस्त और सितंबर में कोराना चरम पर रहा। मॉनसून की दस्तक से डेंगू के मामले भी आने लगे। दोहरी चुनौतियों से निपटने के साथ थैलेसीमिया मरीजों को समय पर खून मुहैया कराना बड़ी चुनौती रही। इस दौरान ब्लड बैंक में रक्त की उपलब्धता आठ से दस यूनिट के बीच सिमटकर रह गई। बी और एबी ग्रुप का खून खत्म हो गया। एम्स ऋषिकेश की डिमांड भी हरिद्वार ब्लड बैंक से पूरी की जाती रही। थैलीसीमिया मरीजों की तो जान पर बन आई। हालांकि हरिद्वार ब्लड बैंक के कर्मी थैलेसीमिया मरीजों की जान बचाने को आगे आए। स्वैच्छिक रक्तदाताओं का भी सहयोग मिला। अक्टूबर में कोरोना का असर थोड़ा कम हुआ और रक्तदान शिविरों के आयोजन को जिलाधिकारी की अनुमति मिली तो ब्लड बैंक की स्थिति थोड़ी सुधरी है। फिलवक्त सभी रक्त समूहों के 200 से अधिक यूनिट उपलब्ध है। ई रक्तकोष से मिली जानकारी के आधार पर जो प्रदेश के सभी ब्लड बैंकों से सर्वाधिक है। फिलवक्त दून में आठ, रुद्रप्रयाग में नौ, उत्तरकाशी में 15, ऋषिकेश में 28, कोटद्वार में 37, पौड़ी गढ़वाल में 55 और रुड़की ब्लड बैंक में 80 यूनिट रक्त की उपलब्धता है। थैलेसीमिया के 27 मरीजों को नियमित मुहैया कराया जा रहा रक्त

हरिद्वार: जिले के सबसे बड़े जिला अस्पताल के ब्लड बैंक में 27 थैलेसीमिया के मरीजों को निश्शुल्क रक्त मुहैया कराया जा रहा है। इनमें कुछ मरीज ऐसे हैं, जिनके हर पंद्रह दिन में ब्लड ट्रांसफ्यूजन होता है। मरीजों में नौ महीने से लेकर 20 साल तक के युवक भी शामिल हैं। मरीजों में हरिद्वार, रुड़की के अलावा कोटद्वार बिजनौर, सहारनपुर के भी मरीज शामिल हैं। कंपोंनेट सेपेटेर के चलते पड़ोसी राज्य से भी आते हैं मरीज

हरिद्वार: पड़ोसी राज्य के जिलों से थैलेसीमिया मरीज के हरिद्वार ब्लड बैंक पहुंचने की मुख्य वजह ब्लड बैंक में कंपोनेंट सेपरेटर का होना है। चूंकि थैलेसीमिया मरीज को पीआरबीसी की जरूरत होती है, जिसे होल ब्लड से अलग किया जाता है।

कोरोना काल में थैलेसीमिया मरीजों का रखें खास ध्यान

हरिद्वार: कोरोना संक्रमण के समय थैलेसीमिया के मरीजों को विशेष ख्याल रखने की जरूरत होती है। इनकी इम्युनिटी ज्यादा कमजोर होती है। ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. रवींद्र चौहान ने बताया कि थैलेसीमिया खून से संबंधित बीमारी है, जिसमें ऑक्सीजन वाहन प्रोटीन जिसे होमीग्लोबिन कहते और आरबीसी यानी रेड ब्लड सेल्स (लाल रक्त कोशिकाएं) शरीर में सामान्य से कम मात्रा में होते हैं, जिन्हें उचित समय पर उचित खून न मिलने से दिक्कतें आ सकती है। वर्जन

कोरोना काल में ब्लड बैंक में रक्त की भारी कमी रही। बामुश्किल आठ से दस यूनिट खून की उपलब्धता थी। कई ग्रुप का रक्त भी नहीं था। थैलेसीमिया मरीजों को रक्त मुहैया कराने में दिक्कतें आई। रक्तदान शिविरों के आयोजन की अनुमति बाद स्थिति थोड़ी सुधरी है। फिलवक्त ब्लड बैंक 200 यूनिट से अधिक रक्त उपलब्ध है। थैलेसीमिया मरीजों को दिक्कत न हो इसके आमजन को रक्तदान के लिए आगे आना होगा। एनबीटीसी गाइड लाइन के तहत प्रत्येक महीने की आठ तारीख को रक्तदान कर सकते हैं।

डॉ. रविद्र चौहान, रक्तकोष प्रभारी, जिला अस्पताल, हरिद्वार


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